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क्योंकि गैंगस्टर को भी चाहिए हीरोइन!

नरेंद्र देवांगन

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फिल्में समाज का आईना होती हैं। समाज के जो-जो पहलू हम देखते हैं, उन्हें फिल्मों में उतारने की कोशिश हमेशा से की जाती रही है। बॉलीवुड में आतंकवाद, अपराध और लूट-खसोट जैसे मुद्दों पर आधारित फिल्में भी प्रायः बनती रहती हैं। फिर चाहे वो दिलीप कुमार की फिल्म "विधाता" हो, अमिताभ बच्चन की "डॉन" या रामगोपाल वर्मा की "कंपनी", "सत्या" अथवा मिलन लुथारिया की "वन्स अपॉन ए टाइम इन मुंबई", सब इन्हीं मुद्दों पर आधारित फिल्में थीं। दमदार पटकथा, बढ़िया निर्देशन व सशक्त अभिनय के कारण ऐसी फिल्में पसंद भी की जाती हैं।

बॉलीवुड में गैंगस्टर या गैंग वॉर पर बनने वाली फिल्में ज्यादातर हीरो और विलेन के इर्द-गिर्द ही घूमती हैं। सवाल यह उठता है कि ऐसे में इन फिल्मों में काम करने वाली हीरोइनों के लिए एक्टिंग का कितना स्कोप होता है? फिल्मों में सफलता में उन्हें श्रेय दिया जाता है या नहीं? आइए, जानते हैं अपराध की पृष्ठभूमि पर बनी फिल्मों में काम करने वाली हीरोइनों के अनुभव।

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ऐश्वर्या रायः बॉलीवुड में आमतौर पर कहा जाता है कि अपराध की पृष्ठभूमि पर बनी फिल्मों में हीरोइनों के लिए बहुत कम स्कोप होता है, लेकिन ऐश्वर्या के मामले में ऐसा नहीं कहा जा सकता। वे कहती हैं कि मैंने "जोश", "खाकी", "धूम-2", "सरकार राज" और "रावण" जैसी फिल्मों में काम किया है। मुझे भी इन फिल्मों में काम करके काफी मजा आया। वैसे फिल्में किसी भी विषय पर बनी हों, अगर उनकी स्क्रिप्ट और निर्देशन अच्छा है तो वे दर्शकों को जरूर पसंद आती हैं। अगर मुझे आगे किसी अच्छी क्राइम बेस्ड फिल्म का ऑफर आता है, तो मैं उसे जरूर करना चाहूँगी।

बिपाशा बसु : "अजनबी", "जिस्म", "रेस" आदि में काम कर चुकीं बिपाशा बसु को भी ऐसे किरदार पसंद हैं। खासतौर पर "रेस" के बारे में उनका कहना है कि इस फिल्म में मेरा किरदार बहुत मुश्किल था, लेकिन वह मुझे रोचक भी लगा।

उर्मिला मातोंडकरउर्मिला ने अपने करियर में तीन क्राइम बेस्ड फिल्मों "सत्या", "कौन" तथा "एक हसीना थी" में काम किया है। उर्मिला ने इन फिल्मों में काम इसलिए किया, क्योंकि इनमें कुछ नया करने के लिए था। उनका कहना है कि मैं हमेशा किरदार की लंबाई से ज्यादा उसकी महत्ता पर गौर करती हूँ। ऐसा बिलकुल नहीं है कि ऐसी फिल्मों में हीरोइन के लिए कोई स्कोप नहीं होता। अपराध जगत से संबंधित कहानी भी समाज की कड़वी सचाई है। अपराधी भी माँ, बहन, प्रेमिका, पत्नी जैसे रिश्तों से जुड़ा होता है। यही वजह है कि इस तरह की फिल्मों में हीरोइनों की भी अहम भूमिका होती है।

बकौल कंगना,"मैंने जब फिल्म "गैंगस्टर" और "वन्स अपॉन ए टाइम इन मुंबई" में काम किया तो इन फिल्मों के कैरेक्टर मेरे दिमाग पर हावी हो गए थे। दरअसल, "गैंगस्टर" जैसी फिल्मों की कहानी वास्तविक जीवन के बहुत करीब होती है। मैं अपने आपको खुशनसीब मानती हूँ कि करियर की शुरुआत में ही मुझे इस तरह का चुनौतीपूर्ण किरदार निभाने का मौका मिला। दर्शकों ने मुझे इन किरदारों में पसंद भी किया। इन फिल्मों की कहानी दूसरी फिल्मों की कहानी से कुछ अलग होती है। "गैंगस्टर" और "वन्स अपॉन ए टाइम इन मुंबई " में मेरे काम करने के अनुभव बहुत अच्छे रहे, क्योंकि इनमें मेरे किरदार को अच्छे से पेश किया गया।"

प्राची देसाईः प्राची को एक्शन और गैंग वॉर पर आधारित फिल्में देखने में बहुत मजा आता है, क्योंकि ऐसी फिल्में तेजी से आगे बढ़ती हैं। साथ ही इनमें स्टंट भी होते हैं। लिहाजा प्राची को जब "वन्स अपॉन ए टाइम इन मुंबई" ऑफर हुई तो उन्होंने तुरंत हाँ कह दी। वे बताती हैं कि इस फिल्म में मैंने एक क्रिमिनल की गर्लफ्रेंड का कैरेक्टर प्ले किया, जो काफी दिलचस्प था। प्राची का मानना है कि हालाँकि इस तरह की फिल्मों में हीरोइनों के लिए स्कोप बहुत कम होता है, लेकिन ऐसी फिल्में काफी हद तक असल जिंदगी से रूबरू कराती हैं, इसलिए मुझे इनमें काम करने में बहुत मजा आता है।

आयशा टाकियाआयशा बताती हैं कि मेरी फिल्म "वांटेड" सुपरहिट रही, जो गैंगस्टर पर बेस्ड थी। इस फिल्म में मेरे लिए बतौर अभिनेत्री काम का अच्छा स्कोप था। फिल्म में मुझे सही तरीके से प्रेजेंट भी किया गया। शायद यही वजह है कि फिल्म की कहानी का केन्द्र सलमान खान होने के बावजूद मुझे फिल्म में नजरअंदाज नहीं किया गया।

मेरा मानना है कि क्राइम वर्ल्ड पर बेस्ड फिल्मों में हीरो-हीरोइन और विलेन सभी के लिए एक्टिंग का अच्छा स्कोप होता है। मैंने इस तरह की जितनी भी फिल्में कीं, उनमें दर्शकों का बहुत अच्छा रिस्पांस मिला है। क्राइम वर्ल्ड से जुड़ी फिल्में दर्शक देखना पसंद करते हैं, इसलिए ऐसी फिल्में हमेशा से बनती आई हैं। फिल्म मेकर तो वही बनाते हैं, जो दर्शक देखना चाहते हैं।

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