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जोहरा सहगल : भारत की 'इसाडोरा डंकन' नहीं रहीं

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समय ताम्रकर

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अपने जीवन के 102 वर्ष पूरे कर आखिर जोहरा सहगल ने अपने चहेते दर्शकों को 10 जुलाई को अलविदा कह दिया। जोहरा ने 60 साल से अधिक अभिनय जीवन जिया। 50 से अधिक देशी-विदेशी फिल्में और टीवी सीरियलों में दर्शकों का मन मोहती रहीं।

अपनी युवावस्था में आठ साल तक उदय शंकर के नर्तक दल में शामिल होकर दुनियाभर में अपनी नृत्य कला का प्रदर्शन करती रहीं। आजादी के बाद बारह साल तक पृथ्वी थिएटर (पृथ्वीराज कपूर की नाटक मंडली) के माध्यम से भारत के अनेक शहरों में नाटकों में अभिनय किया।

जोहरा बेगम का असली नाम मुमताजउल्ला था। उनका जन्म 27 अप्रैल 1912 को रुढ़िवादी सुन्नी परिवार में हुआ था। उनका परिवार रामपुर के शाही घरानों में से एक था। जब जोहरा एक साल की थी तो उनकी बांई आंख की रोशनी चली गई। उस समय तीन लाख पाउंड खर्च कर लंदन के एक अस्पताल में इलाज कराया गया और आंख की रोशनी लौटी। जोहरा की पढ़ाई लड़कों की स्कूल में हुई इसलिए उनका स्वभाव अल्हड़ और खिलंदड़ था। वह स्कूली दिनों में पेड़ों पर चढ़ जाया करती और लडकों जैसी शरारत करती थी।

जोहरा का मतलब है गुणी और हुनरमंद स्त्री। अपने एक सदी के जीवन में उन्होंने अपने को कई बार साबित किया। 1929 में मैट्रिक और 1933 में ग्रेज्युएशन करने के बाद उन्होंने डांसर बनने का सोचा। जर्मनी में उदयशंकर का शिव-पार्वती नृत्य देखा और उनके अल्मोड़ा स्कूल में शामिल हो गईं।
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जोहरा ने इन्दौर के रुढ़िवादी हिन्दू परिवार के युवक कामेश्वर से शादी की थी। वह उनसे आठ साल छोटे थे। दोनों परिवारों का विरोध था, फिर भी वे शादी के बंधन में बंध गए। कामेश्वर वैज्ञानिक होने के साथ अच्छे रसोइए थे। उनकी पढ़ाई चित्रकार एमएफ हुसैन के साथ इन्दौर के ललित कला महाविद्यालय में हुई थी।

कामेश्वर और जोहरा विभाजन के बाद बंबई पहुंच गए, जब आजादी का जुलूस निकला तो जोहरा सारी रात सड़कों पर जुलूस के साथ नाचती रहीं। उस समय फिल्मकार ख्वाजा अहमद अब्बास ने उन्हें भारत की 'इसाडोरा डंकन' कहा था। जोहरा ने अब्बास की फिल्म 'धरती के लाल' (1946), चेतन आनंद की 'नीचा नगर (1948), अफसर (1950) और हीर (1956) में अभिनय किया था। गुरुदत्त की बाजी और राजकपूर की फिल्म आवारा में उनकी कोरियोग्राफी थी। लेकिन जोहरा का पहला प्यार रंगमंच था।

पंडित जवाहरलाल नेहरू से परिचय के कारण जोहरा नाट्य अकादमी की प्राचार्य बन गईं। 1962 में लंदन गईं और 25 वर्ष बाद भारत लौटीं। उन्होंने बीबीसी द्वारा बनाए गए पड़ोसी (1976-77) धारावाहिक में बहुत नाम कमाया। 1984 में सीरियल ज्वैल इन द क्राउन में लेडी चटर्जी का रोल उनके करियर का चरम बिंदु था। तंदूरी नाइट्स (1985-87) में वे दादी के रोल में थीं और लंदन का हर छोटा-बड़ा दर्शक उन्हें पहचानता था।

1987 में जोहरा भारत लौटी तब लोकप्रियता के सर्वोच्च शिखर पर थीं। दूरदर्शन के सीरियल बुआ फातिमा में उन्हें रोल दिया गया। उनकी बहन उज्रा पाकिस्तान रहने चली गईं और दोनों बहनें अकसर एक-दूसरे से मिलने आती-जाती रहती थीं। 1997 में जोहरा ने अपनी आत्मकथा 'स्टेजेस' लंदन से प्रकाशित की थी।

हिंदी फिल्मों में भी वे लगातार काम करती रहीं। इससे उन्हें नाम और दाम बहुत मिला। नए दौर की उनकी फिल्मों के नाम हैं- तमन्ना, दिल से, ख्वाहिश, हम दिल दे चुके सनम, तेरा जादू चल गया, कभी खुशी कभी गम, जिंदगी कितनी हसीन है, चलो इश्क लड़ाए, साया, कौन है जो सपनों में आया, चिकन टिक्का मसाला और मिस्ट्रेस ऑफ स्पाइस। उनकी बेटी किरण सहगल ओडीसी की नृत्यांगना हैं। उनका बेटा पवन विश्व स्वास्थ्य संगठन के लिए काम करता है।

जोहरा जैसा जीवन बहुत कम लोगों को नसीब होता है। वह सारी उम्र एक्टिव रहीं और एक्ट्रेस शब्द को उन्होंने अपने जीवन में कुछ इस तरह उतारा कि नई पीढ़ी के नौजवानों के लिए वह प्रेरणास्रोत और रोल मॉडल बनी रहीं।

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