फिल्म के क्लायमैक्स में कार रेस दिखाने के बहाने अक्षय और सैफ के बीच जिंदगी और मौत की रेस का दृश्य रखा गया है, लेकिन इस रेस के कोई नियम नहीं हैं। यह कहाँ और कैसे खत्म होगी इस बारे में कुछ भी नहीं बताया गया है। बस दोनों कार दौड़ाना शुरू कर देते हैं।फिल्म का हर पात्र महत्वाकांक्षी और ग्रे शेड लिए हुए है। आसानी से पैसे कमाने के लिए वे अंधी दौड़ में दौड़ते हैं। सभी एक-दूसरे को डबल क्रॉस करते हैं, इससे किसी भी पात्र पर विश्वास कर पाना मुश्किल होता है। शिराज़ अहमद ने अपनी लिखी कहानी और पटकथा में दर्शक को हर पन्द्रह मिनट बाद चौंकाया है। वे इस बात में भी सफल रहे हैं कि दर्शक इस बात का अंदाजा नहीं लगा सकता कि फिल्म में अगले पल क्या होने वाला है, लेकिन कहानी को आगे वे ठीक तरह से संभाल नहीं पाए। निर्देशक अब्बास-मस्तान ने फिल्म को स्टाइलिश बनाया है। हर बार की तरह उन्होंने अपने कलाकारों को बेहतरीन तरीके से परदे पर पेश किया है, लेकिन उन्हें पटकथा की कमियों की ओर भी थोड़ा ध्यान देना चाहिए था।सैफ अली खान ने बेहतरीन तरीके से अपना काम किया है। अक्षय खन्ना का पात्र कई रंग लिए हुए हैं और उन्होंने फिर साबित किया है कि वे उम्दा अभिनेता हैं। अनिल कपूर का चरित्र हास्य का पुट लिए हुए है। उनके द्वारा बोले गए कुछ संवाद द्विअर्थी हैं। तीनों नायिकाओं को कम कपड़ों में पेश किया गया है। बिपाशा और कैटरीना खूबसूरत लगी हैं और उन्होंने फिल्म का ग्लैमर बढ़ाया है। समीरा रेड्डी का पात्र दब्बू किस्म का है। फिल्म का तकनीकी पक्ष बेहद मजबूत है। राजीव यादव की सिनेमाटोग्राफी अंतरराष्ट्रीय स्तर की है। कार रेस के दृश्य उन्होंने शानदार तरीके से फिल्माए हैं। सलीम सुलैमान का बैकग्राउंड संगीत और हुसैन बर्मावाला का संपादन बेहतरीन है।
प्रीतम का संगीत फिल्म के नाम के अनुरूप तेज गति से भागता हुआ है। ‘अल्लाह दुहाई है’, ‘पहली नजर में’ और ‘टच मी’ आज के दौर के मुताबिक हैं। इनका फिल्मांकन भव्य स्तर का है।
कुल मिलाकर ‘रेस’ मनोरंजन तो करती है, लेकिन उन आशाओं पर खरी नहीं उतरती जिसे लेकर दर्शक सिनेमाघर में जाता है।