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राष्ट्र से बड़ा महाराष्ट्र

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-अनहद

IFM
जब सेंसर बोर्ड फिल्म "देशद्रोही" को देख चुका है, तो महाराष्ट्र पुलिस यह क्यों कह रही है कि वो इस फिल्म को देखेगी और तय करेगी कि फिल्म मुंबई में दिखाई जानी चाहिए या नहीं।

सवाल यह नहीं है कि मुंबई पुलिस के उपायुक्त एनवी साल्वे का फैसला क्या है, बल्कि यह है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का क्या होगा जिसकी गारंटी देश का संविधान देता है?

एक बार जब सेंसर बोर्ड फिल्म देख चुका, देखकर पास कर चुका, तब फिर साल्वे को क्या परेशानी है? उनका स्टैंड तो यह होना चाहिए कि फिल्म का प्रदर्शन ज़रूर होगा और पुलिस यह सुनिश्चित करेगी कि कानून व्यवस्था न बिगड़े।

सेंसर बोर्ड के पास कर देने के बाद इस फिल्म पर किसी को आपत्ति नहीं होनी चाहिए, पर लगता है कि राष्ट्र से बड़ा महाराष्ट्र है। महाराष्ट्र पुलिस किसकी वफादार है, यह बात अलग से बताने की कोई ज़रूरत शायद नहीं है।

गुजरात पुलिस ने भी आमिर खान की फिल्में खुद ही रुकवाई थीं। कानून-व्यवस्था का हवाला देकर फिल्म रोकना ऐसा ही है, जैसे गुंडों के डर से पुलिस शरीफ लोगों को घरों में कैद कर दे।

मगर जिंदगी के नियम अजीब हैं। महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना ने फिल्म का विरोध करके फिल्म को दर्शन से पहले ही फायदे का सौदा बना दिया है। इस फिल्म के प्रोमो देखकर महसूस होता है कि यह भाषणबाज़ी से भरी एक लाउड-सी फिल्म है।

अगर खामोश रहा जाता, तो फिल्म कब लगकर कब निकल जाती मालूम ही नहीं पड़ता। मगर विरोध से फिल्म को जो प्रचार मिला है, वह करोड़ों खर्च करने से भी नहीं मिलता। फिर यह फिल्म बहस के केंद्र में आ गई है।

अगर महाराष्ट्र में फिल्म रोक भी ली गई, तो इसके तीन सौ प्रिंट देशभर में रिलीज़ हो रहे हैं। पचास प्रिंट विदेश में भी जा रहे हैं यानी प्रादेशिक विरोध से फिल्म को कोई नुकसान नहीं होता उलटे देश के लेबल पर फायदा ही होता है।

"देशद्रोही" फिल्म के निर्माता कमाल आर. खान को शुरू से धमकियाँ मिल रही हैं, पर वे किसी से नहीं डर रहे। इस मामले में वे अमिताभ से ज़्यादा साहसी हैं। उन्होंने अभी तक राज ठाकरे से किसी तरह की कोई मांडवाली नहीं की है।

कमाल आर. खान कौन हैं, क्या करते हैं, बहुत कम लोग जानते होंगे मगर इस विवाद ने उन्हें भी बहुत मशहूर कर दिया है। शायर कहता है-

मुखालफत से मेरी शख्सियत सँवरती है
मैं दुश्मनों का बहुत एहतराम करता हूँ।

(नईदुनिया)

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