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धर्मसंकट में : फिल्म समीक्षा

हमें फॉलो करें धर्मसंकट में : फिल्म समीक्षा

समय ताम्रकर

धर्म के इर्दगिर्द बुनी गई दो फिल्में 'ओह माय गॉड' और 'पीके' हमें पिछले दिनों देखने को मिली और 'धर्मसंकट में' का भी विषय यही है। धर्मसंकट का कंसेप्ट बेहतरीन है। कंसेप्ट पर बढ़िया स्क्रीनप्ले तैयार करने के मामले में अक्सर बॉलीवुड वाले मार खा जाते हैं और धर्मसंकट में के साथ भी यही होता है। इस कंसेप्ट पर मनोरंजक फिल्म बनाई जा सकती थी, लेकिन यह फिल्म क्लाइमैक्स के पूर्व ही हांफ जाती है। 
 
धर्मपाल (परेश रावल) ब्राह्मण है, हालांकि वह ज्यादा धार्मिक नहीं है। दो वयस्क संतानों के पिता धर्मपाल को एक दिन पता चलता है कि वह मुस्लिम के रूप में पैदा हुआ था और उसे एक हिंदू परिवार ने गोद लेकर पाला-पोसा। यह बात उसे हिला कर रख देती है और वह अपने परिवार को यह बात बताने की हिम्मत नहीं जुटा पाता। 
 
धर्मपाल का बेटा अमित एक लड़की श्रद्धा से शादी करना चाहता है। श्रद्धा के पिता इस शादी के खिलाफ है क्योंकि धर्मपाल की धार्मिक नहीं है। अपने बेटे की खातिर धर्मपाल, नीलानंद बाबा (नसीरुद्दीन शाह) के आश्रम जाने लगता है। 
 
धर्मपाल अपने बॉयलॉजिकल फादर की तलाश करता है और उसे पता चलता है कि वे बहुत बीमार है। उसके पिता से मिलने की इजाजत इमाम (मुरली शर्मा) नहीं देता है। वह एक शर्त रख देता है कि पिता से मिलना है तो मुस्लिम धर्म और रीति-रिवाजों का पालन करना होगा। मेहमूद (अन्नू कपूर) नामक वकील इस काम में धर्मपाल की मदद करता है। एक ओर धर्मपाल हिंदू और दूसरी ओर मुस्लिम रीति-रिवाज सीखता है। धर्मसंकट में फंसा धर्मपाल किस तरह बाहर आता है यह फिल्म का सार है। 
यह फिल्म ब्रिटिश फिल्म 'द इनफिडेल' का हिंदी रिमेक है। धर्मसंकट के साथ दिक्कत यह है कि इसके कंसेप्ट में एक बेहतरीन फिल्म बनने की संभावना का भरपूर दोहन नहीं हुआ। एक अच्छी शुरुआत के बाद निर्देशक और लेखक इसे ठीक से आगे नहीं ले जा सके। उन्हें समझ नहीं आया कि किस तरह फिल्म को खत्म किया जाए। क्लाइमेक्स तो बेहद बुरा है और बोरियत से भरा है। 
 
फिल्म अहम मौकों पर लड़खड़ा जाती है। धर्मपाल अपने परिवार को यह बताने में क्यों डरता है कि वह मुस्लिम के रूप में पैदा हुआ है? इमाम के मना करने के बावजूद वह अपने पिता से मिलने की कोशिश क्यों नहीं करता? बाबा नीलानंद को बेवकूफ की तरह पेश किया गया है फिर भी लाखों लोग उसके अंधभक्त कैसे बन जाते हैं? इन सब बातों को फिल्म में ठीक से पेश नहीं किया गया है, लिहाजा ये मनोरंजन में बाधक बनती हैं। 
फिल्म में कुछ मनोरंजक सीन हैं, जिन्हें देख हंसा जा सकता है, लेकिन इनकी संख्या सीमित है। कुछ दमदार संवाद भी सुनने को मिलते हैं जब धर्मपाल और मेहमूद एक-दूसरे के धर्म पर कीचड़ उछालते हैं। धर्मपाल के धर्मसंकट को अच्छी तरह पेश किया है, लेकिन यह ट्रेक तब असर खो देता है जब जरूरत से ज्यादा लंबा इसे खींचा गया है।
 
निर्देशक फुवाद खान ने फिल्म को बेहतर बनाने की कोशिश की है, लेकिन स्क्रिप्ट का साथ उन्हें नहीं मिलने से वे असहाय नजर आएं। 
 
फिल्म को परेश रावल ने अपने कंधों पर ढोया है। अपने बेहतरीन अभिनय से वे दर्शकों की दिलचस्पी फिल्म में बनाए रखते हैं। अन्नू कपूर और मुरली शर्मा ने उनका बेहतरीन साथ दिया है और दोनों के बीच फिल्माए गए सारे दृश्य उम्दा बन पड़े हैं। नसीरुद्दीन शाह वाला ट्रेक निहायत ही घटिया है। याद नहीं आता कि नसीर ने इतनी घटिया एक्टिंग पिछली बार कब की थी। 
 
धर्मसंकट इतनी बुरी भी नहीं है कि देखी न जा सके, लेकिन ट्रेलर ने जो फिल्म के लिए उम्मीद जगाई थी फिल्म उस पर खरी नहीं उतर पाई। 
 
 
बैनर : वायकॉम 18 मोशन पिक्चर्स, ट्रिंगो मीडिया
निर्माता : सज्जाद चूनावाला, शरीक पटेल
निर्देशक : फुवाद खान
संगीत : मीत ब्रदर्स अंजान, सचिन गुप्ता, जतिंदर शाह
कलाकार : नसीरुद्दीन शाह, परेश रावल, अन्नू कपूर, अलका कौशल, मुरली शर्मा, गिप्पी ग्रेवाल, सोफी चौधरी, हेजल कीच
सेंसर सर्टिफिकेट : यूए * 2 घंटे 9 मिनट 14 सेकंड 
रेटिंग : 2.5/5 

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