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सांप खाकर और पेशाब पीकर ज़िंदा रहा

हमें फॉलो करें सांप खाकर और पेशाब पीकर ज़िंदा रहा
, गुरुवार, 27 नवंबर 2014 (13:56 IST)
सहारा रेगिस्तान में होने वाली मैराथन डेस साबलेस को दुनिया की सबसे खतरनाक दौड़ माना जाता है। ढाई सौ किलोमीटर की यह दौड़ छह दिन में पूरी होती है। इटली निवासी पूर्व ओलंपियन पेंटाथिलीट माउरो प्रासपेरी ने 1994 में इस दौड़ में हिस्सा लिया। इस दौरान वो रेगिस्तान में खो गए। दस दिन तक वो रेगिस्तान में भटकते रहे। माउरो प्रासपेरी की कहानी उन्हीं की जुबानी...

मैराथन डेस साबलेस के बारे में मुझे एक दोस्त ने बताया था। मुझे चुनौतियां लेना पसंद है। इसलिए मैंने इस दौड़ की तैयारी शुरू की।

मैं प्रतिदिन 40 किलोमीटर की दौड़ लगाने लगा और शरीर में पानी की कमी को सहन करने के लिए मैं रोज पीने के पानी की मात्रा को कम करने लगा। मेरी पत्नी सिंजिया को लगा कि मैं पागल हो गया हूं। वह बहुत डरी हुई थीं।

मोरक्को पहुंचने पर मुझे रेगिस्तान ने आकर्षित किया। आजकल इस दौड़ में 13 सौ लोग तक हिस्सा लेते हैं, लेकिन जिस साल मैं दौड़ा उस साल केवल 80 लोग ही थे।
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इस दौड़ के दौरान गड़बड़ी चौथे दिन से शुरू हुई। सुबह जब हमने दौड़ शुरू की तो थोड़ी हवा चल रही थी। मैं चार चेकप्वाइंट से होकर गुजरा। लेकिन जब मैं रेत के टीलों वाले इलाके में पहुंचा तो मैं अकेला था। मेरे टीम लीडर आगे निकल चुके थे।

अचानक ही रेत की आंधी शुरू हो गई। मैं रेत से ढक गया। ऐसा लग रहा था जैसे हजारों सूइयां मेरे शरीर में चुभोई जा रही हों। रेत में ही दफन होने से बचने के लिए मैं लगातार चलता रहा। आठ घंटे बाद तूफान थमा तो वहां अंधेरा था। मैं एक टीले पर सो गया।

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दौड़ की चिंता : मैं दौड़ को लेकर परेशान था, तब तक मैं चौथे स्थान पर चल रहा था। मुझे लगा कि मैं अब दौड़ को जीत तो नहीं पाउंगा, लेकिन अच्छा समय निकाल सकता हूं। मैंने अगली सुबह जल्दी उठकर दौड़ को खत्म करने के बारे में सोचा। दौड़ पूरा करने के लिए मेरे पास 36 घंटे थे।
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जब मैं सुबह उठा तो वहां का नजारा पूरी तरह बदला हुआ था। मैं यह नहीं जानता था कि मैं खो गया हूं। मेरे पास एक कंपास (दिशासूचक) और एक नक्शा था। मुझे लगा कि मैं रास्ता खोज लूंगा, लेकिन यह एक कठिन काम था। मैं डरा हुआ नहीं था क्योंकि मुझे लगता था कि देर-सबेर मैं किसी से मिलूंगा, लेकिन मेरी यह धारणा गलत साबित हुई।

पहली बार खोने का एहसास होने पर पहला काम जो मैंने किया वह यह कि एक बोतल में पेशाब किया। क्योंकि जब आपके शरीर में पानी की पर्याप्त मात्रा होती है तो आपकी पेशाब साफ होती है और उसे आप पी सकते हैं। इसकी सीख मुझे अपने दादा से मिली थी।

पानी की कमी : मैं इस बात को लेकर आश्वस्त था कि दौड़ के आयोजक मुझे खोज लेंगे। मेरे बैग में एक चाकू, एक कंपास, स्लीपिंग बैग और पर्याप्त सूखा खाना था। समस्या पानी की थी। मेरे पास केवल आधा बोतल पानी था। उसे बहुत सावधानी से पी रहा था।
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मैं बहुत सावधान था और केवल सुबह-शाम को ही ठंड में चलता था। मेरी त्वचा काली थी। इसलिए सनबर्न नहीं हुआ। दूसरे दिन सूर्यास्त के समय मैंने हैलीकॉप्टर की आवाज सुनी। मुझे लगा कि वो मेरी तलाश में हैं। इसलिए मैंने रोशनी कर इशारा किया, लेकिन उसका पायलट मुझे देख नहीं पाया और चला गया। मैं शांत बना रहा। मुझे विश्वास था कि आयोजक मुझे तलाश लेंगे।

कुछ दिन बाद मैं मुसलमानों के एक दरगाह पर पहुंचा। वहां एक कब्र को छोड़कर कुछ और नहीं था। वहां मैंने ताजा पेशाब में कुछ खाना पकाकर खाया। चार दिन बाद मैंने उस पेशाब को पीना शुरू किया, जिसे मैंने बोतल में रखा था।

मैंने दरगाह की छत पर इटली का झंडा लगा दिया, जिससे कि अगर कोई मेरी तलाश में आए तो मुझे खोज सके। वहां बहुत सी चमगादड़ें थीं। मैंने करीब 20 चमगादड़ों को काटकर उनका खून पिया। मैं दरगाह में कुछ दिन तक रहा।

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आत्महत्या का प्रयास : इस दैरान मुझे लगने लगा कि मैं बचूंगा नहीं। मैं बहुत तनाव में था। मुझे लगा कि अगर मैं रेगिस्तान में मरा तो कोई मुझे खोज नहीं पाएगा। अगर दरगाह में मरा तो लोग मुझे खोज तो लेंगे। यही सोचकर मैंने अपनी जान लेने का फैसला किया। वहां मैंने कोयले से एक नोट लिखा और कलाई की नस काट दी। लेकिन मेरा खून इतना गाढ़ा हो चुका था कि वह बाहर ही नहीं आया और मैं बच गया।
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अब मैंने दरगाह से निकलकर चलने का फैसला किया। लेकिन समस्या यह थी कि जाऊं किधर। मैंने टुरेग की सलाह पर चलने का फैसला किया। उन्होंने कहा है कि खो जाने पर क्षितिज में उस दिशा में चलना शुरू करें, जिधर बादल हों। मैंने भी ऐसे ही चलना शुरू किया।

मैं कुछ दिन इसी तरह चलता रहा। इस दौरान सांपों और छिपकलियों को मारकर उन्हें कच्चा ही खाता रहा और कुछ पौधों को निचोड़कर उनका रस पीता रहा। आठवें दिन एक जगह मुझे थोड़ी हरियाली और पानी नजर आया। मैंने ज़मीन पर लेटकर पानी पिया। मैंने रेत में पैरों के निशान देखे। मुझे लगा कहीं आसपास ही लोग हैं।

पत्नी से सवाल : अगले दिन मैंने बकरियां चराने वाली एक लड़की को देखा। मुझे देखकर वो एक टेंट की तरफ भाग गई। मैं उसके पीछे वहां गया। वहां केवल औरतें थी। उन्होंने मेरी देखभाल की और बकरी का दूध पीने को दिया और पुलिस बुलाकर मुझे सौंप दिया।

पुलिस ने मुझे टिंडुफ़ के एक अस्पताल में दाखिल कराया। वहां पता चला कि मैं मोरक्को की सीमा पार कर अल्जिर्या पहुँच गया हूं। दस दिन बाद मैंने अपनी पत्नी को फ़ोन किया। उससे पहला सवाल मैंने पूछा कि क्या उन्होंने मेरा अंतिम संस्कार कर दिया है।

इन दस दिनों में मेरा वजन 16 किलोग्राम कम हो गया था। मेरे लीवर में खराबी आ गई थी, लेकिन मेरी किडनी ठीक थी। मुझे पूरी तरह ठीक होने में दो साल लगे। चार साल बाद एक बार फिर मैं मोरक्को पहुंचा, तो लोगों ने मुझसे पूछा कि आप फिर क्यों आए हैं, तो मैंने कहा, 'जो शुरू किया था। उसे खत्म करना है।'

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