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दो बजे रात को मैसेज आता है 'मुझे तुम पर गर्व है' : श्रद्धा कपूर

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रूना आशीष

नई पीढ़ी की नई आवाज़ बन कर उभरने वाली श्रद्धा कपूर इन दिनों अपने अभिनय और गायन की वजह से अपनी पहचान बना रही हैं। अपने पिता शक्ति कपूर की विलेन वाली छवि से कोसों दूर श्रद्धा ने अपने लिए अलग ही फ़िल्मों का चुनाव किया है। जल्दी ही प्रदर्शित होने वाली 'रॉक ऑन 2' में वे एक रॉक सिंगर और बैंड मेंबर के रोल में हैं। गाने सुन कर तो यही लगता है कि रोल हर बार की तरह एक क्यूट सी गर्ल नेक्ट डोर से कुछ ज़्यादा होने वाला है। भू‍मिका में जहां इमोशन हैं, अपने ज़िंदगी की पीड़ा को दिखाना है तो वहीं म्यूज़िक थैरेपी से अपने दिल को मरहम भी लगाना है। उनकी इस फ़िल्म औऱ इस रोल के बारे बात की हमारी संवाददाता रूना आशीष ने। 
कुछ समय पहले की आरोही और रॉक ऑन की जिया में क्या अंतर आया है?
मुझे लगता है कि 'मेरी गलियां' जो गाना मैंने गाया था, उसके बाद अब जो गाने गाए हैं उनमें बहुत अंतर आ गया है। इसमें ठहराव आ गया है। जब मैं बात भी कर रही हूं तो आवाज़ में संजीदगी लगती है। इसे बेसी आवाज़ कहा जा सकता है। यह ट्रेनिंग का असर है। 
 
आपने 'रॉक ऑन 2' में एक रॉक सिंगर की भूमिका निभाई है, इसकी कितनी तैयारी करनी पड़ी?
इस रोल में गाने के लिए मैंने एक जैज़ सिंगर से ख़ास ट्रेनिंग ली। मुझे जैज़ के साथ साथ ब्रीदिंग के बारे में भी सिखाया गया, कि अगर गाने के बीच में कभी सांस लंबी लेनी हो या रोकनी पड़े तो कैसे किया जाए ताकि गाना बुरा ना लगे। कुछ एक्सरसाइज़ेस बड़ी फनी भी थी। मेरे गाने उर्जा में मुझे गाना था चल उड़ जा रे और इसे बहुत देर तक गाते ही रहना था तो ऐसे में ट्रेनिंग ने मेरी बहुत मदद की। संगीतकार शंकर को तो पूरा भरोसा था मुझ पर, लेकिन मुझे लगता था कि मैं नहीं कर पाऊंगी। 
 
रॉक ऑन 2 की आप सबसे नई सदस्य हैं, तो इस फ़िल्म में ये किरदार बाकी के लोगों से कैसे जुड़ा हुआ है?
देखिए इस फिल्म में सभी के अपने मसले हैं। कोई न कोई किसी न किसी कॉन्फ़्लिक्ट से जुड़ा हुआ है। मेरी भी अपनी एक कहानी और लड़ाई है। मेरा नाम फ़िल्म में जिया शर्मा है। मैं एक की-बोर्ड प्लेयर, प्रोग्रैमर और साथ ही सिंगर भी हूं। आपने यदि ट्रेलर देखा हो तो आपको मालूम पड़ेगा कि मेरे एक पिता हैं जिन्हें मैं कहती हूं कि अगर मैं गाना छोड़ दूं तो क्या आप तब ख़ुश हो जाएँगे, यानी कि कुछ है जो मुझे बांधे हुए है, मुझे आगे बढ़ने से रोकता है। 
 
आप लता मंगेशकर की रिश्तेदार हैं तो आपके गाने में उनका कितना योगदान रहता है?
लता मंगेशकरजी तो मेरी मौशी आजी (मौसी दादी) हैं। उनको हम लता आजी (लता दादी) भी कहते हैं। वे तो मेरे लिए प्रेरणा हैं। मेरी मां शिवांगी कोल्हापुरे बचपन में कई फ़िल्मों में गा चुकी हैं। उनकी आवाज़ ढंग से सुनो तो लगता है कि लता दादी की बचपन की आवाज़ लगती है। बाद में उन्होंने अपनी पूरी ज़िंदगी हम बच्चों के नाम कर दी। आज भी हम सब घर वाले साथ में होते हैं तो मां कहती हैं, चलो मेरे साथ गाओ। हम भाई-बहन गाते हैं और बाद मे वे बताती हैं कि हमने अभी ये वाला राग गाया है। 
 
आपके घरवाले आपकी उपलब्धि पर क्या कहते हैं?
अच्छा लगता है घरवालों के मुस्कुराते चेहरे देखना, ये देखना कि वो आप पर गर्व महसूस करते हैं। कभी-कभी तो ऐसे होता है अचानक रात दो बजे मेरे पापा का मैसेज मोबाइल पर आता है कि मुझे तुम पर नाज़ है.. आशा है कि ऐसे मैसेजेस मुझे आते रहेंगे। हाल ही में मेरी एक दोस्त ने कहा कि उसे मेरा काम पसंद आया और मेरी ये दोस्त आमतौर पर कभी तारीफ़ नहीं करती।  ऐसे में उसका तारीफ़ करना यूं लगा कि चलो इसने तारीफ़ कर दी है तो मैंने कुछ तो अच्छा कर ही दिया है। एक दौर वो भी था जब मुझे लगा कि क्या मुझे एक्टिंग छोड़ देना चाहिए, क्या मुझमें वो बात नहीं है कि मैं एक हिट फ़िल्म दे सकूं, लेकिन मैं इतनी भाग्यशाली हूं कि घर में ही सपोर्ट सिस्टम है। 
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सह-कलाकार के रूप में फ़रहान अख्तर कैसे लगे?
मुझे फ़रहान बहुत पसंद हैं। उनकी 'दिल चाहता है' मेरी पसंदीदा फिल्म है, 'लक्ष्य' भी पसंद है। वह बहुत पैशनेट हैं। संजीदगी से रोल करते हैं। वह मस्टीटैलेंटेड हैं, वे लिखते हैं, अभिनय करते हैं, फिल्म निर्माता और निर्देशक भी हैं। 
 
सुनने में आया था कि पूरब कोहली और अर्जुन रामपाल आपसे ख़फ़ा से हैं क्योंकि इस फ़िल्म को प्रमोट करने के लिए आप जा रही हैं। उन्हें लग रहा है कि उन्हें एक तरफ़ कर दिया गया है? 
ऐसा तो कुछ नहीं है। हम अभी एक दो दिन पहले ही मिले थे। वे बड़े मज़ाकिया मूड में थे। वैसे भी वे मुझसे सीनियर हैं। पता नहीं ये बातें कब और कहां से आई हैं? हम लोगों ने तो फ़िल्म के सेट पर क़ाफ़ी मस्ती की थी। 
 
आप मराठी भाषी हैं, क्या मराठी फ़िल्में करेंगी?
मुझे बहुत अच्छा लगता है कि मराठी फ़िल्में इतना बेहतरीन कर रही हैं। मुझे भी मराठी फ़िल्म करनी चाहिए, हालांकि बहुत फ़िल्में मैंने देखी नहीं हैं, लेकिन करना चाहूंगी। हां, इसके लिए मुझे अपनी मराठी पर काम करना होगा।  
 
फ़िल्म के लिए आपने शिलांग में शूटिंग की। कैसी लगी वो जगह? 
शिलांग एक बेहद ही ख़ूबसूरत जगह है। हरियाली, साफ और ताजी हवा है वहां। कोई बिल्डिंग नहीं, गंदगी नहीं।  शिलांग हमारे देश की रॉक कैपिटल है। 
 
आपको कोई पसंदीदा गाना है जो आप बचपन में गुनगुनाया करती थीं?
मुझे 'माचिस' का गाना 'पानी पानी रे' बहुत पसंद है। मैंने अपने स्कूल के वार्षिक समारोह में गाया भी था और मुझे तीसरा स्थान मिला था। मैं ख़ुश नहीं थी क्योंकि मुझे पहला स्थान चाहिए था, पर मैडल  तो मिला। मुझे एक और गाना 'ये गलियां ये चौबारा' भी खूब पसंद था। मेरी मासी पद्मिनी कोल्हापुरे के गानों के अलावा मुझे डेविड धवन की फ़िल्मों के गाने भी पसंद हैं। 
 
हाल ही में सोनम कपूर ने अपने एक इंटरव्यू में कहा था कि फिल्म कौन हीरोइन होगी, ये एक अभिनेता निर्णय लेता है। आप का क्या कहना है?
क्या सच में उसने ऐसे कहा? हो सकता है कि ये उसकी सोच है, लेकिन मुझे तो लगता है कि एक निर्देशक निर्णय लेता है कि किस हीरोइन को लेना चाहिए। आख़िर उसे फ़िल्म बनानी है और होना भी यही चाहिए। 
 
आप अपने से जुड़ी लिंक अप्स की ख़बरों के बारे में क्या सोचती हैं?
मुझे ऐसा लगता है कि ये सही नहीं है। हम फ़िल्म के बारे में पत्रकारों से बात करें, अपना समय उन्हें दे और हमें पढ़ने को  क्या मिलता है? पत्रकारों को थोड़ा जिम्मेदार और सेंसेटिव होना चाहिए। हम भी इंसान हैं। हमें भी घरवालों से नज़र मिलानी है।  जब मैंने फ़िल्म के लिए इंटरव्यू दिया है तो मेरे काम के बारे में लिखिए और वे लिंक अप की खबर लिख देते हैं। मेरे घर वाले ऐसे में मुझे मनाते हैं और कहते हैं कि ये सब चलता रहता है। मेरे पिता ने मुझसे कहा था कि मैं ख़ुश हूं कि तुम सिंगल हो और अपनी फ़िल्मों के साथ रोमांस कर रही हो, मेरे लिए ये क़ाफ़ी है। 

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