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गौर हरी दास्तान - द फ्रीडम फाइल की कहानी

हमें फॉलो करें गौर हरी दास्तान - द फ्रीडम फाइल की कहानी
बैनर : सिद्धिविनायक सिनेविज़न
निर्माता : सचिन खानोलकर, बिंदिया खानोलकर
निर्देशक : अनंत नारायण महादेवन 
संगीत : डॉ. एल. सुब्रमण्यम
कलाकार : विनय पाठक, कोंकणा सेन शर्मा, तनिष्ठा चटर्जी, रणवीर शौरी, दिव्या दत्ता, परीक्षित साहनी, असरानी 
रिलीज डेट : 14 अगस्त 2015 
 
गौर हरी दास को खुद को स्वतंत्रता सेनानी सिद्ध करने में 33 वर्ष लग गए। उनके इसी संघर्ष को दर्शाती है फिल्म 'गौर हरी दास्तान - द फ्रीडम फाइल'। 
 
एक दिन उनका हकीकत से परिचय तब हुआ जब उनके बेटे को विक्टोरिया जुबली टेक्नीकल इंस्टीट्यूट में प्रवेश लेने के लिए उनके स्वतंत्रता सेनानी होने के प्रमाणपत्र की आवश्यकता पड़ी।  
 
भारतीय ब्यूरोक्रेसी से गौर हरी का पाला पड़ना शुरू हुआ। उन्हें कहा गया कि उनका प्रमाण-पत्र महाराष्ट्र से नहीं बल्कि उड़ीसा से  मिलेगा क्योंकि उन्होंने उसी राज्य के लिए काम किया था। वह कहते हैं कि उनकी लड़ाई पूरे देश के लिए थी किसी खास राज्य के लिए नहीं। 
 
गौर हरी इतने परेशान हो जाते हैं कि इस मुद्दे से पीछे हटने में ही उन्हें अपनी भलाई नजर आती है। उनका परिवार भी उन्हें यही सलाह देता है। "मेरी पत्नी और बच्चों ने कहा सरकार से इस प्रमाण-पत्र की उम्मीद बेकार है।" गौर हरी के मुताबिक आज की पीढ़ी निराशावादी है। 
इसके बाद उनका एक दोस्त उन्हें एक वकील से मिलने की सलाह देता है। वह (राजीव सिंघल) कहता है बस कैसे भी वकील (मोहन जोशी) को अपना केस लेने के लिए तैयार कर लो। वकील से मिलने के पहले गौर हरी रिश्वत देकर भी प्रमाण पत्र हासिल कर सकते थे, परंतु वह स्वतंत्रता सेनानी थे और उन्हें यह मंजूर नहीं था। 
 
सरकारी लोगों के रूखे व्यवहार ने गौर हरी की आंखें खोल दी। उन्हें महसूस हुआ की उनकी लड़ाई आजादी मिलने के बाद भी खत्म नहीं हुई है। प्रमाण-पत्र पाने की कोशिश में गौर हरी को फ्रॉड भी कहा जाता है, जो धोखे से स्वतंत्रता सेनानियों को मिलने वाली पेंशन प्राप्त करना चाहता है। 
 
"मैंने उनसे कहा अपने इस तर्क पर कुछ एक्शन लो और मुझे गिरफ्तार कर लो, उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया। आजादी के बाद इस देश की रीढ़ की हड्डी खत्म हो चुकी है।" गौर कहते हैं। 
 
आजादी के बाद भी गौर हरी दास को 33 साल की लंबी लड़ाई सिर्फ इस बात को साबित करने में लगी कि वह एक स्वतंत्रता सेनानी हैं। वह एक खत्म होते हुए सिस्टम, गिरते लोकतंत्र के खिलाफ अपने हक की लडाई जारी रखते हैं। आखिर में बेहद कीमती प्रमाण-पत्र दबोच कर  निकलते हुए उनके आखिरी शब्द होते हैं, "अपने ही लोगों के खिलाफ लड़ाई बहुत ज्यादा कठिन थी।" 
 
फिल्म हरी गौर की यादों पर आधारित है जो देश के वर्तमान हालात पर जोरदार प्रहार करती है। 

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