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सफलता के शिखर पर बैठते हैं भोले

हमें फॉलो करें सफलता के शिखर पर बैठते हैं भोले

मनीष शर्मा

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एक शिकारी जंगल में एक बिल्व वृक्ष पर मचान बनाकर शिकार का इंतजार कर रहा था कि वहाँ से एक हिरणी निकली। शिकारी ने जैसे ही निशाना साधा तो वह बोली- हे शिकारी! मैं अभी गर्भवती हूँ। मुझे अभी मत मार। जल्द ही मैं बच्चे को जन्म देकर तेरे पास आ जाऊँगी, तब मुझे मार लेना।

शिकारी ने उसे जाने दिया। कुछ देर बाद आई दूसरी हिरणी शिकारी से बोली- मैं कई दिनों से अपने पति से नहीं मिली हूँ। मैं उनसे मिलकर आ जाऊँ, तब मार लेना। शिकारी ने उसे भी जाने दिया। शिकार के इंतजार में भूखा-प्यासा बैठकर वह बिल्वपत्र तोड़कर नीचे फेंकने लगा। नीचे एक शिवलिंग था, जिस पर वे पत्र गिर रहे थे। इस तरह अनजाने में ही उससे शिवपूजन हो रहा था।

रात्रि के अंतिम प्रहर में अपने बच्चों के साथ आई एक हिरणी पर जब वह तीर छोड़ने ही वाला था कि वह उससे बोली- मैं इन बच्चों को अपने पति के सुपुर्द करके लौट आऊँगी, तब मुझे मार लेना। जब शिकारी ने मना किया तो उसने अपने बच्चों की दुहाई देकर उसे मना लिया। सुबह एक हिरण वहाँ से निकला। शिकारी को तीर चढ़ाते देख वह बोला- क्या तुमने मुझसे पहले आई सभी हिरणियों को मार दिया है? यदि नहीं, तो मुझे भी जाने दो। मैं ही उनका पति हूँ।
  एक शिकारी जंगल में एक बिल्व वृक्ष पर मचान बनाकर शिकार का इंतजार कर रहा था कि वहाँ से एक हिरणी निकली। शिकारी ने जैसे ही निशाना साधा तो वह बोली- हे शिकारी! मैं अभी गर्भवती हूँ। मुझे अभी मत मार। जल्द ही मैं बच्चे को जन्म देकर तेरे पास आ जाऊँगी।      


मैं उन सबसे मिलकर तुम्हारे पास आ जाऊँगा। शिकारी ने उसे भी जाने दिया। कुछ समय बाद किसी के वापस न आने पर वह सोचने लगा कि शायद हिरणों के भोलेपन से वह मूर्ख बन गया है। तभी वह हिरण-परिवार उसके सामने आकर खड़ा हो गया। उ

नके भोलेपन, सत्यता, आपसी प्रेम और वचनबद्धता को देख शिकारी आत्मग्लानि से भर उठा। उसने उन सभी को जीवनदान दे दिया। अनजाने में किए गए पूजन से शिकारी और अपने भोले आचरण से हिरण परिवार शिवकृपा से मोक्ष के अधिकारी बन गए।

दोस्तो, देखा आपने भोलापन या मासूमियत कितनी फलदायी होती है। ऐसा भोलापन जीवन में हमेशा काम आता है। एक भोला व्यक्ति ही निष्कपट और विश्वसनीय हो सकता है। उस पर आसानी से विश्वास किया जा सकता है। अब यह तो आप जानते ही हैं कि विश्वसनीय लोगों को जीवन में आगे बढ़ने से कोई नहीं रोक सकता।

स्वयं भोलेबाबा यानी ईश्वर भी नहीं, क्योंकि वे तो खुद ऐसे लोगों के पीछे खड़े रहते हैं। आज के जमाने में जब कोई विश्वसनीय व्यक्ति नजर आता है तो दुनिया उसे हाथोंहाथ लेती है। इसलिए आप भी ऐसे ही भोले बनें। हालाँकि भोला बनना आसान भी नहीं है। भोला वही होता है जिसके पास व्यावहारिक ज्ञान का तीसरा नेत्र हो, अर्थात जो सही अर्थों में ज्ञानी हो, समझदार हो, जानकार हो, जिसके हृदय में दूसरों के लिए प्यार हो, जो राग-द्वेष से परे हो।

इसीलिए वास्तविक ज्ञानी हमेशा भोले ही होते हैं। इसी भोलेपन का उन्हें लाभ भी मिलता है बशर्ते भोलेपन का दिखावा न किया जाए वरना परिणाम उल्टे भी हो सकते हैं, होते हैं। इसके विपरीत यदि आप सोचते हैं कि सीधे लोगों का दुनिया फायदा उठाती है तो आप अपनी सोच आज से ही बदल लें और सीधे बनकर सीधे रास्ते पर चलें।

आप देखेंगे कि आप अपना मुकाम बिना किसी परेशानी के आसानी से पा लेंगे क्योंकि आप सीधे रास्ते से जो उस तक जाएँगे। और जो लोग टेढ़े बनकर, टेढ़े रास्तों से, तरीकों से मंजिल पाने की सोच रहे हैं, अव्वल तो वे वहाँ तक पहुँचेंगे ही नहीं, और यदि पहुँचेंगे भी तो उस टेढ़ेपन की कीमत चुकाकर।

और अंत में, आज महाशिवरात्रि यानी भगवान भोलेनाथ का, भोले भंडारी का दिन। उनकी आराधना करते समय ध्यान रखें कि यदि आप उन्हें प्रसन्न करना चाहते हैं तो उनकी आराधना भी भोले बनकर ही करें। कहा भी गया है कि 'शिव भूत्वा शिवं यजेत्‌' अर्थात शिव बनकर ही शिव की उपासना करें।

वैसे भी 'शिवोऽहम्‌' यानी हम ही शिव हैं, क्योंकि हमारे अंदर आत्मा के रूप में परमात्मा का, शिव का अंश जो है। यदि आप खुद को शिव का अंश मानते हुए उनकी भक्ति करेंगे तो भोलेनाथ निश्चित ही प्रसन्न होकर आपको अपनी ही तरह सफलताओं के कैलाश यानी शिखर पर, ऊँचाइयों पर ले जाकर बिठा देंगे। बोल बम, बम-बम।

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