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टनों बर्फ के नीचे 6 दिन, फिर भी जीवित कैसे?

हमें फॉलो करें टनों बर्फ के नीचे 6 दिन, फिर भी जीवित कैसे?
, मंगलवार, 9 फ़रवरी 2016 (17:11 IST)
सियाचिन ग्लेशियर पर हिमस्खलन में छह दिन पहले दबे भारतीय सेना के एक जवान को जीवित बचाया गया है। लांस नायक हनमनथप्पा लगभग 6,000 मीटर की ऊंचाई पर सियाचिन ग्लेशियर में कई मीटर बर्फ के भीतर दबे थे जब बचावकर्मियों ने उन्हें जीवित निकाला। जानिए कैसे जीते हैं सियाचिन में सैनिक...
दिल्ली के सैनिक अस्पताल में उनका इलाज चल रहा है। मंगलवार शाम चार बजे अस्पताल ने मेडिकल बुलेटिन जारी कर कहा कि हनमनथप्पा फिलहाल कोमा में हैं। डॉक्टरों के अनुसार वो सदमे में हैं और उनका ब्लड प्रेशर कम है।
 
लेकिन इतने लंबे समय तक बर्फ में दबे रहने के बाद जीवित बच जाने को कई लोग चमत्कार कह रहे हैं। लांस नायक हनमनथप्पा के अलावा भारतीय सेना के नौ अन्य जवान भी इस हादसे का शिकार हुए थे लेकिन उनकी मौत हो गई।
 
बीबीसी संवाददाता विनीत खरे ने इस बारे में बात की दिल्ली के गंगाराम अस्पताल में जोड़ों के डॉक्टर डॉ (लेफ़्टिनेंट जनरल) वेद चतुर्वेदी से। वो भारतीय सेना में डॉयरेक्टर जनरल मेडिकल सर्विसेज़ थे।
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1.इसे (लांस नायक हनमनथप्पा के बच जाने को) विज्ञान का अचंभा ही कहा जाएगा। हालांकि विज्ञान के पास इसका साफ जवाब नहीं है। हो सकता है जवान को कहीं से ऑक्सीजन मिल रही हो, हो सकता है कि वो बहुत फिट हों। ये कहना बहुत मुश्किल है कि कोई व्यक्ति क्यों बच जाता है। यही वजह है कि राहतकर्मी कभी भी खोजबीन नहीं रोकते।
 
2. इस घटना से साबित होता है कि शून्य से नीचे के तापमान पर जीवित रहने पर शोध होना चाहिए। ये समझना जरूरी है कि क्या कम तामपान मात्र से मौत हो सकती है?
 
ऐसी दूसरी घटनाओं की भी जांच होनी चाहिए। इससे ये भी सवाल उठ सकता है कि ऊंचाई पर अगर व्यक्ति बेहद कम तापमान में रहे तो क्या वो बच सकता है? हमें इस बारे में पता नहीं है।
 
3.लंबे समय तक शून्य से नीचे के तापमान में रहने से दिल की धड़कन तेज हो जाती है। यानि दिल तेजी से काम करता है और दिल की धड़कन रुकने का खतरा उत्पन्न हो जाता है। आज भी ऊंचाई पर ज्यातादर मौतें हापो यानि हाई एल्टीट्यूड पल्मनरी इडीमा से होती हैं। इसमें व्यक्ति के फेफड़ों में पानी भर जाता है। इसका एक ही इलाज है कि व्यक्ति को नीचे ले जाया जाए।
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लेह में भारतीय सेना का एक आधुनिक अस्पताल है। अस्पताल में एक चैंबर है जहां ऑक्सीजन बहुत है। या तो हम पीड़ित व्यक्ति को वहीं रख देते हैं या उन्हें चंडीगढ़ भेज देते हैं। कई लोगों को हापो जल्दी हो जाता है। कुछ दवाइयां दी जाती हैं ताकि फेफड़ों में परिवर्तन न हो। जवानों की ट्रेनिंग होती है। इसके अलावा जवानों को बताया जाता है कि वो खुद को ठंड के मुताबिक़ कैसे ढालें और क्या सावधानी बरतें। इस बारे में कई अध्ययन किए गए हैं।
 
4. इसके अलावा कई जवानों में एक्यूट माउंटेन सिकनेस की शिकायत होती है। आपने महसूस किया होगा कि पहाड़ों पर जाने के कारण कभी-कभी सिर में दर्द होता है। दरअसल ऊंचाई पर ऑक्सीजन कम होने के कारण मस्तिष्क पर दबाव बढ़ जाता है।
 
5. ठंड से एक और खतरनाक स्थिति पैदा हो सकती है- थ्रांबोसिस। दरअसल ज्यादा ऊंचाई से शरीर में खून का जमना बढ़ जाता है। ठंड से दिल में या मस्तिष्क में थक्का जम सकता है। उंचाई पर मृत्यु के कई कारण हो सकते हैं, लेकिन व्यक्ति क्यों बच गया ये समझना मुश्किल होता है। इससे पता चलता है कि प्रकृति की 90 प्रतिशत बातें अभी भी हमें मालूम नहीं।
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6. बहुत ठंड से खून जम सकता है, अंगुलियां गल जाती हैं, निमोनिया या इन्फेक्शन हो जाता है। बहुत ठंड से गैंगरीन हो सकता है या शरीर का कोई हिस्सा सड़ जाता है।
 
7.इसी कारण सैनिकों के लिए लेह जैसी जगहों पर जाने के लिए निश्चित कार्यक्रम होता है। सैनिकों को आदेश होता है कि वो पहले दिन पूरा आराम करें। ज्यादातर पर्यटक ऐसा नहीं करते। दूसरे दिन जवान मात्र लेह के भीतर उसी ऊंचाई पर घूम सकता है। लेह से ऊपर जाने के लिए अलग रूटीन तय होती है।

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