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दो नावों की सवारी

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समय ताम्रकर

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हिमेश रेशमिया के बाद अब अदनान सामी को भी अभिनय का शौक लगा है। 100 किलो वजन कम करने के बाद अदनान काफी चहक रहे हैं। खबर है कि वे एक फिल्म में बतौर नायक के रूप में नजर आएँगे। गायन और अभिनय दो अलग विधाएं हैं और दोनों में कामयाबी हासिल करना अत्यंत ही टेढ़ी खीर है। हिमेश की किस्मत का फैसला तो 29 जून को होने वाला है जब उनके द्वारा अभिनीत फिल्म ‘आपका सुरुर’ दर्शकों के सामने आएंगी।

इन दोनों गायकों के पहले भी कई कलाकार ऐसे हुए हैं जिन्होंने गायन और अभिनय दोनों क्षेत्रों में किस्मत आजमाई हैं इनमें से कुछ को मजबूरीवश यह काम करना पड़ा।

जब गूंगी फिल्में बोलने लगी तो फिल्म में गीत-संगीत को बेहद महत्व दिया जाने लगा। एक ही फिल्म में दस-बीस गानें मामूली बात थी। उस समय ऐसे व्यक्ति को नायक या नायिका बनाया जाता था जो गाना-बजाना जानता हों। शुरूआती फिल्मों में ऐसे कई कलाकार नजर आएं जो अभिनय में बेहद लचर थे लेकिन गायकी की काबिलियत के कारण उन्हें फिल्मों में अवसर मिलें।

कुंदनलाल सहगल अच्छे गायक थे और अपनी गायकी के शौक की वजह से ही उन्हें फिल्मों में भी काम करना पड़ा। इसके विपरीत अशोक कुमार एक अच्छे अभिनेता थे, लेकिन हीरो बनने के लिए उन्हें ‘मैं बन की चिडि़या….’ जैसे गाने न चाहते हुए भी गाने पड़े।

पार्श्व गायन की सुविधा आ जाने के बाद दो नाव की सवारी बंद हुई। मखमली आवाज के लिए प्रसिद्ध तलत महमूद का व्यक्तित्व बहुत अच्छा था। उन्हें न चाहते हुए भी फिल्मों में अभिनय करना पड़ा। वे राजलक्ष्मी (1945), आराम (1951), रफ्तार (1955), सोने की चिडि़या (1958) जैसी कई फिल्मों में नजर आएं।

किशोर कुमार का किस्सा बड़ा अजीब है। किशोर दा को अपने भाई के विपरीत अभिनय के बजाय गायन में रूचि थी। लेकिन फिल्म निर्माताओं ने सोचा कि वे अशोक कुमार के भाई हैं और दर्शक उन्हें अभिनेता के रूप में पसंद करेंगे।

बस फिर क्या था, उन्हें अभिनेता बना दिया गया। किशोर कुमार ने अभिनय के नाम पर बेसिर-पैर हरकत की ताकि लोग उन्हें नापसंद करें। लेकिन हुआ इसका उल्टा। किशोर कुमार की ये हरकतें दर्शकों को बेहद अच्छी लगीं और उन्हें न चाहते हुए भी कई फिल्मों में काम करना पड़ा।

एक फिल्म में जो गाना उन पर फिल्माया जा रहा था वह मोहम्मद रफी ने गाया था। उस गाने के फिल्मांकन के समय किशोर के दिल पर क्या बीत रही होगी ये समझा ही जा सकता है।

दर्द भरे नगमें गाने वाले मुकेश के बारे में यह बात बेहद कम लोग जानते होंगे कि उन्होंने भी निर्दोष (1941), आदाब अर्ज (1943), माशूका (1953) जैसी फिल्मों में अभिनय के जौहर दिखाएं।

महान गायिका लता मंगेशकर भी बड़ी माँ (1945), सुभद्रा (1946), जीवन-यात्रा (1947) जैसी पाँच-छ: हिंदी फिल्मों में नजर आईं। लता के पहले अपनी विशिष्ट गायकी के लिए पहचाने जाने वाली बेगम अख्तर ने भी फिल्मों में काम किया। सुरैया को गाने के बाद अभिनय का शौक लगा और वह अनमोल घड़ी (1946), दर्द (1947) और तदबीर (1945) में नजर आईं।

उस दौर में मजबूरीवश कई गायकों को फिल्मों में अभिनय करना पड़ा वहीं कुछ अभिनेताओं को अपनी बेसुरी आवाज में गाना गाने पड़े। इसके बाद ऐसे बहुत कम उदाहरण देखने में आए।

80 के दशक में पाकिस्तान से आई सलमा आगा ने ‘निकाह’ नामक हिट फिल्म में अपने अभिनय और गायकी के जौहर दिखाएं। इस फिल्म में उसका अभिनय भी सराहा गया और गीत भी पसंद किए गए। लेकिन इसके बाद सलमा दोनों क्षेत्रों में असफल हुईं। उसकी आवाज एक अलग ही किस्म की थी जो आम भारतीय नायिकाओं पर जमी नहीं वहीं सलमा द्वारा अभिनीत फिल्म ‘इंतकाम की ताकत’ और ‘जंगल की बेटी’ बुरी तरह फ्लॉप हुईं और सलमा के लिए सारे दरवाजे बंद हो गए।

पिछले दस वर्षों में ऐसे बहुत से लोग देखे गए जो अभिनेता भी बनें और गायक भी। लेकिन सभी एक न एक क्षेत्र में बुरी तरह फ्लॉप सिद्ध हुए। महमूद के बेटे लकी अली को जब गायक के रूप में सफलता मिलीं तब उन्हें ‘सुर’, ‘कांटे’ और ‘कसक’ जैसी फिल्मों में काम करने का अवसर मिला। लकी अभिनेता के रूप में अत्यंत कमजोर थे। उनकी फिल्में क्या पिटीं उन्हें गाने के भी कम अवसर मिलने लगे।

बाबा सहगल ने रैप सांग के जरिए तहलका मचा दिया था। ‘आजा मेरी गाड़ी में बैठ जा’ उन दिनों हर युवा की जुबां पर था। उनकी इस कामयाबी को भुनाने के चक्कर में एक निर्माता ने उन्हें ‘मिस 420’ में नायक बना डाला। लेकिन दर्शकों ने बाबा को अभिनेता के रूप में अस्वीकार कर दिया।

सोनू निगम को गाते-गाते यह भ्रम होने लगा कि वे अच्छे अभिनेता भी हैं। बस फिर क्या था सोनू ने भी नायक बनने की ठान ली। ‘काश आप हमारे होते’ और ‘लव इन नेपाल’ जैसी फिल्मों ने सोनू के अभिनेता बनने के भूत को उतार डाला। उसके बाद सोनू ने सारा ध्यान संगीत पर ही देने का निश्यच किया। पलाश सेन और वसुंधरा दास जैसे छोटे-मोटे उदाहरण भी हैं।

आज के दौर के नंबर वन संगीतकार और अपनी अलग ही शैली के गायक हिमेश रेशमिया भी अभिनेता बनने का शौक पाले हुए हैं। उन्होंने कुछ वीडियो अलबम में काम किया है और इसलिए उन्हें भ्रम हो गया है कि अभिनय करना बहुत आसान है।

इन सारे नामों पर गौर किया जाए तो दोनों क्षेत्रों में सिर्फ किशोर कुमार को ही सफलता मिली है। किशोर कुमार ने अपने अभिनय के बल पर दर्शकों को खूब हँसाया है और गायकी के जरिए भी उन्होंने अपने हरफनमौला होने का परिचय दिया है। सहगल भी कुछ हद तक सफल कहे जा सकते हैं। शायद इसीलिए कहा जाता है कि दो नावों की सवारी करना बेहद मुश्किल कार्य है।

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