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फिर सुलगी है रामगोपाल वर्मा की आग

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समय ताम्रकर

रामगोपाल वर्मा एक बार फिर मुंबई लौट आए हैं। 'कंपनी' के नाम से उन्होंने एक बड़ा ऑफिस मुंबई में बनाया है जिसको बनाने और साज-सज्जा का खर्चा 15 करोड़ रुपये आया है। इतनी रकम में तो रामगोपाल वर्मा दो फिल्में बड़े आराम से बना सकते थे, लेकिन अपने अपनी कंपनी को नया लुक देकर उन्होंने इरादे जाहिर किए है कि बतौर फिल्मकार भी वे अब नई तरह की फिल्में गढ़ेंगे। 
 


हिंदी फिल्मों में मिली लगातार नाकामयाबियों और आलोचना के कारण वे हैदराबाद लौट गए थे और चार वर्ष तक उन्होंने तेलुगु फिल्में बनाईं। अपने विचारों को ट्विटर पर व्यक्त कर वे सुर्खियों में बने रहे। अपनी आत्मकथा भी उन्होंने लिख डाली। आत्मकथा आमतौर पर व्यक्ति तब लिखता है जब उसका करियर खत्म हो जाता है, लेकिन रामू ने 54 की उम्र में ही यह काम कर डाला। 
 
विजयवाड़ा में जन्मे रामगोपाल वर्मा के पास सिविल इं‍जीनियरिंग की डिग्री है, लेकिन फिल्मों के आकर्षण के कारण उन्होंने कभी बिल्डिंग या पुल बनाना पसंद नहीं किया। फिल्मों के प्रति लगाव के कारण उन्होंने वीडियो लाइब्रेरी खोली और एक ही फिल्म को कई बार देख डाला। उन्हें लगा कि वे ये फिल्में अपने तरीके से बना सकते हैं और फिल्म निर्देशक बनने की ठान ली। मौका जल्दी मिल गया और 1989 में उन्होंने तेलुगु फिल्म 'सिवा' बनाई जिसे बाद में 'शिवा' नाम से उन्होंने हिंदी में भी बनाया। रामगोपाल ने अपने काम से लोगों को चौंका दिया। उनके अजीबो-गरीब कैमरा एंगल देख लोग बेहद प्रभावित हुए। इसके बाद उन्होंने कई सफल और बेहतरीन फिल्में बनाईं। 
 
इसके बाद उन्हें गुमान हो गया कि वे किसी को भी सफल हीरो बना सकते हैं और सफल फिल्म बनाना उनके बांए हाथ का खेल है। उन्होंने 'कंपनी' नामक कंपनी खोली और साबुन की टिकिया की तरह फिल्मों का उत्पादन करने लगे। इस दौरान उन्होंने बेहद घटिया फिल्मों का निर्माण किया। 
 
'रामगोपाल वर्मा की आग' देख यकीन करना मुश्किल हो गया कि इसी निर्देशक ने 'सत्या' और 'रंगीला' जैसी बेहतरीन फिल्में बनाई है। अच्छे काम और सफलता से रामू जल्दी बोर हो गए और अपनी फिल्मों को बिगाड़ कर पेश करने लगे। उन्हें अपने इस फॉर्मूले की कामयाबी पर विश्वास था और जब सफलता नहीं मिली तो वे उस वैज्ञानिक की तरह हो गए जो सफलता मिलने तक प्रयास जारी रखता है, लेकिन वे गलत दिशा में बढ़ रहे थे तो सफलता मिलनी ही नहीं थी।
 
इसी बीच वे अपनी नायिकाओं पर भी मोहित हो गए। इस अंधे प्यार की खातिर उन्होंने कई फिल्में बनाई और दर्शकों ने खामियाजा भुगता। 
 
ताज्जुब की बात तो ये है कि इतनी असफल फिल्म बनाने के बावजूद रामू के पास कभी काम की कमी नहीं रही क्योंकि सभी को उनकी प्रतिभा पर विश्वास है, परंतु अपनी प्रतिभा के साथ अन्याय करने वाले वे खुद हैं।
 
एक बार फिर रामू को हिंदी फिल्म अपनी ओर खींच लाई है। वे जानते हैं कि हिंदी फिल्मों का मार्केट बहुत बड़ा है। उनके नए ऑफिस को देखने अमिताभ बच्चन भी गए थे। 'वीरप्पन' नामक रामू की फिल्म रिलीज होने वाली है। उम्मीद है कि नए ऑफिस के साथ-साथ उन्होंने अपने अंदर के निर्देशक को भी नया रूप दिया होगा।  
 

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