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याद रहेंगे सावन-रंग में भीगे गीत

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हमारे फिल्मी गीतों में वैसे तो तो हर तरह के रंग नजर आते हैं लेकिन कुछ रंग ऐसे हैं, जिनकी छटा निराली है। इन्हीं रंगों में सावन से जुड़े गीतों का रंग भी है। इन गीतों में हमें सावन सुनाई व दिखाई देता है। बरसती फुहारों में भीगे तन-मन को यह गीत आज भी नई उमंगों-तरंगों से भिगो डालते हैं।

सावन के झूले पड़े हों और पिया पास नहीं हो, ऐसे में प्रेयसी के दिल की पुकार यही तो होगी "सावन के झूले पड़े, तुम चले आओ"। पिया को पुकारती लता की यह मीठी आवाज आज भी मन के मोर को नाचने पर मजबूर कर देती है। सावन की इस पुकार में अजब कसक भरी है। ऐसी तड़प जो हिप-हॉप करते हमारे युवाओं तक का मन डोला देने में सक्षम है।

ऐसे में पिया साथ हो, तब तो मन यही गाएगा "रिमझिम के गीत सावन गाए"। सावन की फुहारें पूरी फिजा में बहारें भर देती हैं, फिर यह कैसे हो सकता है कि प्रेमी गण इनके संग आवाज मिलाने से रह जाएँ।

यही नहीं कि इंसान बल्कि प्रकृति भी सावन का भरपूर अंदाज में स्वागत करती है। हवा के हिंडोले पर सवार होकर वर्षा बूँदें चली आती हैं और शोख पवन शोर मचा-मचाकर सावन के आगमन का संदेसा सुनाता है। यह संदेसा सुन जिया का झूमना स्वाभाविक ही है। तभी तो सावन में पवन शोर करता है "सावन का महीना, पवन करे शोर"। मुकेश-लता की मदभरी आवाजों के बीच पवन के इसी शोर में बूँदों की रुनझुन भी सुर मिलाती है और सावन की भीगी-भीगी रुत को और मदभरी बना देती है।

ऐसी ही रुत में प्रेमी अपनी प्रेमिका को गीतों में ढालने की बात करता है, यह कहते हुए कि "तुम्हें गीतों में ढालूँगा, सावन को आने दो"। उधर प्रेयसी के तन-मन में यह सावन आग लगाने आने वाला है, तभी तो वह कह रही है "अब के सजन सावन में, आग लगेगी बदन में"। इधर सावन बदन में आग लगा रहा है तो उधर सावनी फुहारों व मंद-मंद चलती बयार से सुलगने लगता है। ऐसे में किसी दीवाने की मदहोश कर देने वाली आवाज यह कहे कि "रिमझिम गिरे सावन, सुलग-सुलग जाए मन" तो...

ऐसे में प्रेयसी यही चाहती है कि उसका प्रियतम उसके साथ हो क्योंकि उसके लिए यह सावन लाखों का है। वैसे अब तो यह सावन करोड़ों का होना चाहिए कि यह गीत तब का है, जब लाखों ही बहुत होते थे। इसीलिए तो दिलरुबा अपने दिलबर से शिकवा करते हुए कह रही है "हाय हाय यह मजबूरी, ये मौसम और ये दूरी, मुझे पल-पल है तड़पाए, तेरी दो टकियों की नौकरी में मेरा लाखों का सावन जाए"।

सावन तो मिलन-रुत है, लेकिन तकदीर के आगे किसकी चलती है, सो बिछुड़े हुए लोगों का दर्द सावन की घटाएँ बार-बार ताजा कर देती हैं और नयनों से आँसुओं की झड़ी लग जाती है, "मेरे नैना सावन-भादौ, फिर भी मेरा मन प्यासा"। ऐसे दुःख भरे समय सीने में दबी कोई पुरानी चिंगारी सुलगने लगती है तभी कोई गा उठता है "लगी आज सावन की फिर वो झड़ी है"। पर प्रेमी की यह आवाज अपनी प्रियतमा को दुखी भी नहीं देखना चाहती है। इसीलिए तो किसी जमाने में तलत मेहमूद अपनी लरजती आवाज में यह सुना गए "जब छाए कभी सावन की घटा, रो रो के न करना याद मुझे"।

लगता है समय के साथ सावन गीतों का वह मार्केट नहीं रहा या फिल्म वालों की नजरों में इन गीतों की अहमियत कम हो गई। क्योंकि आजकल की फिल्मों में सावन से जुड़े गीतों का चलन कम होता जा रहा है। खासतौर से ऐसे मधुर गीतों का जो बरसों से श्रोताओं के दिल पर राज कर रहे हैं तथा हमारे होंठों पर अब भी चढ़े हुए हैं। वैसे हाल के गीतों में "गरज बरस सावन घिर आयो" तथा "सावन बीता जाए, मोरा सैंया मोसे" सुंदर बन पड़े हैं।

जावेद आलम

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