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जोड़ी ब्रेकर्स : फिल्म समीक्षा

हमें फॉलो करें जोड़ी ब्रेकर्स : फिल्म समीक्षा

समय ताम्रकर

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निर्माता : प्रसार विज़न प्रा.लि.
निर्देशक : अश्विनी चौधरी
संगीत : सलीम-सुलेमान
कलाकार : आर. माधवन, बिपाशा बसु, ओमी वैद्य, मिलिंद सोमण, दी‍पान्निता शर्मा, मृणालिनी शर्मा, हेलन
सेंसर सर्टिफिकेट : यूए * 2 घंटे 10 मिनट * 14 रील
रेटिंग : 1.5/5

बैंड बाजा बारात में जोड़ियों की शादी करवाने वाले थे। जोड़ी ब्रेकर्स में जोड़ियां तोड़ने वाले हैं। वहां शादी करवाते-करवाते प्रेम हो जाता है तो यहां यह काम जोड़ियां तोड़ते हुए होता है। लेकिन बैंड बाजा बारात का निर्देशन, अभिनय, संवाद, हीरो-हीरोइन की कैमिस्ट्री बेहतरीन थी। जोड़ी ब्रेकर्स मे यह सब मिसिंग है।

जोड़ी ब्रेकर्स की कहानी दो ट्रेक पर चलती है। एक जिसमें सिड और सोनाली अपना काम करते हैं और दूसरा ट्रेक उनकी खुद की लव स्टोरी का है। एक ट्रेक में कॉमेडी रखी गई है तो दूसरे में रोमांस। लेकिन स्क्रीनप्ले कुछ ऐसा लिखा गया है कि दर्शक न तो हंस पाता है और न ही फिल्म के हीरो-हीरोइन का रोमांस उसके दिल को छूता है।

सिड (माधवन) और सोनाली (बिपाशा बसु) मिलकर उन लोगों के लिए काम करते हैं जो अपनी पति या पत्नी से तलाक चाहता है। इसके लिए वे तमाम तरह की हरकत करते हैं। एक केस में सोनाली को बताए बिना सिड धोखे से एक जोड़ी (मार्क और मैगी) को तोड़ देता है कि ताकि वह (सिड) अपनी तलाकशुदा पत्नी से कार और बंगला वापस पा सके।

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सोनाली को जब इस मामले की असलियत मालूम होती है तो वह सिड से अलग हो जाती है। सिड को भी पश्चाताप होता है और वह अपनी गलती सुधारने के लिए उस जोड़ी को फिर एक करना चाहता है। इस काम में सोनाली उसकी मदद करती है। किस तरह से वे मार्क और मैगी को एक करते हैं ये लंबे और उबाऊ ड्रामे के जरिये दिखाया गया है।

जोड़ी ब्रेकर्स की सबसे बड़ी कमजोरी है इसका स्क्रीनप्ले। गलतियां तो इसमें हैं ही साथ ही मनोरंजन की कमी भी है। पहले बात की जाए सिड और सोनाली के व्यवसाय वाले ट्रेक की। निर्देशक और लेखक ये तय नहीं कर पाए कि इसे हल्के-फुल्के तरीके से फिल्माया जाए या गंभीरता रखी जाए जाए। यह दुविधा साफ नजर आती है।

जोड़ी तोड़ने के नाम पर कुछ फूहड़ किस्म की हरकतें हैं। ओमी वैद्य का बाबा बनकर भाषण देने वाला सीन तो बड़ा ही बेहूदा है और ‘थ्री इडियट्स’ के उस सीन की कमजोर कॉपी है जिसमें उनके स्पीच वाले पेपर्स बदल दिए गए थे। यहां भी पेपर्स बदल जाते हैं और शराब बनाने वाली कंपनियों के नामों को जोड़कर वे भाषण देते हैं।

मार्क और मैगी की जोड़ी तोड़ने के लिए सिड-सोनाली ग्रीस जा पहुंचते हैं। होटल में मार्क-मैगी के कमरे तक पहुंचने वाले दृश्य से लेकर उनका पीछा करने वाले दृश्यों तक को लेखक ने अपनी सहूलियत के मुताबिक लिखा है। बड़ी ही आसानी से मार्क-मैगी के कमरे में सिड-सोनाली दाखिल हो जाते हैं। उनके फोटो उतारते हैं।

फिल्म ग्रीस से गोवा शिफ्ट होती है क्योंकि अब मार्क और मैगी को फिर मिलाना है। ये पार्ट बहुत ही धीमा है। दोनों को मिलाने की कोशिश में कई नाटक रचे जाते हैं, जिसमें मार्क की नानी को भी शामिल किया जाता है। चर्च ले जाया जाता है। दोनों को साथ रुकवाया जाता है। खाने में दवाई मिलाकर तबियत तक बिगाड़ दी जाती है, लेकिन एक भी ऐसा सीन नहीं लिखा गया जिससे लगे कि दोनों फिर से एक-दूसरे की तरफ आकर्षित हो रहे हों। अंत में सिड ही उनके सामने कबूल करता है कि वह ही दोनों के ब्रेकअप का जिम्मेदार है। अगर सिड े ही गलती मनवाना थी तो फिर इतनी ड्रामेबाजी क्यों की गई?

दूसरा ट्रेक सोनाली और सिड के रोमांस का है जो कि पूरी तरह से बैंड बाजा बारात में रणवीर-अनुष्का के रोमांटिक ट्रेक से मेल खाता है, लेकिन वैसा स्पार्क यहां महसूस नहीं होता। सोनाली का अचानक सिड के प्रति आकर्षित हो जाना चौंकाता है। साथ ही दोनों के बीच फिल्माए गए सीन बेहद लंबे हैं।

अश्विनी चौधरी का निर्देशन अच्छा है, लेकिन कमजोर स्क्रिप्ट के कारण वे असहाय नजर आए। फिल्म का संगीत प्लस पाइंट है। कुंआरा, दरमियां, मुझे तेरी जरूरत है जैसे गाने अच्छे बन पड़े हैं। ‘बिपाशा’ का फिल्मांकन उम्दा है।

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यदि आप कमर्शियल फिल्म के हीरो हैं तो आपका फिट रहना जरूरी है, लेकिन माधवन मोटे नजर आएं। ओवरसाइट शर्ट्स और जैकेट्स उन्होंने पहने, शर्ट आउट रखा, लेकिन अपने मोटापे को नहीं छिपा पाए। उनका अभिनय बेहतर है।

दीपान्निता शर्मा और मृणालिनी शर्मा प्रभावित करते हैं, जबकि बिपाशा बसु, हेलन और मिलिंद सोमण का अभिनय औसत दर्जे का है। ओमी वैद्य अब तक ‘थ्री इडियट्स’ के हैंगओवर में चल रहे हैं।

कुल मिलाकर जोड़ी ब्रेकर्स मनोरंजन करने में असफल है।

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