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मिलेंगे मिलेंगे : भाग्य का खेल

हमें फॉलो करें मिलेंगे मिलेंगे : भाग्य का खेल

समय ताम्रकर

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बैनर : एस.के. फिल्म्स इंटरप्राइजेस
निर्माता : सुरिंदर कपूर
निर्देशक : सतीश कौशिक
संगीत : हिमेश रेशमिया
कलाकार : करीना कपूर, शाहिद कपूर, सतीश शाह, डेलनाज़ पॉल, आरती छाबड़िया, किरण खेर, हिमानी शिवपुरी, सतीश कौशिक
यू/ए सर्टिफिकेट * 16 रील * 2 घंटे
रेटिंग : 2/5

आखिरकार 6 वर्ष बाद ‘मिलेंगे-मिलेंगे’ को सिनेमाघरों से मिलने का मौका मिल ही गया और इसके लिए निर्माता बोनी कपूर ने दोस्तों के साथ दुश्मनों का भी शुक्रिया अदा किया है। यह फिल्म 6 वर्ष पहले भी रिलीज हुई होती तो भी कोई फर्क नहीं पड़ता क्योंकि फिल्म की कहानी वर्षों पुरानी लगती है।

फिल्म की हीरोइन ड्रेसेस और लुक से तो आधुनिक है, ले‍किन सोच के मामले में वह कुछ ज्यादा ही रूढ़िवादी है। जब उसका प्रेमी उसके साथ धोखा करता है तो वह उससे संबंध तोड़ लेती है।

प्रेमी माफी माँगता है तो वह पचास रुपए के नोट पर प्रेमी से उसका नाम और फोन नंबर लिखवाकर बाजार में चला देती है और कहती है कि भाग्य में होगा तो वह पचास का नोट उसके पास वापस आएगा और वह उसे स्वीकार लेगी।

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अपना नाम और फोन नंबर वह किताब पर लिखकर बाजार में बेच देती है। अगर किस्मत में मिलना लिखा होगा तो प्रेमी के पास किताब पहुँच जाएगी। भाग्य पर उसे इतना ज्यादा यकीन है।

फिल्म के एक सीन में यही हीरोइन कहती है कि उसे भाग्य या भविष्यवाणी पर विश्वास नहीं है, लेकिन एक टैरो कार्ड रीडर से मिलने के बाद उसकी सोच में इतना परिवर्तन आता है कि वह जरूरत से ज्यादा भाग्य पर विश्वास करने लगती है। करीना कपूर के किरदार को इतना बेवकूफ बताया गया है कि वह अपने प्रेमी का पूरा नाम तक नहीं जानती।

प्रिया (करीना कपूर) ऐसे लड़के से शादी करना चाहती है जो सिगरेट और शराब नहीं पीता हो। झूठ नहीं बोलता हो। बैंकॉक के यूथ फेस्टिवल में उसकी मुलाकात इम्मी (शाहिद कपूर) से होती है जिसमें ये तमाम बुराइयाँ हैं। उसके हाथ प्रिया की डायरी लगती है और वह प्रिया के सामने अपने आपको उसी तरह पेश करता है।

जब उसे अहसास होता है कि प्रिया उसे सच्चा प्यार करती है तो उसे अपनी गलती का अहसास होता है। वह अपने को बदलने की सोचता है, लेकिन उसके पहले ही उसकी चोरी पकड़ी जाती है। प्रिया उससे अलग हो जाती है और उनका मिलना होगा या नहीं उसे भाग्य पर छोड़ देती है।

तीन वर्ष बीत जाते हैं। दोनों की शादी होने वाली है, लेकिन एक-दूसरे को वे भूला नहीं पाते। प्रिया को पचास के नोट की तलाश रहती है और इम्मी को किताब की ताकि वे एक-दूसरे तक पहुँच सके। वे एक-दूसरे को भी ढूँढने की कोशिश करते हैं।

ढूँढने के खेल में फिल्म एक बार फिर कमजोर नजर आती है। अब किसी को तलाशना कठिन नहीं है। गूगल, इंटरनेट, ईमेल, फेसबुक आदि की मदद ली जा सकती है। मोबाइल है। अखबारों में विज्ञापन छपवाए जा सकते हैं। लेकिन दोनों प्रेमी बाबा आदम के जमाने के तरीके अपनाते रहते हैं। कई संयोग होते हैं और हैप्पी एंडिंग के साथ फिल्म खत्म होती है।

लेखक शिराज अहमद ने कई छोटी-मोटी बातों का ध्यान रखा है तो कई बड़ी-बड़ी ग‍लतियाँ कर गए, खासकर फिल्म के दूसरे हिस्से में। कई जगह लेखक ने अपने मुताबिक सीन लिखे हैं। कॉपी-किताब हाथ में लेकर वर्षों पहले स्टूडेंट कॉलेज जाते थे। लेकिन एक सीन में करीना कपूर की चुराई हुई डायरी वापस करना है इसलिए सारे विद्यार्थियों के हाथों में कॉपी-किताब दिखा दी गई हैं।

सतीश कौशिक का निर्देशन अच्छा है और उन्होंने स्क्रिप्ट की कमियों के बावजूद फिल्म को मनोरंजक तरीके से पेश किया है, जिससे बोरियत नहीं होती है। हालाँकि एक निर्देशक होने के नाते उन्हें लेखन की कमियों पर ध्यान देना था।

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अभिनय के मामले में शाहिद कपूर कमजोर लगे। तीन-चार एक्सप्रेशन्स से उन्होंने पूरी फिल्म में काम चलाया। करीना कपूर का अभिनय उम्दा है, हालाँकि उनके कैरेक्टर को ठीक से पेश नहीं किया गया है। शाहिद-करीना की कैमेस्ट्री उम्दा है। आरती छाबरिया के लिए करने को ज्यादा कुछ नहीं था। सतीश शाह का भी ठीक से उपयोग नहीं किया गया।

एडिटिंग बेरहमी से की गई है और कई सीन अधूरे से लगते हैं। हिमेश रेशमिया ने एक-दो गीत सुनने लायक बनाए हैं।

कुल मिलाकर ‘मिलेंगे मिलेंगे’ एक औसत दर्जे की फिल्म है।

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