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सत्ता और वर्चस्व की लड़ाई है राजनीति : प्रकाश झा

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एक बेहतर फिल्म निर्माता होने के साथ प्रकाश झा एक बेहतरीन निर्देशक, लेखक और एडिटर भी हैं। कई विधाओं को एक साथ जीने वाले प्रकाश झा राजनीति में अपना भाग्य चमकाने के बिहार से चुनाव भी लड़ चुके हैं। अपनी फिल्मों के माध्यम से हमेशा सामाजिक मुद्दों को दर्शकों के सामने लेकर आते हैं और यही वजह है कि गंगाजल, अपहरण जैसी उनकी फिल्में लोगों को पसंद आती हैं। इस बार वो मल्टीस्टार फिल्म राजनीति लेकर आ रहे हैं, जिसमें अजय देवगन, मनोज बाजपेयी, रणबीर कपूर, कैटरीना कैफ, अर्जुन रामपाल और नाना पाटेकर मुख्य भूमिका निभा रहे हैं। हाल ही में उनसे बातचीत की साक्षी त्रिपाठी ने पेश है उसी बातचीत के मुख्य अंश-

‘राजनीति’ में किस प्रकार की राजनीति दिखा रहे हैं?
केवल पॉलिटिक्स की राजनीति नहीं है। व्यक्तिगत, परिवारिक और समाज की राजनीति को भी इसमें बखूबी दिखाया गया है। हम यहाँ पर हर वक्त कोई न कोई राजनीति खेलते रहते हैं। यहाँ पर सत्ता और वर्चस्व की लड़ाई है जो इस फिल्म में दिखाई गई है।

आपने कब सोचा कि आपको राजनीति पर फिल्म बनानी चाहिए ?
पता नहीं कब और कैसे मेरे दिमाग में आया, लेकिन छोटे-छोटे कई घटनाक्रम, कई बातें और चरित्र मेरे दिमाग में चलती रहती हैं। एक वक्त ऐसा आया, जब सब कुछ दिमाग में एक साथ इकठ्ठा हो गया और मैने सोचा कि जो हमारे इर्द-गिर्द राजनीति हो रही है उस पर फिल्म बनाई जाए ताकि हम अपने दर्शकों को बता सकें कि हमारे जीवन में राजनीति क्या मायने रखती है।

वर्तमान में आप राजनीति को कहाँ पाते हैं?
वर्तमान हो या अतीत या फिर महाभारत जैसा कोई भी पौराणिक काल हर जगह जीत मायने रखती है। यह एक ऐसा क्षेत्र है जहाँ कोई भी नंबर दो नहीं होना चाहता है। जीत किस कीमत पर मिलती है। उसके लिए क्या-क्या दाँव पर लगते हैं। कितनी चीजें खोई, क्या-क्या गँवाया, अपनी आत्मा से कहाँ तक समझौता किया। इसी की दास्तान है मेरी फिल्मी राजनीति। अब आप ही बताइए कि महाभारत में इतनी बड़ी लड़ाई लड़ी गई, लेकिन जीतकर भी पाँडवों को क्या मिला। यही राजनीति की विडंबना है।

तो क्या यह पीरियड फिल्म है?
हमारे चरित्र महाभारत से लिए गए हैं और वे उसी का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। महाभारत की कहानी नहीं बल्कि चरित्र को आज की राजनीति से जोड़कर एक इमोशनल कहानी बनाई गई है।

आपकी फिल्में कितनी कमर्शियल होती हैं?
मैं डाक्युमेंट्री फिल्में तो बनाता नहीं हूँ, कमर्शियल फिल्म बनाता हूँ। जिसमें लागत लगती है और वह मुनाफे के साथ वापस आनी चाहिए। यह तभी संभव है जब लोग फिल्में देखेंगे। लोग फिल्में देखेंगे तभी पैसा आएगा।

क्या वजह है कि आपकी फिल्में हमेशा सामाजिक मुद्दों को लेकर चलती हैं?
कुछ बातें कहनी चाहिए और अपनी बात कहने का यह एक माध्यम है। इस माध्यम में एक कहानी कहते हुए भी अपनी बात कहनी चाहिए। मेरा प्रयास रहता है कि संतुलन बना कर चला जाए। नाच-गाने वाली फिल्मों के साथ हमारे जैसी फिल्में भी बननी चाहिए। मैं कोई स्पेशल बात नहीं कहता, लेकिन कहानी कहते-कहते कोई बात सामने आ जाती है। हमारी कोशिश होती है कि अच्छी फिल्म बने जो दर्शकों को मनोरंजन दे सकें और उन्हें अपनी फिल्मों में बाँध सकें ।

हाल ही में आपने बिहार में एक न्यूज चैनल मौर्या की शुरुआत की?
बिहार में डिमांड भी थी कि वहाँ का अपना चैनल हो। इसलिए मैने चैनल शुरू किया।

भविष्य में ऐसा ही कुछ मुंबई के लिए भी करना चाहेंगे?
अगर मुंबई की बात करें तो यहाँ पर काम करने वाले बहुत सारे लोग हैं। यह देश की आर्थिक राजधानी है जहाँ पर बहुत कुछ होता रहता है। मुंबई के बाहर निकलकर महाराष्ट्र के दूसरे शहरों में काम करना है।

राजनीति के बाद कौन से प्रोजेक्ट पर काम कर रहे हैं?
इसके बाद आरक्षण बनाने जा रहा हूँ। महिलाओं का आरक्षण, नौकरी का आरक्षण और पढ़ाई का आरक्षण। आज आरक्षण शब्द किसी न किसी रूप में हमारी जिंदगी में बस गया है और लगातार चर्चाओं में भी रहता है, उसी पर फिल्म बनाने की तैयारी कर रहा हूँ।

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