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'आइफा' : ऑल इंडिया फैमिली अवॉर्ड

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अनहद

वासु भगनानी के बेटे जैकी भगनानी को आइफा में बेस्ट डेब्यू मेल की कैटेगरी में अवॉर्ड मिला। उनकी फिल्म "कल किसने देखा" सुपर फ्लॉप थी। बेस्ट डेब्यू का मतलब हिन्दी में होगा बेहतरीन शुरुआत...। सुपर फ्लॉप फिल्म "बेहतरीन शुरुआत" तो नहीं कही जा सकती। माथा देखकर तिलक लगाने से कोई भी अवॉर्ड गरिमाहीन हो सकता है और जैकी भगनानी को अवॉर्ड देने से आइफा भी हुआ है। जैकी भगनानी की न सिर्फ फिल्म सुपर फ्लॉप रही, बल्कि दर्शकों ने बतौर नायक उन्हें नकार दिया। समीक्षकों की नजरों में वे अच्छे अभिनेता भी नहीं ठहरे। एक्शन, रोमांस, डांस... हर जगह वे सिफर साबित हुए। फिल्म जगत में कुछ लोग आईफा को ऑल इंडिया फैमेली अवॉर्ड कहते हैं।

जैक्लीन फर्नांडीस को भी बेस्ट डेब्यू फीमेल का अवॉर्ड दिया गया है और अभी तक उनकी एक भी फिल्म कामयाब नहीं हुई है। उन्हें शायद इसलिए अवॉर्ड मिला कि वे श्रीलंकन हैं और इस बार आइफा समारोह कोलंबो में हुआ। जाहिर है कई तरह के दबाव और सौदे इस अवॉर्ड के पीछे हैं। जैक्लीन ने अमिताभ के साथ अपनी पहली फिल्म की थी और मुमकिन है बच्चन फैमेली से निकटता का लाभ उन्हें मिला हो। वैसे इस अवॉर्ड के लिए माही गिल सबसे अधिक दावेदार थीं। क्या शानदार काम किया है उन्होंने "देव डी" में। फिर गुलाल में भी उनका रोल बढ़िया रहा। माही गिल पर जैक्लीन को तरजीह देना क्या साबित करता है? देव डी में ही एक विदेशी बाला ने भी बढ़िया और अवॉर्ड लायक काम किया है।

सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कार फिल्म "पा" के लिए अमिताभ को मिला है। इस पर भी बहस हो सकती है। कुछ लोग मानते हैं कि शाहरुख ने फिल्म "माय नेम इज़ खान" में जो रोल किया है, वो अमिताभ के रोल से कहीं ज्यादा मुश्किल था। अमिताभ के चेहरे पर किलो के हिसाब से मेकअप किया गया था और मेकअप का प्रभाव अभिनय से पहले दर्शक पर पड़ता है। शाहरुख ने केवल गर्दन एक तरफ झुका कर और आँखों की पुतलियों को जुंबिश देकर दिमागी रूप से कमजोर आदमी का प्रभाव पैदा किया है। अमिताभ के किरदार से शाहरुख का किरदार कहीं अधिक जटिल है, क्योंकि इसी किरदार के साथ उन्हें मोहब्बत भी करनी है, रोमांस भी करना है। एक हद तक पात्र को सामान्य आदमी की तरह दिखाना है और एक हद के बाद दिमागी कमजोर, बीमार..।

ये ठीक है कि "थ्री इडियट्‍स" को बहुत से अवॉर्ड दिए गए, मगर पानी मिलाने के लिए जिस दूध की जरूरत होती है, वो ये अवॉर्ड हैं। कुछ अवार्ड तो हक-इंसाफ से देने ही पड़ते हैं। वरना धोखा नहीं रचा जा सकता। आमिर खान तो खुलकर इन अवॉर्डों के खिलाफ बोलते हैं। बोलना चाहिए भी। आइफा अवॉर्ड में कुछ नाम छोड़ दिए जाएँ तो बकाया पर अच्छी खासी चर्चा हो सकती है।

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