Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

प्राण : 'उपकार' वाले मलंग चाचा

हमें फॉलो करें प्राण : 'उपकार' वाले मलंग चाचा
पचास और साठ के दशक का दौर, जो हिन्दी सिनेमा का स्वर्णिमकाल माना जाता है, में यदि कोई कलाकार खलनायकी का पर्याय था, तो वे थे प्राण। पर्दे पर तमाम दिग्गज हीरोज से टक्कर लेने वाले प्राण ने एक के बाद एक इतनी हिट फिल्मों में खलनायकी की थी, कि लोगों ने अपने बच्चों का नाम 'प्राण' रखना बंद कर दिया था।

पर्दे पर उनके प्रकट होते ही नरम दिल दर्शकों के तन में एक सिहरन-सी दौड़ जाती थी। दिल में एक खौफ उठता था कि न जाने यह अब क्या कर बैठे! इन्हीं प्राण के करियर में ऐतिहासिक मोड़ आया सन्‌ 1967 में। यूँ बँटवारे से पहले अपने शुरुआती दौर में प्राण ने लाहौर की कुछ फिल्मों में हीरो के रोल किए थे।

फिर पचास के दशक में 'पिलपिली साहेब' और 'आह' में भी उन्होंने सकारात्मक रोल किए, लेकिन इंडस्ट्री हो या दर्शक, सबको उनका खलनायक रूप ही रास आ गया था और यही रूप उनके साथ साए की तरह रहकर उनकी शख्सियत का हिस्सा हो गया था।

फिर मनोज कुमार ने उन्हें अपनी फिल्म 'उपकार' में एक महत्वपूर्ण, सकारात्मक रोल ऑफर कर डाला। प्राण ने इसे चुनौती के रूप में स्वीकार किया... और इतिहास बन गया।

'उपकार' कहानी थी देश के आम किसान भारत (मनोज कुमार) की, उसके सौतेले भाई पूरन (प्रेम चोपड़ा) के शहर जाकर अपने संस्कार भूलने की, गाँव की सेवा करने आई डॉक्टर कविता (आशा पारेख) की। इन सबके बीच थे मलंग चाचा यानी प्राण, जो गाँव की अंतरात्मा को आवाज देते थे।

बैसाखियों के सहारे चलने वाले मलंग चाचा का कोई न था, लेकिन वे पूरे गाँव के थे। उन्होंने दुनिया देखी थी, उसके चाल-चलन से वे निराश हो चुके थे, मगर सही और गलत की विभाजन रेखा उनके जेहन में धूमिल न हो पाई थी।

उनका शरीर भले ही लाचार था, मगर उनकी आत्मा नहीं। 'राशन पे भाषण है, पर भाषण पे राशन नहीं' के सूत्र वाक्य पर चलते हुए वे बेबाकी से अपनी बात कह डालते थे, फिर कोई उन पर हँसे, चाहे खुन्नास पाल बैठे। फिल्म के नायक के लिए वे एक पितातुल्य मित्र व मार्गदर्शक थे।

मलंग चाचा के रोल में प्राण ऐसे डूबे कि वे और मलंग चाचा एकाकार हो गए। उन पर फिल्माया गया गीत 'कसमें, वादे, प्यार, वफा सब बातें हैं बातों का क्या...' इस फिल्म को दार्शनिक ऊँचाई देता है। कहते हैं कि जब कल्याणजी-आनंदजी को पता चला कि इंदीवर के जिस गीत को उन्होंने किसी खास अवसर के लिए सहेजकर रखा था वह प्राण पर फिल्माया जाने वाला है, तो उन्होंने मनोज कुमार से शिकायत की कि प्राण तो पर्दे पर इस गीत का सत्यानाश कर देंगे! बाद में जब उन्होंने गीत का फिल्मांकन देखा, तो प्राण का लोहा मान लिया।

'उपकार' के लिए प्राण को फिल्मफेयर पुरस्कार मिला। लेकिन जो सबसे बड़ा पुरस्कार उन्हें मिला, वह था दर्शकों की नजर में पूरी तरह बदली उनकी छवि। 'उपकार' के रिलीज होने के कुछ समय बाद ही प्राण अभिनेता ओमप्रकाश की बेटी की शादी में दिल्ली गए। विवाह स्थल के बाहर सितारों की झलक पाने के लिए प्रशंसकों की भीड़ जमा थी।

आने वाले कई सितारों पर यह भीड़ टूट पड़ी थी और वे जैसे-तैसे बचते-बचाते भीतर जा सके थे। जब प्राण प्रवेश द्वार से कुछ दूरी पर कार से उतरे, तो लगा कि भीड़ उनके साथ भी यही सलूक करेगी... तभी किसी ने कहा,'मलंग चाचा आ रहे हैं, रास्ता दो' और भीड़ के बीच रास्ता बन गया! प्राण बिना किसी दिक्कत के विवाह स्थल में प्रवेश पा गए। जो लोग अन्य सितारों पर गिद्धों की तरह टूट पड़े थे, उनकी आँखों में प्राण उर्फ मलंग चाचा के लिए अद्‌भुत सम्मान था। किसी कलाकार को और क्या चाहिए...!

- विकास राजावत


Share this Story:

Follow Webdunia Hindi