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जिंदगी की न टूटे लड़ी...

नितिन मुकेश : लता अंकरण 2008

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सुनील मिश्र

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उनकी वाणी में ईश्वर ने गजब की मिठास घोली है। उनका ‍न सिर्फ गाना बल्कि बोलना-बात करना ही इतना शिष्ट, शालीन और अमृतमयी प्रभावों से भरा होता है कि उनको हमेशा सुनते रहने का मन करता है। वे बीसवीं शताब्दी के महान पार्श्व गायक स्वर्गीय मुकेश के बेटे हैं। हम नितिन मुकेश की बात कर रहे हैं।

नितिन मुकेश को मध्यप्रदेश सरकार का सुगम संगीत के क्षेत्र में प्रदान किया जाने वाला प्रतिष्ठित लता मंगेशकर सम्मान वर्ष 2008 प्रदान किया जा रहा है। इस सम्मान में उन्हें दो लाख रुपए की राशि और प्रशस्ति पट्‍टिका, शाल व श्रीफल के साथ प्रदान की जाएगी। राष्ट्रीय लता मंगेशकर सम्मान मध्यप्रदेश सरकार का प्रतिष्ठित अवॉर्ड है जो हर वर्ष बारी-बारी से पार्श्व गायन एवं संगीत निर्देशन के क्षेत्र में प्रदान किया जाता है।

नितिन मुकेश इस सम्मान से सम्मानित होने वाले चौबीसवें कलाकार हैं। फिल्म संगीत के क्षेत्र में पार्श्व गायकों में वरिष्ठ नितिन मुकेश एक ऐसे गायक कलाकार हैं जो जमाने के चलन और विशेषकर फिल्म संगीत में विगत कुछ वर्षों से आए तकनीकी और मौलिक परिवर्तनों के बावजूद अपनी गरिमा को बरकरार रखकर सक्रियता बनाए हुए हैं। नितिन मुकेश जहाँ-जहाँ जाते हैं अपने पिता के गीतों को ऐसा डूबकर गाते हैं कि बंद आँखों में हमें मुकेश के होने का एहसास होता है।

नितिन मुकेश बचपन से ही माता-पिता के आज्ञाकारी और जिम्मेदार पुत्र रहे हैं। उन पर पिता का गहरा प्रभाव रहा है। उन्होंने सिंधिया स्कूल ग्वालियर से पढ़ाई की। परिवार में संगीत का वातावरण होने के बावजूद उन्होंने पंडित जगन्नाथ मिश्र, उनके उस्ताद फैयाज़ अहमद और छोटे इकबाल साहब से तालीम ली।

उनको अपने पिता की अनुमति से पहला अवसर शंकर-जयकिशन के संगीत निर्देशन में राजकपूर की बहुचर्चित फिल्म 'मेरा नाम जोकर' में कुछ अंग्रेजी पंक्तियाँ गाकर मिला, ‘विथ ए चीयर, नॉट ए टियर इन योर आय’। लेकिन नितिन ने अपने पिता मुकेश की गाई संपूर्ण रामायण में भी बीच-बीच में कुछ पंक्तियाँ गाई थीं।

बहुत ही कम लोगों को शायद मालूम हो कि नितिन, प्रख्यात निर्देशक हृषिकेश मुखर्जी के सहायक रहे हैं। यह विशिष्ट बात ही है कि उन्होंने निर्देशन का पाठ भी पढ़ना चाहा तो उन्हें हृषिदा का स्कूल सबसे आदर्श लगा।

उनके पास हृषिदा के सहायक रहते हुए आनंद/गुड्‍डी/ बुड्‍ढा मिल गया/नमक हराम/बावर्ची/अभिमान/चुपके-चुपके/चैताली और मिली जैसी श्रेष्ठ फिल्मों के अनुभव भी हैं।

एक बार एक मुलाकात में नितिन मुकेश ने बताया भी था कि उस समय मन में फिल्म निर्देशन की एक बड़ी उत्कण्ठा रहती थी। मुकेशजी भी यह सोचते थे कि मेरी शुरुआत निर्देशन से होगी।

1974 में जीनियस अभिनेता-निर्देशक किशोर साहू ने एक फिल्म धुएँ की लकीर बनाई थी। उस फिल्म में वाणी जयराम के साथ एक डुएट, तेरी झील सी गहरी आँखों में, कुछ देखा हमने, क्या देखा, गाकर नितिन मुकेश चर्चा में आए। यह गाना बहुत रूमानी और अच्छा था, इसलिए चर्चित भी हुआ और जानने वालों का ध्यान नितिन मुकेश पर गया। इस फिल्म के संगीतकार श्याम जी घनश्याम जी थे। उसी समय सलिल चौधरी के संगीत निर्देशन में उन्होंने सबसे बड़ा सुख फिल्म में भी गाया और उनकी प्रतिभा को परिवेश में मुकम्मल पहचान मिलने लगी।

नितिन मुकेश की प्रतिभा और साधना को उस समय सबसे ज्यादा प्रोत्साहन मिला जब उन्होंने राजकपूर की फिल्म सत्यम् शिवम् सुंदरम् के लिए लता मंगेशकर के साथ डुएट गाया, मैं कैसे उसे पसंद करूँ, मैं कैसे आँखें बंद करूँ। यह फिल्म और इस फिल्म का संगीत बेहद सफल रहा था।

जब यह फिल्म रिलीज हुई थी तब नितिन के पिता मुकेशजी का देहावसान हो चुका था। एक भावुक वातावरण था और इसी बीच फिर नूरी में लताजी के साथ उनका गाया आ जा रे, आ जा रे ओ मेरे दिलबर आ जा, दिल की प्यास बुझा जा रे और त्रिशूल में भी लता जी के साथ गाया उनका गाना, गापुची गापुची गम-गम बहुत सफल रहा।

निर्माता-निर्देशक-अभिनेता, गीतकार मनोज कुमार की हर फिल्म में उनके लिए मुकेश ही गाते थे। महेंद्र कपूर कुछ खास तरह के गानों के लिए मनोज कुमार के लिए गाते थे। मनोज कुमार के लिए भी मुकेश जी का जाना एक बड़ी घटना थी।

किसी हद तक इसकी भरपाई नितिन मुकेश ने की, यह बात भी स्वीकारी जानी चाहिए। हालाँकि वे अपने पिता का विकल्प नहीं हो सकते थे फिर भी मनोज कुमार के साथ वे गहराई से जुड़े।

'क्रांति' मनोज कुमार की इसी दौर की फिल्म थी, इस फिल्म का गीत, जिंदगी की न टूटे लड़ी, अविस्मरणीय है। इसके अलावा चना जोर गरम, उई तमाश उई जैसे गीतों को भी तब खूब पसंद किया गया था।

यश चोपड़ा की एक फिल्म नाखुदा में उन्होंने एक बहुत ही खूबसूरत गाना गाया था और फिल्म चाँदनी में शिव-हरि के संगीत निर्देशन में, तू मझे सुना मैं तुझे सुनाऊँ अपनी प्रेम कहानी, को भी पसंद किया गया।

'तेजाब' के लिए उन्होंने खूबसूरत गाना गया, खो गया ये जहाँ, खो गया आसमाँ। 'खुदगर्ज' के लिए उन्होंने गाया, जिन्दगी का नाम दोस्ती, दरियादिल के लिए उन्होंने गाया, वो कहते हैं हमसे, राम लखन में वन टू का फोर गाने में स्वर दिया।

मेरी ‍जंग फिल्म में जीत जाएँगे हम, तू अगर संग है गीत भी खूब प्रचलित रहा था। इसी प्रकार किंग अंकल में उनका गाया गीत, इस जहाँ की नहीं हैं तुम्हारी आँखें, बहुत ही काव्यात्मकता और मिठास से भरा हुआ है।

नितिन मुकेश की फिल्मोग्राफी बेहद समृद्ध है। घर-परिवार/सवाल/कसम/खोज/आसमान से ऊँचा/सोने पे सुहागा/काला बाजार/जैसी करनी वैसी भरनी/आईना/भाभी/मेला आदि कितनी ही फिल्में ऐसी होंगी जिनके लिए उन्होंने पार्श्व गायन किया। वे लगातार सक्रिय हैं। देश-दुनिया में उनकी संगीतमयी यात्रा जारी है।

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