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रफूचक्कर : हँसाने की नाकाम कोशिश

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निर्देशक : बी.एच. तरुण कुमार
संगीत : ललित पंडित
कलाकार : असलम खान, नौहीद, युधिष्ठिर, निशा रावल, शक्ति कपूर, सदाशिव अमरापुरकर, अर्चना पूरणसिंह, मीता वशिष्ठ, अनंत महादेवन, टीनू आनंद।

हँसाना सबसे कठिन काम माना जाता है, लेकिन बॉलीवुड के ज्यादातर लोग इसे आसान मानकर कॉमेडी फिल्म बनाए जा रहे हैं। हर दूसरी-तीसरी फिल्म में इन दिनों हँसाने की कोशिश की जा रही है। ये बात और है कि इन फिल्मों को देख हँसी कम और खीज ज्यादा पैदा होती है। ‘रफूचक्कर’ भी खीज पैदा करती है।

बी.एच. तरुण कुमार कोरियोग्राफर से निर्देशक बन गए और ‘रफूचक्कर’ बना डाली। फिल्म की कहानी कागज पर अच्छी लगती है, लेकिन जब इसे परदे पर उतारा जाता है तो सारा मामला गड़बड़ हो जाता है।

सारी समस्या है लेखन में। इमरान अख्तर द्वारा लिखे गए स्क्रीनप्ले में वो बात नहीं है जो दर्शकों को बाँधकर रखे या हँसाए। शुरुआत से लेकर अंत तक निरंतरता भी नहीं है। मध्यांतर के बाद फिल्म बेहद बोर करती है। लॉजिक और कॉमन सेंस की बात नहीं भी की जाए तो भी फिल्म खरी नहीं उतरती।

मुन्नू (असलम खान) और पप्पू पर जब शादी का दबाव डाला जाता है तो वे घर से भाग जाते हैं। यही हाल जूली (नौहीद) और मिली (निशा रावल) का है। रास्ते में उनकी मुलाकात होती है। दोनों भाइयों का दिल उन बहनों पर आ जाता है।

मुन्नू और पप्पू इस बात से बेखबर हैं कि इन्हीं बहनों से उनके पिता उनकी शादी करवाने जा रहे थे। फिर कई ऐसे घटनाक्रम दिखाए गए हैं जिसके जरिये दर्शकों को हँसाया जा सके।

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असलम खान और युधिष्ठिर का अभिनय कुछ दृश्यों में अच्‍छा है तो कुछ में बुरा। नायिकाओं में नौहीद ने अपनी भूमिका अच्छे से निभाई है, लेकिन निशा को आगे बढ़ना है तो अभिनय में सुधार करना होगा। अर्चना पूरनसिंह के लिए हास्य भूमिका निभाना आसान है। मीता वशिष्ठ निराश करती हैं। शक्ति कपूर और सदाशिव अमरापुरकर को ज्यादा मौके नहीं मिले हैं।

‘रफूचक्कर’ में एक भी ऐसा कारण नहीं है कि इसे देखा जाए।

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