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रंग-ढंग जानने वालों पर नहीं चलती रंगदारी

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मनीष शर्मा

ND
एक बार बादशाह अकबर बीरबल को डराने के लिए अपना हुलिया बदलकर उस सुनसान जगह पर खड़े हो गए, जहाँ से बीरबल रोज तय समय पर गुजरते थे। जैसे ही बीरबल वहाँ पहुँचे, बादशाह अचानक झाड़ियों में से कूदकर उनके सामने आकर उन्हें डराने लगे, लेकिन बीरबल डरे नहीं बल्कि हैरानी से बादशाह की ओर देखने लगे।

इसके बाद उन्होंने मुस्कुराते हुए बादशाह को पास के एक चबूतरे पर बैठाया और फिर गंभीर मुद्रा में उनके बगल में बैठकर कुछ सोचने लगे। अब हैरान होने की बारी अकबर की थी। वे सोचने लगे कि मेरी सारी मशक्कत बेकार चली गई। इसके बाद उन्होंने बीरबल से पूछ ही लिया कि वे किस सोच में डूबे हैं।

बीरबल बोले- हुजूर, आपके हुलिए को देखकर पहले तो मुझे खुशी हुई, लेकिन बाद में हैरानी कि आखिर आपको किसके डर से यह हुलिया बनाकर यहाँ छिपने की जरूरत पड़ गई। बीरबल के जवाब से बादशाह बगलें झाँकने लगे।
  एक बार बादशाह अकबर बीरबल को डराने के लिए अपना हुलिया बदलकर उस सुनसान जगह पर खड़े हो गए, जहाँ से बीरबल रोज तय समय पर गुजरते थे। जैसे ही बीरबल वहाँ पहुँचे, बादशाह अचानक झाड़ियों में से कूदकर उनके सामने आकर उन्हें डराने लगे।      


दोस्तो, जानते हैं बीरबल क्यों नहीं डरें, क्योंकि वे अकबर की रग-रग से वाकिफ थे। यानी वे उनके हर रूप से, रंग-ढंग से परिचित थे। जब व्यक्ति सामने वाले को गहराई से जानता है, तो फिर वह कोई-सा भी रूप बना ले, वह पहचान में आ ही जाता है। और जिसे आप पहचानते हैं, उससे डरने का सवाल ही नहीं। डर तो उनसे लगता है जिनसे या तो परिचय नहीं होता या होता भी है तो ऊपरी तौर पर।

ऐसा व्यक्ति अचानक यदि किसी दूसरे रूप में आ जाए तो मन में यह बात आ ही जाती है कि इसके इस रूप के बारे में तो सोचा ही नहीं था। यही कारण है कि जिन व्यक्तियों के नाम का आतंक लोगों के दिलों में होता है, उनके घर का सेवक भी उनसे समय पड़ने पर मुँहजोरी कर लेता है। उसे पता होता है कि सामने वाला कितने पानी में है।

जो लोग काफी करीब होते हैं, वे आपके चेहरे को देखकर आपके मन के भाव पढ़ लेते हैं। वे जानते हैं कि कब आपके चेहरे की हवाइयाँ उड़ी हुई हैं, चेहरा लटका हुआ है, बिगड़ा हुआ है, तमतमा रहा है, उसका रंग उड़ा हुआ है या पीला पड़ा हुआ है और कब वह खिला हुआ है।

यानी इस तरह वे आपके चेहरे को इतनी बार पढ़ चुके होते हैं कि बदले हुलिए के बाद भी उन्हें आपका चेहरा साफ नजर आ जाता है। इसी कारण रंग-ढंग जानने वाले निकट के लोगों पर अच्छे-अच्छों की रंगदारी नहीं चलती।

कहते हैं कि पहली मुलाकात में किसी के व्यक्तित्व बारे में फैसला नहीं करना चाहिए, क्योंकि हो सकता है सामने वाला वैसा हो ही नहीं जैसा आपको पहली नजर में नजर आता है। यही कारण है कि कई बार पहली मुलाकात में गलत नजर आने वाले लोग बाद में हमें सही लगने लगते हैं और इसका उलट भी।

जब उनकी हकीकत सामने आती है तब आपको पता चलता है कि सामने वाला तो बिलकुल अलग है। इसलिए व्यक्ति को पहचानना सीखें। सूरत की बजाय सीरत देखें। यदि आप सतर्क रहेंगे तो कभी धोखा नहीं खाएँगे, वर्ना आज के दौर में तो बहुत से बहरूपिए किसी न किसी को किसी न किसी रूप में फाँसने की ताक में घूमते ही रहते हैं।

दूसरी ओर, कई लोग तो आपको अपनी संस्था में ही ऐसे मिल जाएँगे जिनका हर व्यक्ति के सामने एक अलग ही रूप होता है। अकसर व्यक्ति ऐसा तभी करता है, जब उसे अपनी अयोग्यता और अक्षमता के सार्वजनिक हो जाने का डर रहता है और वह मुखौटे लगाकर इस डर को छिपाना चाहता है।

इसी कारण वह अपनी बात को दूसरों के सामने इस तरह रखता है कि सामने वाला उसके रुतबे में आ जाए और वह जान ही न पाए कि उसका रूप, उसकी बातें सच्चाई से कोसों दूर हैं। यदि आप भी ऐसे ही हुलिया बनाने में उस्ताद हैं तो आपकी यह कलाकारी तभी तक चल सकती है कि जब तक कि सामने वाले आपकी रग-रग से वाकिफ नहीं हो जाते। और जब वे आपकी हकीकत जान जाते हैं, तो फिर आपकी दाल गलना बंद हो जाती है।

इसलिए जरूरत ही क्या है मुखौटे लगाने की, बदलने की। जैसे हो, वैसे ही रहो। अपनी कमजोरियों को छिपाने की बजाय दूर करो। तब आपको न किसी को डराने की जरूरत पड़ेगी न आप किसी से डरेंगे। अच्छा, अब समझ में आया ऑफिस के लोग मुझसे डरते क्यों नहीं। रग-रग से जो वाकिफ हैं।

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