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किसी धर्म की नहीं ये सीख कि दूसरों की निकले चीख

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मनीष शर्मा

मुगल सम्राट औरंगजेब की धर्म परिवर्तन की नीति को लेकर गुरु तेगबहादुर ने उसे चुनौती दी कि वह उनका धर्म परिवर्तन करवाकर दिखाए या अपनी इस नीति को त्याग दे। इससे बौखलाकर औरंगजेब ने उन्हें धोखे से दरबार में बुलाया और साथियों सहित कैद कर लिया। वहाँ उनसे इस्लाम कबूल करवाने के लिए तरह-तरह के हथकंडे अपनाए लेकिन कामयाबी न मिलने पर उनका सिर कलम करने की धमकी दी।

गुरु पर इसका असर न होते देख उनकी आँखों के सामने ही उनके साथी भाई मतिदास को आरी से चीर दिया गया, भाई दयाला को खौलते पानी के कड़ाव में डाल दिया गया, भाई सतीदास को रुई में लपेटकर जिंदा जला दिया गया। इसके बावजूद गुरु डिगे नहीं। हताश औरंगजेब के फरमान पर गुरु तेगबहादुर का सिर भी कलम कर दिया गया। दृढ़ निश्चयी गुरु ने हिन्दू धर्म की रक्षा की खातिर अपना शीश दे दिया, लेकिन सिर न दिया।

  मुगल सम्राट औरंगजेब की धर्म परिवर्तन की नीति को लेकर गुरु तेगबहादुर ने उसे चुनौती दी कि वह उनका धर्म परिवर्तन करवाकर दिखाए या अपनी इस नीति को त्याग दे। इससे बौखलाकर औरंगजेब ने उन्हें धोखे से दरबार में बुलाया और साथियों सहित कैद कर लिया।      
दोस्तो, इस तरह गुरु तेगबहादुरजी ने अपने बचपन के नाम त्यागमल को सार्थक कर दिखाया। वे इस बात के बड़े हिमायती थे कि सभी को अपने-अपने धर्म, मत, संप्रदाय को मानने और उसका पालन करने की आजादी होना चाहिए। किसी भी धर्म को मानने वाले से जबर्दस्ती उसका धर्म परिवर्तन नहीं करवाना चाहिए। सही तो थी उनकी मान्यता।

हर व्यक्ति को यह आजादी होना ही चाहिए कि वह निश्चिंत होकर अपने धर्म का पालन कर सके। वैसे भी सभी धर्मों का सार तो एक ही है। ऐसा कौन-सा धर्म है जो आपको गलत रास्ते पर चलने की सलाह देता है, दुर्गुणों को अपनाने की बात करता है। किस धर्म में प्रेम, सद्भाव, इंसानियत, सुख-शांति, ज्ञान, आनंद और पवित्रता की बात नहीं की गई है।

कौन-सा धर्म पापियों को बढ़ावा देने और निर्दोषों को यातना देने, उनकी चीख निकलवाने की सीख देता है। कोई सा भी नहीं ना। लेकिन पता नहीं क्यों, कुछ लोगों को ये बातें समझ में नहीं आतीं। उन्हें लगता है कि दूसरों के मुकाबले उनका धर्म ही श्रेष्ठ है। वे चाहते हैं कि दूसरे लोग अपना धर्म बदलकर उनका धर्म ही मानने लगें। इससे समानता आएगी और दंगे-फसाद जैसी कई समस्याएँ अपने आप हल हो जाएँगी।

तो इससे समस्याएँ हल नहीं होतीं बल्कि इसी सोच के कारण समस्याएँ बढ़ती हैं, क्योंकि जो आपके अपने हैं उनके प्रति ही आप लापरवाह हैं, तो दूसरों की परवाह कैसे करेंगे। और जब आप प्रलोभन देकर किसी को अपने साथ जोड़ेंगे तो वह तो ऊपरी तौर पर ही आपसे जुड़ेगा। वैसे भी थोड़े से स्वार्थ के लिए जो अपनी निष्ठा बदल ले, वह व्यक्ति आपके धर्म के प्रति निष्ठावान रहेगा, यह कैसे कहा जा सकता है।

इसलिए किसी को अपने धर्म में मिलाने की बजाय अपने दिल से मिलाएँ, अपना बनाएँ। जब दिल मिल गए तो फिर क्या फर्क पड़ता है कि वह किस धर्म का है। और यदि दिल नहीं मिले हैं तो वह आपके धर्म की छोड़ो, आपके परिवार का भी होगा तो भी आपका साथ नहीं देगा। वैसे भी जहाँ एक ही धर्म के लोग साथ-साथ रहते हैं, वहाँ क्या झगड़े-झंझट नहीं होते, वहाँ क्या मनमुटाव नहीं होते, बल्कि ज्यादा ही होते हैं, क्योंकि वहाँ कोई किसी का लिहाज नहीं करता। और जब अलग-अलग संप्रदाय के लोग साथ-साथ रहकर झगड़ते हैं तो वहाँ एक तरह का लिहाज उन्हें सीमा पार करने से रोकता है कि कहीं कुछ उल्टा-सीधा बोल बैठे, कर बैठे तो लेने के देने पड़ सकते हैं।

यह बात हर स्तर पर लागू होती है। इसलिए बेकार के चक्कर में पड़ने की बजाय यह सोचो कि आप अपने धर्म का पालन कितनी निष्ठा, कितनी ईमानदारी से करते हैं। यदि सभी अपने-अपने धर्म के मर्म को ईमानदारी से जानने-मानने लगें तो उन्हें दूसरों के धर्म भी अपने लगने लगेंगे और झगड़े की जड़ ही खत्म हो जाएगी।

और अंत में, आज गुरु तेगबहादुर देवजी का शहीद दिवस है। उनके त्याग को याद करके प्रण करें कि आज से आप मानवता या इंसानियत को अपना पहला धर्म मानेंगे। ऐसा करके ही आप सच्चे अर्थों में अपने धर्म के अनुयायी कहलाने के अधिकारी होंगे। अरे, यह शोर कैसा, ये चीखें कैसी? अच्छा-अच्छा, पड़ोस के घर में भाई-भाई झगड़ रहे हैं!

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