Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

इस तरह बचा ली जाएगी कविता की जान

इस बार प्रियंकर का अनहद-नाद

हमें फॉलो करें इस तरह बचा ली जाएगी कविता की जान

रवींद्र व्यास

WDWD
जब चारों तरफ यह ढींढोरा पीटा जा रहा हो कि कविता अब कोई नहीं पढ़ता, हजार शिकायतें की जा रही हों कि कविता समझ में नहीं आती, यह प्रचारित किया जा रहा हो कि अब पाँच साल में भी कविता का एक संस्करण नहीं बिकता, और यह भी कि अब पाठक कविता की और पीठ किए बैठा रहता है तब, हाँ तब, कविता केंद्रित एक ब्लॉग को १६ अगस्त को दो साल पूरे होने जा रहे हैं। यह कविता प्रेमियों के लिए क्या एक खबर नहीं बनना चाहिए?

इस ब्लॉग का नाम अनहद-नाद है और ब्लॉगर हैं कवि प्रियंकर। १६ अगस्त २००६ को इस ब्लॉग की शुरुआत करते हुए उन्होंने लिखा था कि- ज्ञान के अन्य अनुशासनों की तरह कविता भजीवन को समझने का एक उपक्रम है, अलबत्ता अधिक आनंदप्रद उपक्रम। कविता में मन को रंजित करने का तत्व होता है पर कविता प्रचलित अर्थों में मनोरंजन की विधा नहीं है। कविता हमारे अंतर्जगत को आलोकित करती है। वह भाषा की स्मृति है।

खाँटी दुनियादार लोगों की जीवन-परिधि में कविता कदाचित विजातीय तत्व हो सकती है, पर कविता के लोकतंत्र में रहने वाले सहृदय सामाजिकों के लियकविता - सोशल इंजीनियरिंग का - प्रबोधन का मार्ग है। कविता मनुष्यता की पुकार है । प्रार्थना का सबसे बेहतर तरीका। जीवन में जो कुछ सुघड़ और सुन्दर है कविता उसे बचाने का सबसे सशक्त माध्यम है। कठिन से कठिन दौर में भी कविता हमें प्राणवान रखती है और सीख देती है कि कल्पना और सपनों का संसार अनंत है।

यह चिट्ठा हिंदी कविता तथा हिंदी में अनूदिअन्भारतीऔर विदेशी भाषाओकी अनूठी कविताओं का प्रतिनिधि काव्य-मंच बनने का आकांक्षा-स्थल है - सभी काव्यप्रेमियों का आत्मीय संवाद-स्थल जहाँ बेहतरीन कविताएँ तो होंगी ही, साथ ही होंगी उन कविताओं पर आपकी सुचिंतित टिप्पणियाँ

जाहिर है यह एक कविता प्रेमी का विनम्र प्रयास है और विश्वास भी कि वह जो कविताएँ यहाँ प्रस्तुत कर रहा है वे पढ़ी जाएँगी। निश्चित ही ये पढ़ी और सराही जा रही हैं। इसका पता उन टिप्पणियों से मिलता है जो यहाँ पर पोस्ट पर की जा रही हैं। यह आश्वस्तिकर है। इससे भरोसा पैदा होता है लोग अच्छी कविता पढ़ना चाहते हैं।

इस ब्लॉग की खासियत यह है कि इसमें किसी खास तरह की कविता के प्रति कोई आग्रह-दुराग्रह नहीं है। हम सब हिंदी साहित्य में गुटबाजी और उसके अंडरवर्ल्ड से परिचित हैं लेकिन इसकी झलक आपको यहाँ देखने को नहीं मिलेगी। हिंदी में तमाम तरह की पत्रिकाओं ने अपने कविता अंक निकाले हैं, उन्हें लेकर विवाद होते रहे हैं, असहमतियाँ व्यक्त की जाती रही हैं लेकिन इस ब्लॉगर ने भरसक यह कोशिश की है कि हर तरह की कविताओं की एक साफ झलक प्रस्तुत की जा सके। यहाँ हर ढंग और हर ढब की कविताएँ पढ़ी जा सकती हैं।

निश्चित ही इसमें कुछ महत्वपूर्ण कवि छूट गए लगते हैं लेकिन इसके बावजूद यहाँ आपको एक तरफ अज्ञेय से लेकर भवानीप्रसाद मिश्र तक, धूमिल, रघुवीर सहाय, श्रीकांत वर्मा से लेकर कुँवर नारायण, केदारनाथ सिंह और अशोक वाजपेयी की कविताएँ भी मिल जाएँगी और विनोदकुमार शुक्ल, लीलाधर जगूड़ी, भगवत रावत, नरेश सक्सेना, ऋतुराज की कविताएँ भी।

उदयप्रकाश, मंगलेश डबराल, अरुण कमल, असद जैदी की कविताएँ भी यहाँ हैं तो कुमार अंबुज, देवीप्रसाद मिश्र, बद्रीनारायण से लेकर एकांत श्रीवास्तव की कविताएँ भी मिल जाएँगी। गगन गिल, अनामिका, नीलेश रघुवंशी, शुभा और अष्टभुजा शुक्ल की कविताएँ भी मिलेंगी। गीत चतुर्वेदी से लेकर हाल ही में भारतभूषण अग्रवाल पुरस्कार से सम्मानित युवतम कवि निशांत की कविता भी पढ़ी जा सकती है। इसके अलावा बंगला कविता से आपका आत्मीय परिचय हो सकता है दो-एक जगह पाकिस्तानी कविता से।

कुँवर नारायण की एक मार्मिक कविता पोस्ट की गई है-यकीनों की जल्दबाजी से। इसे पढ़ें।

एक बार खबर उड़ी

कि कविता अब कविता नहीं रही

और यूँ फैली

कि कविता अब नहीं रही!

यकीन करनेवालों ने यकीन कर लिया

कि कविता मर ग

लेकिशक करने वालों नशक किया

ि ऐसा हो ही नहीं सकता

और इस तरह बच गई कविता की जान

ऐसा पहली बार नहीं हु

कि यकीनों की जल्दबाज़ी से

महज़ एशक ने बचा लिया हो

किसी बेगुनाह को।


मुझे लगता है तमाम हो-हल्ले के बीच यह ब्लॉग अपने तरीके से कविता को बचाने की कोशिश करता है। यहाँ दी गई वे कविताएँ हैं जो सहज संप्रेषणीय हैं और कविता से दूर जाते पाठक को पास बुलाने के लिए शायद यह एक तरीका है। इस दृष्टि से अनामिका की मौसियाँ, एकांत श्रीवास्तव की रास्ता काटना, लोहा, अशोक वाजपेयी की विश्वास करना चाहता हूँ, असद जैदी की कुंजड़ों का गीत, कुमार अंबुज की किवाड़, एक कम है, जगूड़ी की मेरी कथा, प्रार्थना, श्रीकांत वर्मा की कोसल में विचारों की कमी है, रघुवीर सहाय की दर्द, सेब बेचना, देवी प्रसाद मिश्र की मामूली कविता, मंगलेश डबराल की आँखें, त्वचा, उदयप्रकाश की दिल्ली और बैल, नरेश सक्सेना की फूल कुछ नहीं बताएँगे और विष्णु नागर की माँ सब कुछ कर सकती है जैसी कविताएँ मार्मिक हैं। पाकिस्तानी शायर अहमद फराज का शेर और जहरा निगाह की कविता बनवास ध्यान खींचती है।

अनामिका की कविता की मौसियाँ की पंक्तियाँ देखिए-

बालों के बहान
वे गाँठें सुलझाती हैं जीवन क
करती हैं परिहास, सुनाती हैं किस्स
और फिर हँसती-हँसात
दबी-सधी आवाज़ में बताती जाती हैं --
चटनी-अचार-मूँगबड़ियाँ और बेस्वाद संबं
चटपटा बनाने के गुप्त मसाले और नुस्खे --
सारी उन तकलीफ़ों के जिन प
ध्यान भी नहीं जाता औरों क
इस कविता में जीवन का राग भी है, दुःख और अवसाद भी है। बहुत धैर्य और संयम के साथ अनामिका ने उस भुला दिए जा रहे रिश्तों-नातों को उनके सुख-दुःख, उल्लास-उमंग के साथ अभिव्यक्त किया है। इसी तरह अष्टभुजा शुल्क की छोटी किंतु मारक कविता अच्छी है।
मृत्यु
कराह सुनकर
जो न टूटे
नींद नहीं,
मृत्यु है
चाहे जितना थका हो आदमी
और चाहे जब सोया हो
इस ब्लॉग पर भारतभूषण अग्रवाल पुरस्कार से सम्मानित कवियों की कविताएँ भी हैं। कुमार अंबुज की एक कम है कविता उनकी एक को लेकर गहरी चिंता की अन्यतम अभिव्यक्ति है और वे यह बखूबी बता जाते हैं कि एक के कम होने का हमारे लिए क्या मायने हैं। गौर करें-
एक के कम होने से कई चीजों पर फ़र्क पड़ता है एक साथ
उसके होने से हो सकनेवाली हजार बातें
यकायक हो जाती हैं कम
और जो चीजें पहले से ही कम हों
हादसा है उनमें से एक का भी कम हो जान

मैं इस एक के लिए
मैं इस एक के विश्वास से
लड़ता हूँ
हजारों स
खुश रह सकता हूं कठिन दुःखों के बीच भी
मैं इस एक की परवाह करता हूँ।
और अंत में पाकिस्तानी शायरा ज़हरा निगाह और बंगला कवि शबरी घोष की मार्मिक कविता पढ़िए।
बनवा
सीता को देखसारा गाँव
आग पे कैसे धरेगपाँव
बच जाए तदेवी माँ है
जल जापापन
जिसका रूप जगत को ठंडक
अग्नि उसका दर्पण ?
सब जो चाहें सोचें समझें
लेकिन वो भगवान
वो तो खोट-कपट के बैरी
वो तो नहीनादान !
अग्नि पार उतर के सीता
जीत गई विश्वास
देखा दोनों हाथ बढाएँ
राम खड़े थे पास
उस दिन से संगत में आया
सचमुच का बनवा

शबरी घोष की एक बंगला कविता
अनुवाद : समीर रायचौधुरी

जो स्वप्न पूरे नहीं हुए
मैं तुम्हें तीर्थ घुमाने ले जाऊँगी माँ
गोमुख की पवित्र धारा में छोड आऊँगी तुम्हारी अस्थियाँ
तुम्हारे विश्वास और तुम्हारा अन्तिम सपना

अगर पुनर्जन्म है माँ
तब फिर लौटना मेरी गोद में बेटी बनकर
तुम्हारी नादान उँगलियों को पकड़
तुम्हें सिखाऊँगी चलन
पहचान कराऊँगी नदआकामनुष्उनके संबंधों से -
पहचान लोगी उस आग कजो चूल्हे की आँच से अधिक महान है -
जानोगी चारदीवारी के बाहर
तुम्हारी प्रतीक्षा में है विश्व - भुवन
मेरे जो सपने पूरे नहीं हुए
उन्हें किसी तीर्थ के पानी में प्रवाहित नहीं कर दूँगी
अपने सपनों को प्रज्ज्वलित कर दूँगी तुम्हारी आँखों में
जो भोर के आकाश जैसी हैं
तो यह ब्लॉग हमें कविता परिदृश्य से एक आत्मीय परिचय कराता है। इस ब्लॉग पर आना और कविताओं को पढ़ना कविता को बचाने की एक कोशिश जैसा ही है। हमें उन बातों-प्रचार पर शक करना चाहिए कि कविता अब कोई नहीं पढ़ता, कि कविता मर चुकी है। हम शायद इस तरह भी बचा लेंगे कविता की जान।
इस ब्लॉग का पता ये रहा-
http://anahadnaad.wordpress.com

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi