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(दुर्गा नवमी)
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पार्वती ही 'माता' हैं

हमें फॉलो करें पार्वती ही 'माता' हैं

अनिरुद्ध जोशी 'शतायु'

NDND
या देवी सर्वभूतेषु चेतनेत्यभिधीयते।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।


शिव की पत्नी माँ पार्वती का ध्यान करना ही सही मार्ग है। अन्य किसी देवी का ध्यान शाक्त धर्म के विरुद्ध है। वही जगदम्बा, उमा, गौरी और सती हैं। इनके दो पुत्र हैं गणेश और कार्तिकेय।


माता की कथा :
आदि सतयुग के राजा दक्ष की पुत्री पार्वती माता को शक्ति कहा जाता है। यह शक्ति शब्द बिगड़कर 'सती' हो गया। पार्वती नाम इसलिए पड़ा की वे पर्वतराज अर्थात पर्वतों के राजा की पुत्र थीं। राजकुमारी थीं, लेकिन वे भस्म रमाने वाले योगी शिव को अपना पति बनाना चाहती थीं। शिव के कारण ही उनका नाम शक्ति हो गया। पिता की ‍अनिच्छा से उन्होंने हिमालय के इलाके में ही रहने वाले योगी शिव से विवाह कर लिया।

एक यज्ञ में जब दक्ष ने पार्वती (शक्ति) और शिव को न्योता नहीं दिया, फिर भी पार्वती शिव के मना करने के बावजूद अपने पिता के यज्ञ में पहुँच गईं, लेकिन दक्ष ने शिव के विषय में सती के सामने ही अपमानजनक बातें कही। पार्वती को यह सब बरदाश्त नहीं हुआ और वहीं यज्ञ कुंड में कूदकर अपने प्राण त्याग दिए।

यह खबर सुनते ही शिव ने अपने सेनापति वीरभद्र को भेजा, जिसने दक्ष का सिर काट दिया। इसके बाद दुःखी होकर सती के शरीर को अपने सिर पर धारण कर शिव ‍क्रोधित हो धरती पर घूमते रहे। इस दौरान जहाँ-जहाँ सती के शरीर के अंग या आभूषण गिरे वहाँ बाद में शक्तिपीठ निर्मित किए गए। जहाँ पर जो अंग या आभूषण गिरा उस शक्ति पीठ का नाम वह हो गया। इसका यह मतलब नहीं कि अनेक माताएँ हो गईं।

माता पर्वती ने ही ‍शुंभ-निशुंभ, महिषासुर आदि राक्षसों का वध किया था।

माता का रूप :
माँ के एक हाथ में तलवार और दूसरे में कमल का फूल है। पितांबर वस्त्र, सिर पर मुकुट, मस्तक पर श्वेत रंग का अर्धचंद्र तिलक और गले में मणियों-मोतियों का हार है। शेर हमेशा माता के साथ रहता है।

माता की प्रार्थना:
जो दिल से पुकार निकले वही प्रार्थना। न मंत्र, न तंत्र और न ही पूजा-पाठ। प्रार्थना ही सत्य है। माँ की प्रार्थना या स्तुति के पुराणों में कई श्लोक दिए गए हैं।

माता का तीर्थ : शिव का धाम कैलाश पर्वत है वहीं मानसरोवर के समीप माता का धाम है जहाँ दक्षायनी माता का मंदिर बना है। वहीं पर माँ साक्षात विराजमान हैं।

नवदुर्गा का रहस्य :
1.शैलपुत्री 2. ब्रह्मचारिणी 3. चंद्रघंटा 4.कुष्मांडा 5.स्कंदमाता 6. कात्यायनी 7. कालरात्रि 8. महागौरी 9. सिद्धिदात्री।

शैल पुत्री का अर्थ पर्वत राज हिमालय की पुत्री। ब्रह्मचारिणी अर्थात जब उन्होंने तपश्चर्या द्वारा शिव को पाया था। चंद्रघंटा अर्थात जिनके मस्तक पर चंद्र के आकार का तिलक है। ब्रह्मांड को उत्पन्न करने की शक्ति प्राप्त करने के बाद उन्हें कुष्मांडा कहा जाने लगा। उदर से अंड तक वे अपने भीतर ब्रह्मांड को समेटे हुए हैं, इसीलिए कुष्‍मांडा कहलाती हैं।

उनके पुत्र कार्तिकेय का नाम स्कंद भी है इसीलिए वे स्कंद की माता कहलाती हैं। महर्षि कात्यायन की तपस्या से प्रसन्न होकर उन्होंने उनके यहाँ पुत्री रूप में जन्म लिया था इसीलिए वे कात्यायनी कहलाती हैं।

माँ पार्वती देवी काल अर्थात हर तरह के संकट का नाश करने वाली हैं, इसीलिए कालरात्रि कहलाती हैं। माता का वर्ण पूर्णत: गौर अर्थात गौरा है इसीलिए वे महागौरी कहलाती हैं। जो भक्त पूर्णत: उन्हीं के प्रति समर्पित रहता है उसे वे हर प्रकार की सिद्धि दे देती हैं इसीलिए उन्हें सिद्धिदात्री कहा जाता है।

दस महाविद्या :
1.काली 2.तारा 3.षोडशी (त्रिपुरसुंदरी) 4.भुवनेश्वरी 5.छिन्नमस्ता 6.त्रिपुरभैरवी 7. धूमावती 8. बगला 9. मातंगी 10.कमला

कहते हैं कि जब सती ने दक्ष के यज्ञ में जाना चाहा तब शिवजी ने वहाँ जाने से मना किया। इस निषेध पर माता ने क्रोधवश पहले काली शक्ति प्रकट की फिर दसों दिशाओं में दस शक्तियाँ प्रकट कर अपना प्रभाव दिखलाया, जिस कारण शिव को उन्हें जाने की आज्ञा देने पर मजबूर होना पड़ा। यही दस महाविद्या अर्थात दस शक्ति हैं। इनकी उत्पत्ति में मतभेद भी हैं।

अंत: माता पर्वती का ध्यान करना और उन्हीं की भक्ति पर कायम रहने वाले को जीवन में कभी शोक और दुःख नहीं सहना पड़ता। माता सिर्फ एक ही हैं अनेक नहीं यह बात जो जानता है वही शिव की शक्ति के ओज मंडल में शामिल हो जाता है।

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