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एअरलिफ्ट : फिल्म समीक्षा

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समय ताम्रकर

एअरलिफ्ट की शुरुआत में ही स्पष्ट कर दिया जाता है कि रंजीत कटियाल नामक कोई बंदा है ही नहीं, हालांकि प्रचार में यह बात छिपाई गई थी। 36 वर्ष पूर्व घटी घटना को काल्पनिक चरित्र डालकर पेश किया गया है।

रंजीत कटियाल की प्रेरणा मैथ्युज और वेदी नामक दो भारतीयों से ली गई है जिन्होंने 1990 में कुवैत में फंसे एक लाख सत्तर हजार भारतीयों की वापसी में अहम भूमिका निभाई थी, जब वहां पर सद्दाम हुसैन की इराकी सेना ने हमला बोल दिया था। यह ऐसी घटना है जिसमें कई गुमनाम हीरो ने बहादुरी दिखाई और उनकी चर्चा भी नहीं हुई।
 
रंजीत कटियाल कुवैत में बिज़नेस करने वाला भारतीय है जो अपने आपको कुवैती मानता है। हिंदी फिल्मों के गाने सुनने की बजाय अरबी धुन सुनना पसंद करता है। ये बात और है कि अगले सीन में ही वह हिंदी में गाना गाते दिखता है। 'जब चोट लगती है तो मम्मी ही याद आती है', इस बात का उसे तब अहसास होता है जब कुवैत पर हमला हो जाता है और वहां की सरकार कोई मदद नहीं करती। वह अपने परिवार को लेकर भारत जाना चाहता है, लेकिन उसके अंदर का मसीहा तब जाग जाता है जब वह देखता है कि उसके जैसे एक लाख सत्तर हजार लोग हैं जो अपने देश लौटना चाहते हैं। वह सबको इकट्ठा करता है। उनके खाने का इंतजाम कर अपने स्तर पर घर वापसी की कोशिश शुरू कर देता है। 
रंजीत भारत सरकार के एक ऑफिसर्स से बात करता है। इराक जाकर मंत्री से मिलता है। उसकी इस कोशिश को फिल्म में मुख्य रूप से उभारा गया है। भारत सरकार की सुस्त रफ्तार, मामले को गंभीरता से नहीं लेना, कदम-कदम पर इराकी लड़ाकों से खतरा, चारों तरफ हताश लोग, बावजूद इसके रंजीत हिम्मत नहीं खोता और अंत में भारत सरकार से उसे मदद मिलती है। तारीफ एअर इंडिया के पायलेट्स की भी करना होगी जो पौने पांच सौ से ज्यादा उड़ानों के जरिये वहां फंसे भारतीयों को देश लाते हैं जो कि एक बड़ा बचाव ऑपरेशन था। 
 
फिल्म में डिटेल पर खासा ध्यान दिया गया है। कुवैत में शूटिंग, उस दौर के टीवी, फोन, युवा सचिन तेंडुलकर, बालों में फूल लगाकर समाचार पढ़ती सलमा सुल्तान जैसी समा‍चार वाचिका की वजह से हम 90 के दशक में पहुंच जाते हैं। इराकी सैनिकों की बर्बरता और भारतीयों की लाचारी भी दिखाई देती है, लेकिन फिल्म से वो उतार-चढ़ाव नदारद हैं कि दर्शक अपनी सीट से चिपके रहें। 
 
अक्षय कुमार फिल्म के हीरो हैं, लेकिन उन्हें हीरोगिरी दिखाने के अवसर नहीं मिलते। ज्यादातर समय वे सिर्फ बात करते रहते हैं और कोई ठोस योजना नहीं बनाते। बातचीत वाले सीन दिलचस्प नहीं हैं, इस वजह से बीच-बीच में बोरियत से भी सामना होता है और फिल्म ठहरी हुई लगती है।   
 
निर्देशक राजा कृष्ण मेनन ने भले ही काल्पनिक चरि‍त्र डाले हों, लेकिन घटना को वास्तविक तरीके से दर्शाने के चक्कर में उनकी फिल्म इंटरवल तक सपाट है।  इंटरवल के बाद फिल्म में रफ्तार आती है जब परदे पर घटनाक्रम होते हैं। यदि कहानी में थोड़ी कल्पनाशीलता डाली जाती तो फिल्म में थ्रिल पैदा होता। 
 
जहां एक ओर भारतीय सरकार की सुस्त शैली दिखाई गई है तो कोहली जैसा सामान्य ऑफिसर भी दिखाया है जो दिल्ली में बैठ कुवैत में फंसे भारतीयों के लिए परेशान होता रहता है। फिल्म से स्पष्ट होता है कि इस ऑपरेशन में सरकार की ज्यादा दिलचस्पी नहीं थी और ऑफिसर्स के दम पर ही यह संभव हो पाया है। 
 
फिल्म में दो किरदार ऐसे हैं जिनका उल्लेख जरूरी है। प्रकाश वेलावडी ने जॉर्ज नामक किरदार निभाया है, जो हर किसी को अपने सवालों से बेहद परेशान करता है। वह करता कुछ नहीं है, लेकिन हर चीज में मीनमेख निकालता है। प्रकाश ने बेहतरीन अभिनय किया है। दूसरा किरदार इराकी मेजर खलफ बिन ज़ायद का है जिसे इनामुलहक ने अदा किया है। उनका हिंदी बोलने का लहजा और बॉडी लैंग्वेज जबरदस्त है। वे जब स्क्रीन पर आते हैं, राहत देते हैं।  
 
कुछ किरदार स्टीरियोटाइप लगे हैं जैसे पूरब कोहली और निमरत कौर के किरदार। इन्हें एक-दो सीन इसलिए दे दिए गए हैं ताकि इन्हें अपना हुनर दिखाने का मौका मिले।
 
अक्षय कुमार ने ऐसा चरित्र पहली बार निभाया है। रंजीत ‍कटियाल का गुरूर और फिर हताशा को उन्होंने अच्छे से दर्शाया है। निर्देशक ने उन्हें सिनेमा के नाम पर कोई छूट नहीं लेने दी है और उनके कैरेक्टर को रियलिटी के करीब रखा है। रंजीत के किरदार में अक्षय ऐसे घुसे की कभी भी वह उनकी पकड़ से नहीं छूटा। 
 
प्रिया सेठ की सिनेमाटोग्राफी बेहतरीन है। गाने फिल्म में अड़चन पैदा करते हैं और निर्देशक को इससे बचना चाहिए था।
 
बैनर : टी-सीरिज सुपर कैसेट्स इंडस्ट्री लि., केप ऑफ गुड फिल्म्स, क्राउचिंग टाइगर मोशन पिक्चर्स, एमे एंटरटेनमेंट प्रा.लि.
निर्माता : अरूणा भाटिया, मोनिषा आडवाणी, मधु भोजवानी, विक्रम मल्होत्रा, भूषण कुमार, कृष्ण कुमार
निर्देशक : राजा कृष्ण मेनन
संगीत : अमाल मलिक, अंकित तिवारी
कलाकार : अक्षय कुमार, निमरत कौर, पूरब कोहली, प्रकाश वेलावडी, इनामुलहक
सेंसर सर्टिफिकेट : यूए * 2 घंटे 4 मिनट 30 सेकंड
रेटिंग : 3/5  

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