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पाड़े वाला तो गया ये तो हाथी वाला है

हमें फॉलो करें पाड़े वाला तो गया ये तो हाथी वाला है

मनीष शर्मा

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एक बार एक महावत धन की जरूरत पड़ने पर अपने हाथी को बेचने के लिए खरीददार की तलाश में निकला। जब वह एक गाँव के जमींदार की हवेली के सामने से गुजर रहा था तो उस समय शराब के नशे में धुत जमींदार ने निगाह घुमाकर हाथी को रौब से देखने के बाद महावत से पूछा- क्यों रे, क्या मोल है तेरे इस पाड़े का। बोल, बेचेगा क्या?

महावत को अपने प्यारे हाथी के लिए पाड़े का संबोधन बहुत बुरा लगा और वह बिना कुछ कहे आगे बढ़ गया। जमींदार पीछे से चिल्लाता रह गया। एक सप्ताह बीतने पर भी जब महावत को कोई खरीददार नहीं मिला तो उसे जमींदार की याद आई। उसने सोचा कि वह व्यक्ति पैसे के जोर में आकर ही हाथी को पाड़ा कह रहा होगा। अगले दिन वह पूरी उम्मीद के साथ सुबह-सुबह हाथी को लेकर जमींदार के यहाँ पहुँच गया और बोला- क्षमा चाहूँगा सरकार जो उस दिन बिना कुछ कहे चला गया।

अब आप यह पाड़ा खरीद लें। जमींदार बोला- कहाँ है पाड़ा। यह तो हाथी है। इसे कौन खरीदेगा। पाड़ा खरीदने वाला तो चला गया। महावत हैरानी से बोला- मालिक, कौन चला गया।? आप बैठे तो हैं सामने। जमींदार बोला- अरे, मेरे रहने से कुछ नहीं होगा। पाड़ा खरीदने वाला तो दूसरा था। शाम को एक चक्कर लगा लेना। शायद एकाध बोतल हलक से नीचे जाने के बाद वह फिर प्रकट हो जाए। तब उससे बात कर लेना। महावत को उसकी बात समझ में आ गई और वह वहाँ से चला गया।
  एक बार एक महावत धन की जरूरत पड़ने पर अपने हाथी को बेचने के लिए निकला। जब वह एक गाँव के जमींदार की हवेली के सामने से गुजर रहा था तो शराब के नशे में धुत जमींदार ने हाथी को रौब से देखने के बाद महावत से पूछा- क्यों रे, क्या मोल है तेरे इस पाड़े का।      


दोस्तो, निश्चित ही नशे में व्यक्ति का रूप बदल जाता है, लेकिन नशा उतरने ही वह वापस अपने पुराने रूप में आ जाता है। उसका उन बातों से कोई लेना-देना नहीं होता, जो उसने नशे में कही थीं। लेकिन नशे के अलावा भी हर आदमी के अंदर कई आदमी होते हैं, रहते हैं।

तभी तो कई बार व्यक्ति कुछ ऐसा, चाहे नकारात्मक हो या सकारात्मक, कर गुजरता है जिसके बारे में न तो वह खुद सोच सकता है न ही दूसरे। यह उसके अंदर बैठे कई आदमियों में से ही किसी एक का काम होता है। निदा फाजलकहते हैं- 'मुझ जैसा इक आदमी, मेरा ही हमनाम। उल्टा-सीधा वो चले, मुझे करे बदनाम।' इन अंदर बैठे इंसानों की करतूतों से ही आप बदनाम होते हैं और उसकी कीमत चुकाते हैं, सजा भुगतते हैं।

इसलिए अच्छा यही है कि अपने अंदर बैठे, अपने ही जैसे उन लोगों पर काबू पाओ, उन्हें वश में करो। वैसे भी ये लोग कोई और नहीं, आपके दिमाग के किसी कोने में छिपी बैठी आपकी महत्वाकांक्षाएँ, आपकी भावनाएँ हैं, जो किसी विशेष अवसर पर अचानक जाग्रत हो उठती हैं। जैसे कि कई बार ऐसे लोग, जो किसी के सामने जबान खोलने में भी हिचकते हों, अचानक आवेश में आकर इतना कुछ बोल जाते हैं कि लोग हैरान रह जाएँ।

ऐसा इसी कारण होता है कि उनके अंदर छिपा क्रुद्ध इंसान जाग्रत हो उठता है। इसलिए अपनी भावनाओं को जानकर उन्हें दबाने की बजाय समझाएँ यानी आप खुद से बातें करें। ये बातें दरअसल आप अपने अंदर के उन इंसानों से करेंगे जिनसे आप कम परिचित हैं।

कहते भी हैं कि हर आदमी में होते हैं दस-बीस आदमी। जिसे भी देखना हो, कई बार देखना। और कई बार मिलना भी। तभी आप उससे पूरी तरह परिचित हो पाएँगे नहीं तो वह आपके लिए हमेशा अपरिचित, अजनबी-सा बना रहेगा।

इनसे बातें करके ही आप परिचय बढ़ा सकते हैं और परिचय से अपनत्व। अपनत्व होने पर ही वे भी धैर्य से काम लेंगे और आपके फायदे, आपके भले की सोचेंगे। कभी ऐसे काम नहीं करेंगे जिनसे आपको नुकसान, दुःख, अहित हो।

और अंत में आज 'मल्टीपल पर्सनेलिटी डे' है। डॉक्टरी भाषा में यह एक बीमारी है जो कुछ लोगों में पाई जाती है। लेकिन हमारा मानना है कि हर व्यक्ति की मल्टीपल पर्सनेलिटी होती है। जो खुद पर से पूरी तरह नियंत्रण खो देते हैं, उन्हें इलाज की जरूरत होती है।

और जो नहीं खोते, वे अपने अंदर के हर आदमी को देश, काल, परिस्थिति के अनुसार जाग्रत कर उसका फायदा उठाते हैं। साथ ही आज से कभी अपने को अकेला न समझें क्योंकि आपके अंदर ही दस-बीस मौजूद हैं भाई। अरे यह क्या! आप जाग्रत हो गए!! यानी गुरुमंत्र वाले मनीषजी आराम फरमाने चले गए हैं!!!


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