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2 स्टेट्स : मूवी रिव्यू

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समय ताम्रकर

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लिबास से भले ही हम कितने ही आधुनिक हो गए हो, लेकिन बात जब शादी की आती है तो अचानक रूढ़िवादी विचारधाराएं सारी आधुनिकता पर हावी हो जाती हैं। 1981 में के. बालाचंदर ने 'एक दूजे के लिए' बनाई थी, जिसमें लड़के और लड़की को शादी करने में इसलिए अड़चनें आती हैं क्योंकि एक उत्तर भारतीय है तो दूसरा दक्षिण भारतीय। भाषा, पहनावे और संस्कृति की भिन्नताएं रूकावट बनती हैं।

2014 में रिलीज हुई फिल्म '2 स्टेट्स' भी बताती है कि स्थिति बहुत सुधरी नहीं है। अभी भी शादी के लिए लड़के और लड़की में प्यार होना ही काफी नहीं है। कई धरातलों पर समानताएं होना जरूरी है। भारत में शादी लड़के या लड़की से नहीं बल्कि उसके पूरे परिवार से करना होती है क्योंकि ज्यादातरों को शादी के बाद अपने पैरेंट्स के साथ ही रहना होता है। लड़की का लड़के के बजाय लड़के की मां से मधुर संबंध रखना महत्वपूर्ण है। हालांकि अब बड़ी संख्या में विभिन्न जातियों के बीच प्रेम विवाह हो रहे हैं और इसका एक बड़ा कारण यह भी है कि शादी के बाद पति-पत्नी अपने पैरेंट्स के साथ नही रहते हैं।

2 स्टेट्स चेतन भगत द्वारा लिखित इसी नाम के उपन्यास पर आधारित है और 'एक दूजे के लिए' तथा इस फिल्म में कई समानताएं हैं, लेकिन प्रस्तुतिकरण के लिहाज से यह फिल्म काफी अलग है। आईआईएम अहमदाबाद में पढ़ने वाले पंजाबी लड़के कृष मल्होत्रा और तमिल लड़की अनन्या स्वामीनाथन में प्रेम हो जाता है। पढ़ाई खत्म होने के बाद दोनों शादी के करने का फैसला लेते हैं। यहां जाकर उन्हें पता चलता है कि शादी के लिए दोनों में प्यार होना ही काफी नहीं है। दोनों अपने माता-पिता की मर्जी से शादी करना चाहते हैं और उन्हें यह करने में काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।

शाकाहारी-मांसाहारी, भाषा, संस्कृति, पहनावा, रंग जैसे मुद्दों को लेकर मतभेद उभरते हैं। कृष और अनन्या अपनी शादी के लिए वो सारे काम करते हैं जिससे उनके पैरेंट्स खुश हो, लेकिन सफलता हाथ नहीं लगती। एक बार तो वे ऐसी स्थिति में पहुंच जाते हैं कि उनमें ही मतभेद होने लगते हैं।

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जानी-पहचानी कहानी और कमियों के बावजूद फिल्म में रूचि इसलिए बनी रहती है क्योंकि निर्देशक अभिषेक वर्मन के प्रस्तुतिकरण में ताजगी है। फिल्म की शुरुआत में कृष और अनन्या का रोमांस थोड़ा अविश्वसनीय लगता है, लेकिन दिल को छूता है। अनन्या और कृष के बीच में शुरुआत में शारीरिक आकर्षण रहता है जिसे प्यार में तब्दील होते देखना अच्छा लगता है। बीच-बीच में मनोरंजक दृश्य आते रहते हैं जो फिल्म को संभाल लेते हैं। मसलन, अनन्या का हाथ मांगते समय कृष उसके पूरे परिवार के लिए अंगूठी लाता है और कहता है कि वह उसके परिवार के साथ शादी करना चाहता है।

फिल्म में कुछ बातें अखरती हैं, जैसे, कृष और अनन्या के माता-पिता को बहुत ज्यादा ही रूढ़िवादी दिखाया गया है मानो पचास साल पुराना जमाना हो। तीन चौथाई फिल्म पैरेंट्स को मनाने में खर्च हुई है और बीच में कई बार फिल्म खींची हुई प्रतीत होती है।

निर्देशक ने दर्शकों के मनोरंजन का ख्याल रखते हुए कई बार समझौते भी किए और कई सीन ऐसे हैं जो सहूलियत के मुताबिक लिखे गए हैं। जैसे कृष के पिता का हृदय परिवर्तन का अचानक हृदय परिवर्तन हो जाना। एक शादी में दूल्हे का दहेज के लिए अड़ जाना और उसे अनन्या द्वारा मनाना जैसे दृश्य सिर्फ फिल्म की लंबाई बढ़ाते हैं क्योंकि फिल्म की कहानी से इस तरह के दृश्यों का कोई ताल्लुक नहीं है।

अर्जुन कपूर और आलिया भट्ट की केमिस्ट्री दर्शकों को चुम्बक की तरह फिल्म से बांध कर रखती है। आलिया बेहद खूबसूरत लगी हैं और उनका अभिनय फिल्म दर फिल्म निखरता जा रहा है। हालांकि वे तमिल लड़की नहीं लगती है, लेकिन अपने अभिनय से वे इस कमी को बहुत जल्दी कवर कर लेती हैं।

पंजाबी मुंडे के रूप में अर्जुन का अभिनय भी अच्छा है। अपने पिता से बिगड़े रिश्ते और एक प्रेमी की भूमिका उन्होंने अच्छे से निभाई है। फिल्म में एक सीन में कृष कहता है कि पंजाबी सास से खतरनाक कोई नहीं होता है और यह भूमिका अमृता सिंह ने बेहद कुटिलता से निभाई है। रेवती और शिव सुब्रमण्यम ने तमिल पैरेंट्स की भूमिका निभाई।

शंकर-अहसान-लॉय का संगीत '2 स्टेट्स' का निराशाजनक पहलू है। एक भी सुपरहिट गाना नहीं है। प्रेम कहानी में गाने अच्छे लगते हैं, लेकिन '2 स्टेट्स' में ये अखरते हैं।

कमियों के बावजूद आलिया-अर्जुन की केमिस्ट्री, अच्छी एक्टिंग और ताजगी के कारण फिल्म देखी जा सकती है।

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बैनर : नाडियाडवाला ग्रैंडसन एंटरटेनमेंट, धर्मा प्रोडक्शन्स, यूटीवी मोशन पिक्चर्स
निर्माता : साजिद नाडियाडवाला, करण जौहर
निर्देशक : अभिषेक वर्मन
संगीत : शंकर-एहसान-लॉय
कलाकार : अर्जुन कपूर, आलिया भट्ट, रोनित रॉय, अमृता सिंह, शिव सुब्रमण्यम, रेवती
सेंसर सर्टिफिकेट : यूए * 2 घंटे 29 मिनट
रेटिंग : 3/5

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