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टेक इट ईज़ी : फिल्म समीक्षा

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समय ताम्रकर

, शुक्रवार, 2 जनवरी 2015 (14:48 IST)
छोटे बच्चे के नाजुक कंधों पर बस्ते का बोझ बढ़ता जा रहा है। इसके साथ ही उसे अपने मां-बाप की महत्वाकांक्षाओं का वजन भी उठाना है जो चाहते हैं कि खेल का मैदान हो या परीक्षा का क्षेत्र, उनके बच्चे को फर्स्ट ही आना है। अपने सपनों को पूरा करने में विफल रहे माता-पिता इसकी जिम्मेदारी भी अपने बच्चों पर इस उम्मीद के साथ डाल देते हैं कि वे उसे पूरा करे। 
 
प्रतिस्पर्धा का ऐसा माहौल तैयार किया जा रहा है कि इस कुरुक्षेत्र में पहले नंबर से कम किसी को स्वीकार्य नहीं है। डॉक्टर/इंजीनियर या वकील बनाने की होड़ मची हुई है और कोई यह नहीं सोच रहा है कि बच्चे को पहले अच्छा इंसान बनाया जाए। बच्चों के दिमाग को प्रेशर कुकर बना दिया गया है और यही कारण है कि कम उम्र के बच्चे 'आत्महत्या' जैसा भयानक कदम भी उठा लेते हैं। इसी बात को ध्यान में रख तैयार की गई फिल्म 'टेक इट ईज़ी'।
 
संदेश तो उम्दा है, लेकिन एक फिल्म में संदेश को मनोरंजन के साथ कहना बहुत मुश्किल काम है। बहुत कम निर्देशक ऐसा कर पाते हैं। सुनील प्रेम व्यास ने अपने लेखन और निर्देशन के जरिये अपनी बात को दर्शकों तक पहुंचाने की कोशिश की है, लेकिन उन्होंने जो तानाबाना बुना है वो प्रभावी नहीं है। 
सुनील ने प्रस्तुतिकरण में कल्पनाशीलता दिखा कर दर्शकों को प्रभावित करने की कोशिश की है, लेकिन उनकी लिखी स्क्रिप्ट साथ नहीं देती है। छोटी सी बात को उन्होंने बहुत लंबा खींचा है जिससे बोरियत पैदा होती है और संदेश अपना प्रभाव खो देता है। पैरेंट्स और टीचर की आंख खोलने वाली बात तो शुरू कर दी, लेकिन उसका समापन करते उनसे नहीं बना, लिहाजा एक अति नाटकीय क्लाइमैक्स फिल्म में देखने को मिलता है। 

 
फिल्म के मुख्य किरदार दो बच्चे हैं, जिनकी उम्र दस वर्ष के लगभग है। एक का पिता खिलाड़ी रह चुका है और वह अपने बेटे को खिलाड़ी बनाना चाहता है, लेकिन बेटे की दिलचस्पी पढ़ाई में है। दूसरे का पिता चाहता है कि उसका बेटा खूब पढ़े, लेकिन बेटे की रूचि कुछ और है। मां-बाप सपने लाद देते हैं। इस मूल कहानी के साथ कई बातों को समेटने की कोशिश निर्देशक और लेखक ने की है। जैसे- महंगे स्कूलों के प्रति लोगों का आकर्षण, स्कूल मैनेजमेंट की धांधलियां, अमीर-गरीब माता-पिता के बच्चों में फर्क इत्यादि। लेकिन ये बातें प्रभावित नहीं कर पाती है और फिल्म दिशा भटकती हुई लगती है। महसूस होता है कि फिल्म की लंबाई को बढ़ाने के लिए इन प्रकरणों को डाला गया है। एक बात तो ऐसी है कि फिल्म गलत दिशा में जाती है, जैसे आर्थिक रूप से कमजोर बच्चे को स्कॉलरशिप दिलाने के लिए होशियार बच्चे परीक्षा में सवालों के गलत जवाब लिखते हैं।
 
कुछ ऐसे दृश्य भी हैं जिन पर हैरत होती है कि क्यों इन्हें फिल्म में जगह दी गई है। बच्चों का नाटक में हिस्सा लेने वाला सीन ऐसा ही है। कुछ सीन आपको भावुक भी करते हैं। अभिनय के मामले में फिल्म के कुछ कलाकार अच्छे रहे हैं तो कुछ ने ओवर एक्टिंग की है। 
 
'टेक इट ईज़ी' के लिए संदेश तो अच्छा चुना गया, लेकिन फिल्म के रूप में उसे ठीक से पेश नहीं किया गया। 
 
बैनर : प्रिंस प्रोडक्शन्स
निर्माता : धर्मेश पंडित
निर्देशक : सुनील प्रेम व्यास
कलाकार : विक्रम गोखले, दीपान्निता शर्मा, राज जुत्शी, अनंग देसाई, जॉन सेनगुप्ता
सेंसर सर्टिफिकेट : यू * 2 घंटे 3 मिनट
रेटिंग : 2/5

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