मनोज बाजपेयी : लाइमलाइट नहीं अच्छे रोल चाहिए
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सत्या', 'शूल', 'पिंजर', 'राजनीति' आदि से ख्यात मनोज बाजपेयी भले ही कमर्शियल फिल्मों के सुपर सितारे नहीं हैं लेकिन उनका नाम उन चंद अभिनेताओं में शुमार हैं जिनके लिए अभिनय करना जुनून है। मनोज उन अभिनेताओं में से हैं जो फिल्मों में पैसा बनाने के लिए नहीं अपितु अच्छा अभिनय करने के मकसद से आए हैं और सोच-समझकर फिल्में करते हैं। पर्दे पर निभाए अपने किरदारों से इतर मनोज वास्तविक जिंदगी में बड़े शर्मीले और अंतर्मुखी हैं लेकिन कैमरा ऑन होते ही वे अपने फॉर्म में आ जाते हैं। फिर उनका पूरा ध्यान सिर्फ और सिर्फ अपने काम पर होता है। '
आरक्षण' के बाद मनोज हाल ही में रिलीज 'लंका' में नजर आए और आने वाले समय में 'चिट्टगाँव', 'गैंग्स ऑफ वासेपुर', 'द विसपरर्स' भी वे कर रहे हैं। 'गैंग्स ऑफ वासेपुर' अनुराग कश्यप निर्देशित कर रहे हैं। यह फिल्म धनबाद (झारखंड) के कोयला माफिया पर केन्द्रित बताई जा रही है। मनोज 'सत्या' और 'पिंजर' के लिए दो बार राष्ट्रीय पुरस्कार पा चुके हैं लेकिन वे कभी फिल्मी पत्रिकाओं और अखबारों की सुर्खियों में नहीं रहे। मनोज का कहना है कि वे सिर्फ अपने अभिनय पर ध्यान देते हैं, चर्चित होने के लिए अन्य कोई खटकरम करना उन्हें नहीं जँचता और न ही उन्हें पता है कि खबरों में बने रहने के लिए क्या और कैसे करना चाहिए। वैसे उन्हें यह भी लगता है कि कुछ लोग आकर्षक व्यक्तित्व के साथ ही जन्मते हैं। कोशिशें करने से कुछ खास फर्क नहीं पड़ता है। मनोज कभी लाइमलाइट में नहीं रहे, उन्हें इस बात का कोई मलाल भी नहीं है। वे तो इसी बात से खुश हैं कि उन्हें अच्छे निर्देशकों का साथ मिला और उन्होंने उनकी अभिनय क्षमता पर भरोसा रखा। उनका मानना है कि अच्छे निर्देशकों की बदौलत ही वे आज इंडस्ट्री में अपनी जगह बना पाए हैं और आज लोग उन्हें पहचानते हैं। इसी बात से वे संतुष्ट हैं। मनोज इसे अपने ऊपर भगवान की कृपा ही मानते हैं कि उन्होंने ऐसे ऑफर कभी स्वीकार नहीं किए जो उन्हें एक स्टार बनाएं। 'सत्या', 'अक्स', 'कौन', 'स्वामी', 'रोड', 'पिंजर' जैसी फिल्में करने से कोई कभी सितारा नहीं बनता, यह बात वे खुद भी जानते हैं। फिर भी उन्होंने यही फिल्में करना स्वीकार किया। ऐसा नहीं है कि उन्हें कोई और ऑफर मिले ही नहीं, उन्हें ऑफर तो कई मिले पर उन्होंने इंकार कर दिया क्योंकि रोमेंटिक हीरो या सुपर हीरो के रोल में वे खुद को फिट नहीं पाते हैं और न ही मनोज को ऐसी फिल्मों का कन्सेप्ट समझ में आता है। इन दिनों बॉलीवुड में 'खेमेबाजी' का चलन जोरों पर है और कुछ खेमों का सोचना है कि इंडस्ट्री की पहचान ही उन्हीं की वजह से बनी है जबकि मनोज ऐसा नहीं मानते। वे कहते हैं कि बॉलीवुड इंडस्ट्री में हजारों लोग काम करते हैं और इंडस्ट्री को उन सबकी वजह से जाना जाता है। किसी खेमे से जुड़ने के बजाए वे ऐसे निर्देशकों के साथ काम करना पसंद करेंगे जो हिट और फ्लॉप का गणित जोड़ने के बजाए कोई कहानी कहना चाहते हों।मनोज बाजपेयी को उन लोगों से शिकायत है जो उन्हें एक 'गंभीर' अभिनेता कहते हैं। वे चाहते हैं कि लोग उन्हें गंभीर अभिनेता मानने के बजाए 'समझदार' मानें। इसके लिए वे तर्क देते हैं कि वे करियर की शुरुआत से ही योजनाबद्ध और सुव्यवस्थित ढंग से आगे बढ़े हैं और बतौर अभिनेता उन्होंने स्वयं को साबित किया है। प्रोफेशनल लाइफ के साथ मनोज अब अपनी पर्सनल लाइफ में भी अच्छी तरह सैटल हो चुके हैं। पहली शादी टूटने के बाद उन्होंने शबाना रजा (नेहा) से शादी की और अब उनकी नौ माह की बेटी भी है। अपने परिवार के साथ अब वे बहुत खुश हैं। शबाना और उनके बीच अच्छी अंडरस्टेंडिंग है। मनोज चाहते हैं कि अब जो युवा फिल्मों में आ रहे हैं वे कम बजट की और कुछ अर्थपूर्ण फिल्मों में भी काम करें तथा भारतीय सिनेमा को नई ऊचाइयों तक ले जाएं।