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पश्चिम बंगाल में दांव पर है मोदी और ममता की साख: चुनाव 2019

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, सोमवार, 6 मई 2019 (11:14 IST)
- प्रभाकर एम. (कोलकाता से)
 
पश्चिम बंगाल में पांचवें दौर में सोमवार को जिन सात सीटों पर मतदान हो रहा है वह सभी सीटें पिछली बार तृणमूल कांग्रेस ने जीती थी। इनमें हावड़ा ज़िले की दो सीटों के अलावा हुगली ज़िले की तीन और बांग्लादेश से सटे उत्तर 24-परगना ज़िले की दो सीटें शामिल हैं।
 
 
बीजेपी को उम्मीद है कि ख़ासकर बांग्लादेश से सटे इलाक़ों में नागरिकता (संशोधन) विधेयक और नेशनल रजिस्टर ऑफ़ सिटीजंस यानी एनआरसी जैसे मुद्दे उसके सिर पर जीत का सेहरा बांध देंगे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर भाजपा अध्यक्ष अमित शाह तक अपनी रैलियों में इन दोनों मुद्दों पर ज़ोर देते रहे हैं। दूसरी ओर, मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भी इन सीटों पर अपनी पूरी ताक़त झोंक दी है।
 
 
इस दौर में उत्तर 24-परगना ज़िले में बांग्लादेश सीमा से सटी बनगांव सीट सबसे अहम है। इस सीट पर मतुआ समुदाय के वोट ही निर्णायक हैं। पिछली बार उसके उम्मीदवार कपिल कृष्ण ठाकुर जीत गए थे।
 
 
इससे पहले वर्ष 2009 में भी यह सीट तृणमूल की ही झोली में गई थी। लेकिन बीते पांच वर्षों के दौरान भाजपा ने इस तबक़े के वोट बैंक में सेंध लगाने की कोशिश की है।
 
 
इसी के तहत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी बीती फ़रवरी में मतुआ समुदाय की कुलमाता कही जाने वाली वीणापाणि देवी से मुलाक़ात कर उनका आशीर्वाद लिया था। लेकिन हाल में वीणापाणि देवी के निधन के बाद इस समुदाय में मतभेद नज़र आ रहे हैं।
 
 
इस सीट के नतीजे ही बताएंगे कि भाजपा को मतुआ समुदाय में पैठ बनाने में कितनी कामयाबी मिली है। तृणमूल कांग्रेस ने इस बार यहां ममता ठाकुर को अपना उम्मीदवार बनाया है और बीजेपी ने शांतनु ठाकुर को मैदान में उतारा है। रिश्ते में यह दोनों चाची और भतीजे हैं।
 
 
बैरकपुर सीट
इसी ज़िले की बैरकपुर सीट भी काफ़ी अहम है। तृणमूल कांग्रेस के दिनेश त्रिवेदी जीत की हैट्रिक लगाने के लिए मैदान में हैं। बीजेपी ने तृणणूल कांग्रेस के पूर्व विधायक अर्जुन सिंह को यहां उनके ख़िलाफ़ मैदान में उतारा है।
 
 
हिंदी भाषी-बहुल यह इलाक़ा किसी दौर में जूट मिलों के लिए मशहूर रहा है। हुगली के किनारे बसे इस इलाक़े में अब जूट मिलों की तरह हिंदीभाषियों की हालत भी बदहाल है। वर्ष 2009 में बीजेपी को यहां महज़ 3.56 फीसदी वोट मिले थे जो 2014 में बढ़ कर 21.92 फीसदी तक पहुंच गए। इस आंकड़े से बीजेपी नेतृत्व गदगद है।
 
 
हावड़ा भी महत्वपूर्ण
बीजेपी कोलकाता से सटी हावड़ा संसदीय सीट पर भी जीत के सपने देख रही है। यहां फ़ुटबॉलर प्रसून चटर्जी पहले उपचुनाव में जीते थे और फिर 2014 के चुनाव में। प्रसून अबकी तीसरी बार मैदान में हैं।
 
 
बीजेपी ने यहां वरिष्ठ पत्रकार रंतीदेव सेनगुप्ता को अपना उम्मीदवार बनाया है जबकि कांग्रेस और सीपीएम की ओर से क्रमश: सुमित्रा अधिकारी और शुभ्रा घोष मैदान में हैं।
 
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प्रसून जहां जीत की हैट्रिक के दावे कर रहे हैं वहीं रंतीदेव का दावा है कि लोगों ने अबकी बदलाव का मूड बना लिया है। हावड़ा जिले की दूसरी सीट उलुबेड़िया माकपा का गढ़ रही है। लेकिन वर्ष 2009 से इस पर तृणणूल कांग्रेस का क़ब्ज़ा रहा है।
 
 
वर्ष 2009 और 2014 में तृणणूल कांग्रेस के सुल्तान अहमद ने यह सीट जीती थी। लेकिन बीते साल उनके निधन के बाद हुए उपचुनाव में पार्टी ने सुल्तान की पत्नी साजदा अहमद को टिकट दिया था और सहानुभुति लहर के भरोसे वे 4.74 लाख वोटों के अंतर से जीत गईं।
 
 
पिछली बार 23.29 फीसदी वोटों के साथ बीजेपी उम्मीदवार अनुपम मल्लिक दूसरे नंबर पर थे। इस बार पार्टी ने यहां अभिनेता जय बनर्जी को मैदान में उतारा है। तृणमूल कांग्रेस की ओर से साजदा अहमद ही क़िस्मत आज़मा रही हैं। सीपीएम ने अबकी मक़सूदा ख़ातून को टिकट दिया है।
 
 
श्रीरामपुर सीट
हुगली ज़िले की श्रीरामपुर सीट पर भाजपा ने वर्ष 2014 में जाने-माने गायक बप्पी लाहिड़ी को मैदान में उतारा था। वे भले चुनाव हार गए थे लेकिन 22.29 फीसदी यानी 2.87 लाख वोट लेकर भाजपा के मन में भविष्य के लिए उम्मीद की किरण ज़रूर पैदा कर गए थे।
 
 
पार्टी ने अबकी देवजीत सरकार को मैदान में उतारा है। तृणमूल की ओर से दो बार यह सीट जीतने वाले कल्याण चटर्जी ही मैदान में हैं। उन्होंने 2014 में सीपीएम के तीर्थंकर राय को 1.52 लाख वोटों के अंतर से पराजित किया था। कांग्रेस के देवब्रत विश्वास और सीपीएम उम्मीदवार तीर्थंकर राय यहां मुक़ाबले को चौकोना बनाने में जुटे हैं।

 
हुगली सीट
हुगली संसदीय सीट पर बीजेपी ने अबकी पूर्व अभिनेत्री लॉकेट चटर्जी को मैदान में उतारा है। लगातार दो बार यहां जीतने वाली तृणमूल की रत्ना दे नाग इस बार भी मैदान में हैं। सीपीएम ने प्रदीप साहा और कांग्रेस ने प्रतुल चंद्र साहा को अपना उम्मीदवार बनाया है।
 
 
बीजेपी की ओर से वर्ष 2014 में इस सीट पर वरिष्ठ पत्रकार चंदन मित्र ने चुनाव लड़ा था। लेकिन वे तीसरे नंबर पर रहे थे। रत्ना की हैट्रिक रोकने के लिए लॉकेट चटर्जी ने इस बार काफ़ी मेहनत की है।
 
 
आरामबाग़ सीट
हुगली ज़िले की आरामबाग़ संसदीय सीट पर हार-जीत का अंतर सबसे ज्यादा होता है। इसके अलावा यहां हमेशा राज्य में सत्तारुढ़ पार्टी का उम्मीदवार ही जीतता रहा है। वर्ष 2009 तक यहां सीपीएम जीतती रही थी। उसके बाद वर्ष 2014 में यहां तृणमूल कांग्रेस उम्मीदवार की जीत हुई।
 
 
इस बार तृणमूल की अपरूपा पोद्दार एक बार फिर इस सीट पर मैदान में हैं। बीजेपी ने यहां तपन राय को टिकट दिया है। तीसरे और चौथे दौर में हुई हिंसा को ध्यान में रखते हुए इस दौर के लिए सुरक्षा व्यवस्था मज़बूत कर दी गई है। चुनाव आयोग ने इस बार हर मतदान केंद्र पर केंद्रीय बलों को तैनात किया है। कुल मिला कर केंद्रीय बलों की लगभग साढ़े पांच सौ कंपनियां तैनात की गई हैं।
 

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