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आज के शुभ मुहूर्त

(चतुर्थी तिथि)
  • तिथि- आश्विन शुक्ल चतुर्थी
  • शुभ समय- 6:00 से 7:30 तक, 9:00 से 10:30 तक, 3:31 से 6:41 तक
  • व्रत/मुहुर्त-उपांग ललिता व्रत, विश्व आवास दिवस
  • राहुकाल-प्रात: 7:30 से 9:00 बजे तक
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भगवती आराधना परम कल्याणकारी

हमें फॉलो करें भगवती आराधना परम कल्याणकारी
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- पं. प्रेमकुमार शर्मा

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युग-युगांतरों में विश्व के अनेक हिस्सों में उत्पन्न होने वाली मानव सभ्यता ने सूर्य, चंद्र, ग्रह, नक्षत्र, जल, अग्नि, वायु, आकाश, पृथ्वी, पेड़-पौधे, पर्वत व सागर की क्रियाशीलता में परम शक्ति का कहीं न कहीं एहसास किया। उस शक्ति के आश्रय व कृपा से ही देव, दनुज, मनुज, नाग, किंनर, गधर्व, पित्तर, पेड़-पौधे, पशु-पक्षी व कीट आदि चलायमान हैं।

ऐसी परम शक्ति की सत्ता का सतत्‌ अनुभव करने वाली सुसंस्कृत, पवित्र, वेदगर्भा भारतीय भूमि धन्य है। जिसके सद्गृहस्तियों ने धर्म, अर्थ, काम तथा जीवन के अन्तिम लक्ष्य मोक्ष को भी प्राप्त किया।

हमारे वेद, पुराण व शास्त्र गवाह हैं कि जब-जब किसी आसुरी शक्ति ने अत्याचार व प्राकृतिक आपदाओं द्वारा मानव जीवन को तबाह करने की कोशिश की तब-तब किसी न किसी दैवीय शक्ति का अवतरण हुआ। इसी प्रकार जब महिषासुरादि दैत्यों के अत्याचार से भू व देव लोक व्याकुल हो उठे तो परम पिता परमेश्वर की प्रेरणा से सभी देव गणों ने एक अद्भुत शक्ति का सृजन किया जो आदि शक्ति माँ जगदंबा के नाम से सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में व्याप्त हुईं। जिन्होंने महिषासुरादि दैत्यों का वध कर भू व देव लोक में पुनः प्राण शक्ति व रक्षा शक्ति का संचार कर दिया।

देवी भागवत, सूर्य पुराण, शिव पुराण, भागवत पुराण, मारकण्डेय आदि पुराणों में शिव व शक्ति की कल्याणकारी कथाओं का अद्वितीय वर्णन है। शक्ति की परम कृपा प्राप्त करने हेतु सम्पूर्ण भारत में नवरात्रि का पर्व वर्ष में दो बार चैत्र शुक्ल प्रतिपदा तथा आश्विन शुक्ल प्रतिपदा को बड़ी श्रद्धा, भक्ति व हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। जिसे वसंत व शारदीय नवरात्रि के नाम से जाना जाता है।

इस वर्ष नवरात्रि का पावन पवित्र पर्व 16 मार्च 2010 चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से प्रारंभ हो रहा है। अन्योआश्रित जीवन की रीढ़ कृषि व जीवन के आधार प्राणों की रक्षा हेतु इन दोनों ही ऋतुओं में लहलहाती हुई फसलें खेतों से खलिहान में आ जाती हैं।

इन फसलों के रख रखाव व कीट पंतगों से रक्षा हेतु, घर-परिवार को सुखी व समृद्ध बनाने तथा भयंकर कष्टों, दुःख-दरिद्रता से छुटकारा पाने हेतु सभी वर्ग के लोग नौ दिनों तक विशेष सफाई तथा पवित्रता को महत्व देते हुए नव देवियों की आराधना करते हुए हवनादि यज्ञ क्रियाएँ करते हैं। यज्ञ क्रियाओं द्वारा पुनः वर्षा होती है जो धन, धान्य से परिपूर्ण करती है तथा अनेक प्रकार की संक्रमित बीमारियों का अंत भी करती है।

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