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गैंगस्टर को जन्नत मिली!

विकास राजावत

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हालिया दिनों की चर्चित और प्रशंसित फिल्म "साहब बीवी और गैंगस्टर" के बाद रणदीप हुड्डा बड़े खुश नजर आ रहे हैं। यूँ तो उन्होंने हमेशा ही अपनी "हटकर" फिल्मों से लोगों का ध्यान आकर्षित किया है लेकिन जब भी किसी फिल्म की तारीफें सुनने को मिलें, तो अच्छा तो लगता ही है।

उनकी फिल्में बॉक्स ऑफिस पर कम ही चलती हैं, कई लोगों को रास नहीं भी आतीं लेकिन एक बात तो है कि ये होती लीक से हटकर हैं। फिर यह भी है कि इनमें रणदीप का रोल छोटा हो या बड़ा, वे लोगों का ध्यान जरूर खींचते हैं। इंडस्ट्री में उन्हें एक ऐसे प्रतिभाशाली अभिनेता के रूप में देखा जाता है, जिसे अब तक उचित मौके नहीं मिल पाए हैं।

रणदीप गैर फिल्मी परिवार से हैं और उन्हें संघर्ष भी काफी करना पड़ा है। दस साल पहले "मानसून वेडिंग" में छोटे-से रोल में उन्होंने प्रभावित किया था लेकिन वास्तविक ब्रेक उन्हें दिया रामगोपाल वर्मा ने "डी" (2005) के साथ। फिल्म व्यवसायिक तौर पर असफल रही लेकिन रणदीप के करियर में आए अवरोध का यही एकमात्र कारण नहीं था। आज वे स्वीकार करते हैं कि अचानक मिली तारीफों से उनका दिमाग फिर गया था। वे अपने व्यवहार से कई लोगों को नाराज कर गए थे। इसका खामियाजा तो उन्हें भुगतना ही था।

रामू कैम्प की ही "डरना जरूरी है" के बाद वे अच्छी फिल्मों के लिए तरस गए। उनके हिस्से में आईं "रिस्क", "रूबरू", "मेरे ख्वाबों में जो आए", "कर्मा और होली" और "लव खिचड़ी" जैसी फिल्में। ये "हटकर" तो थीं लेकिन "अच्छी" का तमगा इन्हें देना जरा मुश्किल है।

मुख्य किरदार में चुनौतीपूर्ण रोल करने की रणदीप की तमन्ना तब पूरी हुई जब केतन मेहता ने उन्हें "रंग रसिया" में विश्व विख्यात पेंटर राजा रवि वर्मा का रोल दिया। रणदीप ने पूरी तरह डूबकर यह किरदार निभाया लेकिन फिल्म मानो समय के किसी भँवर में फँसकर रह गई। यह रिलीज तो होने वाली थी 2008 में लेकिन अब तक इसे सिनेमाघरों का मुँह देखना नसीब नहीं हुआ है। हाँ, "वन्स अपॉन अ टाइम इन मुंबई" में उन्हें पसंद किया गया था लेकिन वहाँ वे सहायक भूमिका में थे और अन्य कलाकारों ने भी वाहवाही बटोरी थी।

रणदीप कहते हैं कि उन्हें इस बात का एहसास हो गया है कि उनके द्वारा अच्छा अभिनय करने मात्र से कोई फिल्म हिट नहीं हो जाएगी। फिल्म निर्माण एक सामूहिक कर्म है। जब सबके प्रयास देखने के काबिल होंगे, तभी दर्शक फिल्म देखने आएँगे। फिल्मों के चयन के मामले में अपनी भूलों को वे स्वीकारते हैं। वे बताते हैं कि कई ऐसी फिल्में उन्होंने ठुकराईं, जो आगे जाकर हिट हुईं। जो फिल्में उन्होंने स्वीकार कीं, उनमें कुछ ऐसी भी थीं जो उस तरह नहीं बन पाईं जैसी उन्होंने कल्पना की थी। वे बताते हैं कि पहले वे केवल अपने रोल पर ध्यान देते थे, स्क्रिप्ट पर नहीं लेकिन अब वे जान गए हैं कि स्क्रिप्ट का अच्छा होना सबसे ज्यादा जरूरी है। निर्देशक का काबिल होना भी जरूरी है। इसके बाद ही अपने रोल के बारे में सोचना चाहिए।

वैसे रणदीप खुश हैं कि अब बॉलीवुड में कहानी और प्रस्तुतिकरण के स्तर पर कई तरह के प्रयोग हो रहे हैं और इन प्रयोगों को दर्शकों द्वारा सराहा भी जा रहा है। वे ऐसे ही सृजनशील माहौल में काम करना चाहते हैं। अब वे "जन्नत" के सीक्वल "जन्नत-2" में नजर आएँगे और भट्ट कैम्प से जुड़कर प्रसन्न हैं।

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