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मैं ऐसी ही हूँ- सुष्मिता सेन

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, गुरुवार, 11 दिसंबर 2008 (11:37 IST)
अपने बुद्धि-कौशल और हाजिरजवाबी से मिस यूनिवर्स के खिताब पर कब्जा जमा लेने वाली सुष्मिता सेन की एक और बहुत बड़ी खूबी चीजों को अपनी तरह से देखना है। उनके पास अपनी दृष्टि है और यह कहने की हिम्मत भी कि किस मामले को उन्होंने कैसे देखा।

अपनी इस आदत या प्रतिभा के कारण वे कई बार चर्चा या विवादों में भी रहीं। इसके बावजूद यह उनकी दृढ़ता ही है कि वे आज भी अपनी तरह से जीने और उसे व्यक्त करने में विश्वास रखती हैं।

इसके साथ एक और बात जो बेहद महत्वपूर्ण है, वह है अपनी प्रतिभा को लगातार निखारना। एक मँझी हुई अभिनेत्री के तौर पर खुद को स्थापित कर चुकीं सुष्मिता ने अपने फिल्मी करियर में चिंगारी, बीवी नं. 1, मैं हूँ न, मैं ऐसी ही हूँ, मैंने प्यार क्यों किया, रामगोपाल वर्मा की आग आदि फिल्मों में अपनी अभिनय प्रतिभा प्रदर्शित की है।

तेरह साल पहले यानी 1994 में मिस यूनिवर्स बनीं सुष्मिता की पहली फिल्म 'दस्तक' थी। वे भारत की पहली युवती थीं, जिसे मिस ब्रह्मांड का ताज हासिल हुआ, लेकिन यह एक हसीन इत्तिफाक ही था कि इस नवयौवना को अपनी फिल्म में रोल भी मिस यूनिवर्स का मिला।

'दस्तक' में महेश भट्ट ने उन्हें एक सुंदर बाला के रूप में प्रस्तुत किया था। फिल्म के हीरो शरद कपूर इस हसीना के दीवाने हैं और किसी भी तरह उसे पाना चाहते हैं।

फिल्मी दुनिया में कदम रख रहीं सुष्मिता की एक तरह से यह परीक्षा ही थी, क्योंकि 'दस्तक' में उन्हें एक ऐसे सहमे-सिमटे सुंदर परिंदे की भूमिका निभाना थी, जिसकी सुंदरता उसके लिए बवाल बन गई है। इस सुंदरता के पीछे एक खौफनाक दरिंदा पड़ गया है। फिल्म कुछ खास नहीं चली, लेकिन पारखी नजरों ने भाँप लिया कि बॉलीवुड के दर पर एक सशक्त अभिनेत्री ने दस्तक दे दी है।

एक दिलचस्प बात और यह रही कि दस्तक के लगभग साथ ही साथ बनी तमिल फिल्म 'रचागन' बड़ी हिट साबित हुई। अलबत्ता बॉलीवुड से अपनी प्रतिभा का लोहा सार्वजनिक रूप से मनवा लेने के लिए उन्हें 'बीवी नं. 1' तक इंतजार करना पड़ा।

इस फिल्म में सलमान खान, करिश्मा कपूर, अनिल कपूर, सैफ अली खान और तब्बू जैसे धुरंधर कलाकारों के बीच से सुष्मिता 'फिल्म फेयर बेस्ट सपोर्टिंग एक्ट्रेस' का तमगा झपट ले गईं। जी सिने और स्टार स्क्रीन से भी उन्हें इसी फिल्म के लिए यही अवार्ड मिला।

इसके बाद एक बार फिर 'फिलहाल' के लिए जी सिने अवार्ड्स के तहत उन्हें उत्तम सहायक अभिनेत्री के रूप में चुना गया। 'मैं हूँ ना' में पुनः इसी श्रेणी के पुरस्कार के लिए उनका नामांकन किया गया। इस सबके साथ 2005 में आई 'चिंगारी' में सुष ने जो अदाकारी की, उसने उन्हें अलग तरह के अदाकारों की पंक्ति में खड़ा कर दिया है।

महिलाओं को लेकर सशक्त फिल्में बनाने के लिए प्रसिद्ध निर्देशक कल्पना लाजमी के निर्देशन में इस ब्रह्मांड सुंदरी ने अलग तरह का किरदार जिया। यह किरदार था एक ऐसी वेश्या का, जो अपनी मासूम बच्ची को इस गंदगी से दूर रखना चाहती है। वह अपने गाँव में आए नए डाकिए से सच्चा प्रेम कर बैठती है। वह उसे लगातार भोगने वाले गाँव के बेहद प्रभावशाली पुरोहित का संहार कर देती है, क्योंकि पुरोहित उसके प्रेमी की हत्या कर उसके सपनों को चकनाचूर कर देता है।

'चिंगारी' के बारे में कहा गया कि उसमें सुष ने ओवर एक्ट किया है। साफगोई के लिए मशहूर सुष्मिता ने लाजवाब कर देने वाला उत्तर दिया था कि मैंने उस फिल्म में खुद को पूरी तरह अपने निर्देशक के हवाले कर दिया था, सो जो उसने चाहा मैंने वह दिया। जाहिर है किरदार में खुद को ढाल देने वाली एक माहिर अदाकारा यही जवाब दे सकती है। (नईदुनिया)

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