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आकाशवाणी ने परोसी यादगार सामग्री

अमीन सयानी ने 'जयमाला' के जरिये जीता दिल

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सीमान्त सुवीर

'विविध भारती' ने 3 अक्टूबर 2007 को अपनी यात्रा के 50 बरस पूरे किए। पिछले 50 बरस से 'नाच रहा मयूरा' अपनी स्वर्ण जयंती वर्पर हर महीने की 3 तारीख को जो विशेष सामग्री परोस रहा है, वह श्रोताओं को गुजरे जमाने की याद में खो जाने को मजबूर कर देता है। यकीनन विविध भारती ने अपने खजाने से जो अनमोल टेप्स निकाले, वह हर सुनने वाले के जेहन में रच-बस गए।

आदत के मुताबिक 3 नवम्बर की दोपहर में रेडियो का कान मरोड़ते ही 'विविध भारती' ट्‍यून किया, क्योंकि मेरा मानना है कि एफएम स्टेशनों की दौड़ में आकाशवाणी की आज भी खास जगह है। आकाशवाणी हमारे लिए वाल्मीक‍ि रामायण के वेद व्यास जैसी ही है, जो संस्कार देती है, मनोरंजन करती है और जिसके पास ज्ञान का असीम भंडार है। यह हमारी सांस्कृतिक धरोहर है।

आज की युवा पीढ़ी भले ही आकाशवाणी से थोड़ा परहेज करे, लेकिन उसे यह नहीं भूलना चाहिए कि इतिहास हमारे पुरखों की तरह होता है, जिसे नमन करने के लिए शीश अपने आप झुक जाता है। तो बात हो रही थी विविध भारती के स्वर्ण जयंती वर्ष की। एंकरिंग के सम्राट अमीन सयानी ने 'गोल्डन जुबली जयमाला' की जो प्रस्तुति दी, वह रोम-रोम को पुलकित कर गई। एक घंटे के इस कार्यक्रम में उन्होंने उन भेंटवार्ताओं के टेप्स सुनाए, जिनमें से अधिकांश कलाकार इस दुनिया को छोड़ चुके हैं।

अमीन सयानी के मुताबिक विविध भारती के पहले प्रोड्‍यूसर और प्रोगामर पंडित नरेन्द्र शर्मा थे और उन्हें नामकरण करने में महारथ हासिल थी। आज जितने भी लोकप्रिय कार्यक्रम विविध भारती से करोड़ों श्रोताओं तक पहुँचते हैं, उनका नामकरण पंडितजी ने ही किया था। फौजी भाइयों के लिए 'जयमाला' का नामकरण भी उन्हीं की कलम से हुआ।

यहाँ तक कि दिलीप कुमार का नामकरण भी उनकी ही देन है। यूसुफ साहब जब फिल्मों में आए तो प‍ंडित नरेन्द्र शर्मा ने तीन नाम सुझाए। जहाँगीर, वासुदेव और दिलीप कुमार। अंतत: युसूफ का नया नाम दिलीप कुमार हो गया।

स्वर्गीय अमरीश पुरी ने जयमाला प्रस्तुत करते हुए बताया कि मेरी कद-काठी अच्छी थी और मेरी तमन्ना फौजी बनने की थी। मैट्रिकुलेशन करने बाद मैंने नेशनल डिफेंस एकेडमी में आवेदन भेजा लेकिन मुझे कॉल लेटर निर्धारित तिथि के तीन दिन बाद मिला। अगले साल मैं ओवरऐज हो गया। इसके बाद मैं लखनऊ में रेडियो स्टेशन से जुड़ा। वहाँ नाटकों में अभिनय करता था।

यदि फिल्मों में नहीं आता तो रेडियो के जरिये श्रोताओं तक पहुँचता। वैसे मेरे परिवार का संबंध फिल्मी दुनिया से रहा। महान गायक कुंदनलाल सहगल मेरी बुआ के लड़के थे। सबसे बड़े भाई चमनपुरी बँटवारे के पहले लाहौर में थिएटर से जुड़े थे। उनसे छोटे भाई मदनपुरी भी भारतीय सिनेमा में अपनी पहचान बना चुके थे। मेरी पहली फिल्म थी 'रेशमा और शेरा'। हमने राजस्थान में शूटिंग के दौरान काफी वक्त फौजियों के साथ गुजारा।

स्व. ख्वाजा अहमद अब्बास का 'जयमाला' प्रस्तुत किए जाने का टेप्स सुनकर पता चलता है कि शोहरत की इतनी ऊँचाई पर पहुँचने के बाद भी वे कितने विनम्र थे। बड़े लोगों का बड़प्पन यही है कि वे कभी खुद को बड़ा नहीं मानते।

ख्वाजा साहब ने रेडियो पर आते ही कहा 'फौजी भाइयों, मैं एक छोटा-सा आदमी हूँ, समझ लीजिए आवारा किस्म का। राज साहब ने मुझे मौका दिया और मैं थोड़ा-सा कुछ लिख पाया। मैंने फौजियों के साथ कश्मीर की सरहद पर कुछ दिन बिताए, उनके साथ खाना खाया और सच कहूँ तो थोड़ी-सी रम भी पी।' ख्वाजा अहमद अब्बास वह शख्सियत हैं, जिन्होंने फिल्म बॉबी, श्री 420, आवारा और मेरा नाम जोकर की पटकथा लिखी, लेकिन वे खुद को मामूली शायर मानते थे।

अब्बास साहब ने दो बूँद पानी, शहर और सपना (राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त), सात हिन्दुस्तानी (अमिताभ बच्चन की पहली फिल्म), बंबई रात की बाँहों में की पटकथा लिखने के साथ उन्हें निर्देशित भी किया। उनकी पहली फिल्म थी 'धरती के लाल' , जो 1946 में प्रदर्शित हुई।

अब्बास साहब पत्रकार भी रहे और वे एकमात्र अखबारनवीस थे, जिन्होंने भारत के पहले टेब्लाइड अखबार 'ब्ल‍िड्‍स' में बिलानागा 40 सालों तक लिखा। ब्ल‍िड्‍स के तीन संस्करण - हिन्दी में 'आखिरी पन्ना', अंग्रेजी में 'लास्ट पेज' और उर्दू में 'आखिरी सफा' नाम से वे अपना कॉलम लिखते थे।

बहुत कम लोग जानते हैं कि अब्बास साहब ने अपना पूरा जीवन मुंबई की मानसरोवर होटल के एक छोटे से कमरे में बिताया। उन्होंने न तो शादी की और न ही कोई बंगला बनाया। उन्होंने ' आई एम नॉट आयलैंड' (मैं द्वीप नहीं हूँ) आत्मकथा भी लिखी, जो अंग्रेजी और हिन्दी में प्रकाशित हुई।

ख्यात संगीतकार सी.रामचन्द्र फिल्मों में बतौर हीरो बनने आए थे। एक फिल्म कंपनी में नौकरी भी मिल गई, लेकिन कुछ समय बाद घाटा होने के कारण छँटनी शुरू हुई तो सबसे पहले सी. रामचन्द्र का ही नाम था। उन्होंने मालिक से कहा कि आप भले ही एक्टर की नौकरी से निकाल दें, लेकिन मैं थोड़ा-बहुत हारमोनियम भी बजाना जानता हूँ।

कंपनी को एक साजिन्दे की जरूरत थी, लिहाजा उन्हें नौकरी पर रख लिया और इस तरह सिनेमा जगत को सी. रामचन्द्र के रूप में महान संगीतकार मिला। उनकी सबसे चर्चित फिल्म 'अनारकली' रही। उन्होंने सबसे पहला संगीत डॉ. इकबाल के गीत ' सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्ताँ हमारा...' में दिया।

डॉ. राही मासूम रजा ने टीवी सीरियल 'महाभारत' के संवाद लिखकर घर-घर में अपनी जगह बना डाली। डॉ. राही ने भी 'जयमाला' में फौजी भाईयों के लिए कार्यक्रम पेश किया था, जिसका टेप बजाया गया। उन्होंने 'फिल्म संस्कृति' नामक ‍पत्रिका का सफलतम प्रकाशन किया। इसके अलावा उनका टीवी सीरियल 'नीम का पेड़' भी काफी लोकप्रिय हुआ।

सोहरामोदी : मेरप्यारफौजभाइयोंमैरेडियआनपहलसोरहि आपसक्यबातेकरूँगावीरोलिमेरदिमेहमेशबड़इज्जरहहैमैंनअपनदौमेऐसफिल्मोमेअदाकारी, जनतजगानकाकरतथीहैलमेमेरपहलफिल्थीमैहॉलीवुसेसिडेमिप्रभाविरहामेरआदर्थे

1981 में 15 अगस्त के दिन 'जयमाला' के जरिये ऋषिकेश मुखर्जी मुखातिब हुए। उन्होंने जो प्रोग्राम पेश किया वह इस तरह रहा। मेरा सौभाग्य है कि जिनके हाथों में हमारी आजादी सुरक्षित है, मैं उनसे बात कर रहा हूँ। मेरे विचार से हमारी असली लड़ाई अपने आपसे होती है। यही कारण है‍ कि 'गुड्‍डी' में मैंने वसंत देसाई के खूबसूरत गीत 'हमको मन की शक्ति देना...' को वाणी जयराम से गवाया। भारतीय संस्कृति का यह गुरुमंत्र है कि हमें खुद को मजबूत करना होगा, तभी हम दूसरों पर विजय प्राप्त कर सकेंगे।

मदन मोहन : मेरे विचार से भारत का शास्त्रीय संगीत हमेशा अमर रहेगा। कुछ लोग पश्चिम की नकल कर रहे हैं, लेकिन ऐसे गीतों की उम्र अधिक नहीं होती। शास्त्रीय संगीत पर आधारित गीत हमेशा सुने और पसंद किए जाएँगे। 'बैजू बावरा' ऐसी पहली फिल्म रही, जिसने फि‍ल्मी दुनिया को शास्त्रीय संगीत की तरफ मोड़ा। राग मालकोंस में रफीजी का गीत 'मधुबन में राधिका नाचे...' बेहद कर्णप्रिय है।

1962 में चीन के साथ युद्ध करने के बाद फिल्मी सितारे भारतीय फौजियों का मनोरंजन करने के लिए सरहदों पर पहुँचने लगे थे। सुनील दत्त भी इस भूमिका में बढ़चढ़कर हिस्सा लेते रहे। उन्होंने 'जयमाला' पेश करते हुए कहा- फौजी भाइयों मैं सरहद पर आपसे कई बार मिला हूँ। एक मजेदार वाकया याद आ रहा है। किशोर कुमार कभी भी स्टेज पर गीत नहीं गाते थे, लेकिन मैंने उनसे यह काम भी करवा लिया।

हमें नथुला-गंगटोक में फौजी भाइयों का मनोरंजन करना था। वहाँ काफी बर्फ थी और जवानों ने लकड़ी का स्टेज बनाया था। किशोर से मैंने कहा गीत गाइए। वे मना कर गए। तय हुआ कि मैं होंठ हिलाऊँगा और पीछे से वे गीत गाएँगे। वह गीत था 'पड़ोसन' का 'एक चतुर नार करके सिंगार...' कुछ समय तक तो मैं होंठ हिलाता रहा और फिर चुपके से हट गया। और इस तरह किशोर की शर्म का घूँघट हट गया।

नादिरा : मैं यहूदी परिवार से रही हूँ और भारतीय सिनेमा जगत में मुझे काफी शोहरत हासिल हुई। मेरा फिल्मी सफर मेहबूब साहब की फिल्म 'आन' से शुरू हुआ। यह देश की पहली टेक्निकल फिल्म थी और इसी फिल्म से दिलीप कुमार ने भी आगाज किया था। मैं भाग्यशाली हूँ कि मुझे पहली ही फिल्म में बतौर नायिका इतनी जबरदस्त सफलता मिली। ऐसी शुरुआत शायद ही किसी और को मिली होगी।

अमीन सयानी ने‍‍ विविध भारती पर 'जयमाला' के जो अमर टेप्स के अंश पेश किए, उन्हें पेश करने वाली हस्तियाँ थीं गीता दत्त, मीना कुमारी, जीवन, प्रेमनाथ और पंडित नरेन्द्र शर्मा। आप खुद सोचें कि इन महारथियों ने जो प्रोगाम पेश किए थे, वे कितने दिलकश और रोमांचित कर देने वाले रहे होंगे।

और अब अंत में यह बताना जरूरी है कि विविध भारती अपनी स्वर्ण जयंती पूरे साल मनाएगा। हर तीन तारीख को विशेष प्रस्तुत‍ि पेश की जाएगी। यदि आप 3 नवम्बर की तारीख चूक गए हों तो मलाल मत कीजिए, क्योंकि 3 दिसम्बर की तारीख आने में वक्त बाकी है।

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