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बच्चे की मुस्कराहट नहीं लिख पाया-निदा फाजली

भीका शर्मा

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Bhika Sharma
WD
हिन्दी सिनेमा को ‘तू इस तरह से मेरी जिंदगी मे शामिल है’, ‘आ भी जा... आ भी जा...ए सुबह आ भी जा’, ‘होशवालों को खबर क्या’ जैसे कई एव्हरग्रीन गीत देने वाले शायर निदा फाजली से पिछले दिनों मुलाकात हुई। पेश है बातचीत के कुछ खास अंश।

शायर कैसे बने?

हम वो बन जाते है जो इत्तेफाक बना दे। इस देश में किसी को अपना रोजगार चुनने की आजादी नहीं है। वो कहते है ना ‘क्या करने आए थे और क्या कर चले’।; मैं चोर भी बन सकता था और गुंडा भी या फिर गैंगस्टर ही बन जाता। लेकिन हालत ने मेरे सामने एक यही रास्ता छोड़ा और मैं शायर बन गया। यह सच है कि मैंने कभी शायर बनने के बारे नहीं सोचा था।

गजल का क्या मिजाज है आजकल?

यह कोई सामूहिक काम नहीं, व्यक्तिगत काम है। साहित्य में निराला का एक विशेष स्थान है, लेकिन उनके युग में भी 'बेवकूफ साहित्यकारों' की एक फौज हुआ करती थी। गालिब के जमाने में भी कई ऊलजलूल शायर हुए हैं। आज भी कई साहित्यकार हैं जो अच्छा नहीं बल्कि बहुत अच्छा लिखते हैं। तो अच्छी गजलें तो हर युग में लिखी जा रही हैं।

फिल्म 'देल्ही बैली' के गालियों से भरे संवादों को क्या उचित ठहराया जा सकता है?

ये माना कि इस फिल्म में एक कमरे में रह रहे तीन युवाओं को दिखाया गया है और वे जिस तरह बातें करते हैं वह आज के युवाओं के बातचीत करने का तरीका है। लेकिन बहुत सी चीजें हकीकत होती हैं पर हम उन्हें पर्दे पर तो नहीं दिखाते। शौहर बीवी का भी एक बंद कमरे का रिश्ता होता है लेकिन हम उसे तो इस तरह दिखाते नहीं हैं ना। सवाल यह है कि आर्ट क्या है? पूरे विश्व से रोमांस गायब हो गया है, क्योंकि समस्याएं जटिल हो गई हैं।

समाज में फैले भ्रष्टाचार के बारे में एक शायर क्या सोचता है?

हालात ऐसे हैं कि ज्ञान के होते हुए भी आप अज्ञानता के घेरे में हैं। भारत की तीन चौथाई जनसंख्या महाश्वेता देवी के उपन्यास में है, जिन्हें एक्सप्लाइट करने के लिए सारे हथकंडे अपनाए जाते हैं। लेकिन आजादी के इतने सालों बाद भी यह तीन चौथाई भाग नंगा है भूखा है। भ्रष्टाचार एक विश्वव्यापी मुद्दा है। अमेरिका जैसे विकसित देश भी इसकी गिरफ्त में है। देखना यह है अण्णा हजारे या बाबा रामदेव की कोशिशें क्या कर पाती हैं।

अब देखिए ना विलासराव देशमुख जिसने कभी क्रिकेट का बल्ला नहीं पकड़ा वह वेंगसरकर को हराकर राज्य के क्रिकेट बोर्ड का अध्यक्ष बन जाता है। हर चीज का राजनीतिकरण हो गया है।

आप कुछ लिखते नहीं इस भ्रष्टाचार पर पर?

(व्यंगात्मक मुस्कान के साथ) ‘ क्रिकेट, नेता, बॉलीवुड हर महफिल की शान
स्कूलों में कैद है गालिब का दीवान’

इन सब चीजों से बाहर निकलें तभी तो लोग कुछ लिखेंगे या पढ़ेंगे।

आजकल के गीत कहां जा रहे हैं?

(हंसकर) ‘अपनी जगह जा रहे हैं’ पहले सामाजिक जिम्मेदारी होती थी, अब सब धंधा हो गया है। पहले सिचूएशन होती थी, लिखने वाला भी जानता था। अब न संगीतकार को मालूम है न प्रोड्यूसर को न डायरेक्टर को। बस चल रहा है सब।

आपकी अपनी रचनाओं में से कोई पसंदीदा रचना

जैसे एक मां को अपने सभी बच्चे प्यारे होते हैं, वैसे ही मुझे अपनी सारी रचनाएं पसंद हैं।

हम लबों से कह न पाए उनसे हाल-ए-दिल कभी और वो समझे नहीं ये ख़ामोशी क्या चीज़ है।

काफी खूबसूरत रचना है जगजीत सिंह ने न सिर्फ इसे खूबसूरती के साथ गाया बल्कि कंपोज भी किया है।

आपके पंसदीदा शायर कौन हैं?

मेरी नजरों में संसार का सबसे बड़ा कवि या साहित्यकार बच्चा है जिसकी मुस्कराहट को मैं आजतक नहीं लिख पाया। जब भी लिखता हूं तो उस जैसी निश्चल, निर्मल मुस्कराहट का प्रभाव शब्दों में नहीं आता, क्योंकि शब्द पॉल्यूटेड हो चुके हैं।

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