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मैं किसी से नहीं डरता : सनी देओल

हमें फॉलो करें मैं किसी से नहीं डरता : सनी देओल
सनी देओल का जिक्र होते ही मन में एक्शन स्टार की छवि उभर आती है।  वे अपने करियर की महत्वपूर्ण फिल्म 'घायल' का सीक्वल 'घायल वंस अगेन' लेकर आ रहे हैं। एक मुलाक़ात के दौरान उन्होंने इस फिल्म की जर्नी सहित अपनी रील और रियल लाइफ के बारे में विस्तार से बातचीत की। प्रस्तुत है प्रमुख अंश: 
 
'घायल' और 'घायल वन्स अगेन' में एक पीढ़ी का अन्तराल है। 'घायल वन्स अगेन' किस तरह इस गैप को भरेगी?     
घायल जहां खत्म हुई, 'घायल वन्स अगेन' वहां से शुरू होती है। अजय मेहरा पकड़ा गया और जेल चला गया था। उसके बाद उसकी जिंदगी कैसी रही। आज 2015 में वो क्या कर रहा है और किस तरह से कर रहा है, किस तरह की उसकी जर्नी है, ये सब देखने को मिलेगा। घायल की टीआरपी आज तक बरकरार है। यही कारण है कि अक्सर टीवी पर यह फिल्म आती रहती है। आज की पीढ़ी के भी बहुत से लोगों ने 'घायल' टीवी पर देखी होगी। 'घायल वन्स अगेन' के लिए युवाओं को लिया गया है। जैसे 'घायल' के वक्त मैं युवा था। फिर जो ट्रेलर आया है, अगर वो लोगों को पसंद आया, तो वे जरूर फिल्म देखने जाएंगे।
 
घायल वंस अगेन में एक्शन ही है या इमोशन भी हैं?
मेरी कोई भी फिल्म देख लीजिए, उसमें सिर्फ एक्शन नहीं होता। मैंने जितनी भी फिल्में की हैं, उनमें इमोशन होता ही है। इस फिल्म में भी मैं जो भूमिका कर रहा हूं वो अंत तक सच्चाई, अपने परिवार या उसकी गर्ल फ्रेंड है, के लिए लड़ रहा होता है। इस तरह से उस एक्शन का भी एक इमोशनल कंटेंट है। ऐसा नहीं कि मॉल में चला गया और लोगों को मारता गया। 'घायल वन्स अगेन' भी एक्शन के साथ इमोशन फिल्म है। ये आज की सोसायटी की फिल्म है। आज के लोगों की फिल्म है। बचपन से हम देखते आ रहे हैं कि लोग अपने बच्चों की गलतियां छिपाते रहते हैं। उनके लिए कुछ भी करने को राजी हो जाते हैं। हमने ऐसे मुद्दे पकड़े हैं और दिखाया है कि कि कैसे वो रियेक्ट करते हैं, कैसी जिंदगी जीते हैं।
खुद डायरेक्शन का ख्याल कैसे आया ?
डायरेक्शन इसलिए करने का सोचा क्योंकि पहले जब कई साल पहले मैंने इसके बारे में सोचा तो जो भी इसे डायरेक्ट कर रहा था, लिख रहा था, मुझे उसमें मजा नहीं आया। इसमें काफी वक्त चला गया। फिर मैंने खुद लिखना शुरू किया क्योंकि मैं घायल के सीक्वल में वो देखना चाहता था, जो मेरी इच्छा थी। आपको बता दूं जब 'घायल' बन रही थी तब उसकी कहानी भी कई लोगों को  पसंद नहीं आई थी। बनते-बनते भी कई इश्यू आएं, लेकिन मैंने कहा था कि फिल्म रिलीज हो जाने दो, अगर दर्शकों ने नकार दिया तो कम से कम हमें ये तो पता चलेगा कि हमारी सोच गलत थी। 'घायल वन्स अगेन' पर काम करते समय भी मैंने यही कोशिश की कि ये आम आदमी, आम फैमिली को रिलेट करे और इसमें आज का माहौल हो। हमारे घर के अंदर क्या हो रहा है, क्यों हो रहा है इसको देखते हुए मैंने सब कैरेक्टर बनाएं हैं।  
 
इसकी कहानी पर काम करते क्या कभी मार्केट के दबाव में आए या केवल दिल की सुनकर कहानी की मांग पूरी करते गए? 
मैंने हमेशा वही किया जो दिल ने कहा। मैं अक्सर वही करता हूँ, जिसमें मैं विश्वास करता हूँ। आदमी ठोकर खाता है, लेकिन वह रूक तो नहीं जाता। वैसे भी मैं इन चीजों को बहुत गंभीरता से नहीं लेता क्योंकि अगर आप मार्केट के दबाव में आते हैं तो आप वो नहीं कर पाएंगे जो आप करना चाहेंगे। आज के दौर में यह ज़रूरी है कि फाइनेंशियल पक्ष को ध्यान में रखा जाय। बड़ी मुश्किल से ऐसा मौका मिलता है, जब फाइनेंशियली भी सब सही हो और आप अपने मन का भी कर जाएँ। मैं हमेशा कहानी की मांग ही पूरी करता रहा हूँ और इसमें भी यही किया है।  
 
आप इस उम्र में भी एक्शन कर रहे हैं। परिवार की तरफ से विरोध नहीं हुआ?
उम्र की बात तो मीडिया ने शुरू की है। मुझे नहीं पता कि इस उम्र के लोगों को क्या करना चाहिए, क्या नहीं। काम को लेकर मैंने अपनी उम्र के बारे में न तो युवावस्था में सोचा न अब सोचता हूँ और न ही आगे सोचूंगा। परिवार की तरफ से तो शुरू से ही मुझे खतरनाक एक्शन करने से रोका जाता रहा। 
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हिंदी सिनेमा में एक्शन का श्रेय आपको दिया जाता है। 'घायल वन्स अगेन ' के लिए आपने हॉलीवुड के एक्शन डायरेक्टर को लिया है। फिर कोई नया ट्रैंड स्‍थापित करने का इरादा है?
नहीं-नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है। जब 'बेताब' की, 'अर्जुन' की, तो भी अधिकांश टेक्नीशियन बाहरी थे। एक्शन करने में फिजिक्स -साइंस कई चीजें लगती हैं। मुझे वो सब चाहिए था और उनमें इन सबकी समझ होती है। वे इसमें माहिर होते हैं। इसके अलावा मुझे असली एक्शन चाहिए था। ऐसा नहीं कि एक ने मारा तो कई हवा में उड़ते हुए दूर गिरे। मुझे तो ऐसा एक्शन चाहिए था कि मैं किसी को मारूं तो ऐसा दिखे कि मुझे भी चोट लग रही है। डॉन ब्रेडली इसमें माहिर हैं और सबसे बड़ी बात कि उस समय वे उपलब्ध थे। 
 
फिल्मों में आप रौबीले अंदाज में लड़ाई करते दिखते हैं, तो दूसरी तरफ किसी रियलिटी शो या पर्दे के पीछे काफी शांत, विनम्र और संस्कार वाले दिखते हैं। सनी देओल की परिभाषा क्या हो सकती है?
(हँसते हैं) मैं खुद अपने बारे में कैसे बताऊँ? हम फिल्म में एक कैरेक्टर होते हैं. अदरवाइज़ हम हम हैं। उसके अलावा हम कोई रूप क्यों लें। मैंने फ़िल्में भी ऐसी कि, जिसमें सोसायटी की जो सच्चाई दिखी, जो मैंने आवाज़ उठाई, उसने लोगों को काफी रिलेट किया। दूसरे जहाँ से मैंने करियर शुरू किया, जिस फैमिली से मैं आता हूँ और जिस तरह के मुझे संस्कार मिले, उन सबका परिणाम हूँ। 
 
धर्मेन्द्र के काम को अक्सर नज़रअंदाज किया जाता है जबकि फिल्म इंडस्ट्री में उनका 50 वर्ष का योगदान है। इस अन्याय को लेकर आपके परिवार कोई चर्चा हुई?
ये अन्याय, न्याय किसने किया है। कुछ लोगों ने किया है। हम जहाँ भी जाते हैं, हमें लोगों का प्यार मिलता है। ये प्यार करने वाले अपने दिमाग में किसी अवॉर्ड को ध्यान में रखकर नहीं आते। ये प्यार हमारे काम के बदले मिलता है। फिर शोर क्या मचाना। जिन लोगों को लगता है कि उसमें गलत हुआ है, तो वे कुछ लोगों से बनी संस्था की बातों को नहीं मानेंगे।
             
आप अपनी कौन सी खूबी चाहेंगे कि आपका बेटा भी उसे अपनाए और आपकी किस आदत से भगवान उसे दूर रखे?
खूबी के बारे में क्या कहूं, मैं चाहता हूं कि जैसे हर चीज में मैं जब तक जीतता नहीं तब तक हटता नहीं। जो मेरा जूनून है वो मेरा बेटा भी फॉलो करें। मेरे ख्याल से ये हर एक्टर में होना चाहिए और उसे क्या नहीं करनी चाहिए, ये तो मुझे सोचना पड़ेगा... देखिए हर आदमी की अपनी एक पर्सनालिटी होती है और उसी के अन्दर वह कुछ करता है, कुछ नहीं करता, ये सब जानबूझ कर नहीं होता। बस मैं चाहूंगा कि वो डरे नहीं सच्चाई के साथ आगे बढ़े। क्योंकि हमारे घर में तो सब इसी पर चलते हैं।
 
पिछले दिनों सोशल मीडिया में एक मैसेज चला था कि शाहरूख खान (वीरजारा) पाकिस्तान में 22 साल जेल में रहकर आया, बजरंगी भाईजान मार खाकर आया। अपना शेर तो एक ही है सनी देओल। ये इत्तेफाक कैसे हुआ कि आपके पास सब ऐसी ही फ़िल्में आईं? या डायरेक्टर-प्रोड्यूसर को ये डर रहा कि दर्शक आपको लाचार हो मार खाते नहीं देख सकते?  
हा-हा-हा... 'बॉर्डर' में मैंने मेजर कुलदीप सिंह चांदपुरी सर का रोल किया था। उनकी टोली काफी छोटी थी और सामने इतनी बड़ी चुनौतियां थी। उसे मैंने किया तो लोगों को उस रोल में इतनी विश्वसनीयता दिखी कि लोगों को लगा कि ये कुछ भी कर सकता है। मेरी दूसरी फिल्मों में भी लोगों को लगा कि इसमें एक सच्चाई झलकती है। जैसे मैंने 'गदर' की, जिसमें एक व्यक्ति अपनी बीवी को लाने के लिए जाता है, कोई लड़ाई-झगड़ा करने तो जाता नहीं है, लेकिन आप जैसा कह रहे हैं मैं वैसा नहीं सोचता। हर फिल्म में तो सुपरमैन नहीं हो सकता। मैं तो कैरेक्टर प्ले कर रहा होता हूँ। उसमें तकलीफें भी हो सकती हैं। तकलीफें झेलकर जो बढ़ता है, वो तगड़ा बनता है।  

आज 100 करोड़ की कमाई को फिल्म की सफलता का पैमाना बना दिया गया है। अपनी फिल्म को लेकर कोई दबाव महसूस कर रहे हैं?
यदि मैं इन सब बातों को लेकर चला होता, तो मैं आज बदला हुआ होता। आज भी मुझे कितनी चीजों से दिक्क़त होती है, लेकिन मैं बदल नहीं रहा हूँ। कइयों ने माहौल को लेकर अपने में बदलाव कर लिए, लेकिन मैं वही हूँ। 
 
आपको नहीं लगता कि आपके प्रशंसकों को आपसे कुछ ज़्यादा की उम्मीद हैं, लेकिन आपने अपने को सीमित रखा?
ऐसा कुछ नहीं है। मैंने अच्छी फ़िल्में की हैं, इसलिए वो मुझे चाहते हैं। अवॉर्ड फंक्शन में जाकर नाचना, झूठे अवॉर्ड लेना और गॉसिप का हिस्सा बनना मुझे कभी अच्छा नहीं लगा। उससे हासिल क्या होता है? हासिल तो तब हो जब मुझे लगे कि मैंने कुछ अच्छा किया है। जो मैं कर चुका हूँ, उसी के लिए लोग मुझे आज भी प्यार करते हैं।     
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ऐसी कोई बात जिसे लेकर आपके मन में डर रहता हो ?    
मैं किसी चीज से डरता नही हूं सिवाय अपने पैरेंट्स के। मेरा स्वभाव ही ऐसा है कि यदि मुझसे गलती होगी तो शरमाऊंगा नहीं।  सामने से माफी मांग लूंगा। स्वीकार करूंगा। हां और ना करने की ईमानदारी और साहस है तो डरना क्या। छुपके चालाकी से कुछ भी नहीं कर सकता।
 
मेहनत और सफलता में किस तरह का सम्बन्ध देखते हैं?
मैं शुरू से ये मानता रहा कि मेहनत करो, सफलता मिलेगी। कभी-कभी लक फैक्टर भी होता है। अब ये लक फैक्टर क्या है, मालूम नहीं, कहां से आता है, पता नहीं और वो किस चीज से शुरू होता है ये भी नहीं जानता। कभी-कभी लक फैक्टर बहुत जरूरी हो जाता है। पर बगैर मेहनत किए ये लक फैक्टर भी आपके पास नहीं आ सकता।

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