प्रीति सोनी
मुस्कुराता, इठलाता बचपन
क्यों न संभालें प्यारा बचपन
हम सबमें है एक मासूम
उसमें रहता सारा बचपन
जीवन की आपाधापी में
व्यस्त हो गए सारे लोग
कब अपने अंदर झाका
बच्चों संग जीवन जीवंत
खुशियों का फिर नहीं है अंत
क्या रक्खा है बड़ा भी बनकर
जब बसंत और बहार हो बचपन
चलो फिर से बच्चा बन जाएं
रुठें कभी तो कभी मान जाएं
ईश्वर की यह देन है प्यारी
जिसने दिल से संवारा बचपन।