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लंदन ड्रीम्स : दोस्ती, संगीत और प्रेम का त्रिकोण

हमें फॉलो करें लंदन ड्रीम्स : दोस्ती, संगीत और प्रेम का त्रिकोण

समय ताम्रकर

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बैनर : हेडस्टॉर्ट फिल्म्स यूके लि., ब्लॉकबस्टर मूवी एंटरटेनर्स
निर्देशक : विपुल शाह
संगीत : शंकर-अहसान-लॉय
कलाकार : सलमान खान, अजय देवगन, असिन, ओमपुरी, मनोज पाहवा, बरखा बिष्ट रणविजयसिंह, आदित्य रॉय कपूर
* यू/ए * 18 रील * 2 घंटे 33 मिनट
रेटिंग : 2.5/5

विपुल शाह द्वारा निर्देशित फिल्म ’लंदन ड्रीम्स’ बनाने की प्रेरणा कई फिल्मों से ली गई है। दोस्ती, प्रेम त्रिकोण और संगीत को आधार बनाया गया है, लेकिन फिल्म का सिर्फ पैकेजिंग उम्दा हो पाया है। फिल्म से इतने बड़े नाम जुड़े होने के कारण जो अपेक्षाएँ फिल्म से रहती हैं उन पर यह खरी नहीं उतर पाती है।

पंजाब में रहने वाले मन्नू (सलमान खान) और अर्जुन (अजय देवगन) जिगरी दोस्त हैं। बचपन से ही अर्जुन का सपना है बहुत बड़ा रॉकस्टार बनना और लंदन स्थित वेम्बली स्टेडियम में परफॉर्म करना। सपने को पूरा करने के लिए वह किसी भी हद को पार कर सकता है। दूसरी ओर मन्नू में नैसर्गिक प्रतिभा है और वह इससे अंजान है।

बचपन में अर्जुन के पिता का देहांत हो जाता है और उसके चाचा (ओमपुरी) उसे लंदन ले जाते हैं। अपने चाचा से भागकर वह संघर्ष शुरू करता है और बड़ा होकर एक बैंड बनाता है, जिसमें प्रिया (असिन) भी शामिल होती है। प्रिया को अर्जुन मन ही मन चाहता है।

अर्जुन अपने बचपन के दोस्त मन्नू को भी इस बैंड से जोड़ लेता है और यही से उसकी परेशानी शुरू होती है। अर्जुन की तुलना में मन्नू ज्यादा प्रतिभाशाली है और वह उससे ज्यादा लोकप्रिय हो जाता है। साथ ही प्रिया का भी दिल मन्नू जीत लेता है। ईर्ष्या की आग में जलते हुए अर्जुन, मन्नू को बरबाद करने की कोशिश में लग जाता है।

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इस कहानी में तमाम तरह के मसाले हैं, इसके बावजूद कहानी को ठीक से लिखा नहीं गया है। कहानी को कहने में जल्दबाजी की गई है। हर महत्वपूर्ण घटना अचानक हो जाती है और उनके पीछे कोई ठोस कारण नजर नहीं आता।

लंदन में अर्जुन अपने चाचा का साथ छोड़ भाग जाता है। उसके चाचा उसे ढूँढने की कोशिश क्यों नहीं करते? अर्जुन किस तरह वहाँ जीवन-यापन करता है, यह भी स्पष्ट नहीं है।

अर्जुन जिस तरह बैंड बनाता है, वो बेहद हास्यास्पद है। लंदन के एक व्यस्त इलाके में वह अचानक गाना शुरू करता है। कुछ अँग्रेज उसके हिंदी गाने पर झूमते हैं। अचानक दो पाकिस्तानी उसके साथ शामिल हो जाते हैं और बन गया बैंड। इस हिंदी बैंड की लोकप्रियता दिखाने में भी जल्दबाजी की गई।

मन्नू ड्रग्स लेने लगा है, ये बात सभी जानते हैं, लेकिन उसकी प्रेमिका प्रिया को यह बात बहुत दिनों बाद पता लगती है, जबकि टूर में वह उसके साथ रहती है। इसी तरह प्रिया के रूढि़वादी पिता जो पाश्चात्य संगीत के‍ खिलाफ हैं, उन्हें भी यह बात कई दिनों बाद पता चलती है कि उनकी बेटी ‘लंदन ड्रीम्स’ नामक बैंड से जुड़ी हुई है, जबकि यह बैंड उस समय धूम मचा रहा होता है। शायद प्रिया के पिता अखबार नहीं पढ़ते होंगे क्योंकि फिल्म में इस बैंड की तारीफ से भरे अखबार दिखाए गए हैं। वेम्बली स्टेडियम में हजारों दर्शकों के सामने अर्जुन का मन्नू के खिलाफ अपने दिल की भड़ास निकालने वाला दृश्य भी फिल्मी लगता है।

निर्देशक विपुल शाह भी संभवत: कहानी की इन कमियों से वाकिफ थे, इसलिए उन्होंने अपना सारा जोर रोमांस, कॉमेडी और भव्यता पर लगाया। उन्होंने फिल्म की गति तेज रखी ताकि दर्शकों का ध्यान इन कमियों पर न जाए और इसमें वे कामयाब भी रहे हैं।

फिल्म में कुछ उल्लेखनीय दृश्य हैं, अजय के गाने पर सलमान द्वारा अलग-अलग धुन बनाना, विमान में सलमान और एअर होस्टेस के बीच के दृश्य, विमानतल पर सलमान द्वारा पत्रकार की पिटाई करना, चाँदनी रात में सलमान और अजय का बातचीत करना।

फिल्म संगीत पर आधारित है, लेकिन शंकर-अहसान-लॉय का संगीत निराश करता है। फिल्म में हिट गानों की कमी खलती है।

सलमान खान ने मन्नू का किरदार बेहतरीन तरीके से निभाया है। यह चरित्र उनकी इमेज से मेल भी खाता है। उन्हें कुछ बेहतरीन संवाद और दृश्य भी मिले हैं। उन्हें अपनी हेयर स्टाइल पर ध्यान देना चाहिए। अजय देवगन ने पूरी गंभीरता से अपना किरदार निभाया है, लेकिन जो त्रीवता उनके किरदार को चाहिए थी वे नहीं दे पाए।

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असिन की भूमिका बेहद कमजोर है। बैंड में वे पृष्ठभूमि में सिर्फ नाचती रहती हैं, जबकि अजय देवगन उनके पिता से कहते हैं कि उसे बैंड से जुड़ने दीजिए क्योंकि वह बहुत प्रतिभाशाली (?) है।

तकनीकी रूप से फिल्म बेहद सशक्त है। सेजल शाह ने ‍हर दृश्य खूबसूरती के साथ फिल्माया है। फिल्म को भव्यता प्रदान करने के लिए खूब पैसा खर्च किया गया है। सलीम-सुलेमान का बैकग्राउंड म्यूजिक उम्दा है।

कुल मिलाकर ‘लंदन ड्रीम्स’ का मजा आप कहानी की कमजोरी पर ध्यान न देकर ही उठा सकते हैं।

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