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इस बदलाव से क्या हासिल?

मुद्दा 10वीं बोर्ड वैकल्पिक होने का

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-संजय द्विवेदी
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केंद्रीय मानव संसाधन मंत्री कपिल सिब्बल केंद्र के उन भाग्यशाली मंत्रियों में हैं जिनके पास कहने के लिए कुछ है। वे शिक्षा को मौलिक अधिकार बनाने का बिल पास करवाकर 100 दिन के सरकार के एजेंडें में एक बड़ी जगह तो ले ही चुके हैं और अब दसवीं बोर्ड को वैकल्पिक बनवाकर वे एक और कदम आगे बढ़े हैं।

शिक्षा के क्षेत्र में इसे एक बड़ा सुधार माना जा रहा है और छात्रों पर एक और बोर्ड का दबाव कम होने की संभावना भी इस फैसले से नजर आ रही है। सीबीएसई में जहाँ इस साल से ही ग्रेडिंग प्रणाली लागू हो जाएगी वहीं अगले साल दसवीं बोर्ड का वैकल्पिक हो जाना नई राहें खोलेगा।

हालाँकि इन फैसलों से शिक्षा के क्षेत्र में कोई बहुत क्रांतिकारी परिवर्तन आ जाएँगें ऐसा मानना तो जल्दबाजी होगी किंतु इससे सोच और बदलाव के नए संकेत तो नजर आ ही रहे हैं। सिब्बल अंततः तो यह मान गए हैं कि उनका इरादा अभी देश के लिए एक बोर्ड बनाने का नहीं है। शायद यही एक बात थी जिसपर प्रायः कई राज्यों ने अपनी तीखी प्रतिक्रिया जताई थी।

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बावजूद इसके मानव संसाधन मंत्री यह मानते हैं कि छात्रों में प्रतिस्पर्धा की भावना को विकसित किया जाना जरूरी है। जाहिर तौर शिक्षा और प्राथमिक शिक्षा का क्षेत्र हमारे देश में एक ऐसी प्रयोगशाला बनकर रह गया है जिसपर लगातार प्रयोग होते रहे हैं। इन प्रयोगों ने शिक्षा के क्षेत्र को एक ऐसे अराजक कुरूक्षेत्र में बदल दिया है जहाँ सिर्फ प्रयोग हो रहे हैं और नयी पीढ़ी उसका खामियाजा भुगत रही है।

प्राथमिक शिक्षा में अलग-अलग बोर्ड और पाठ्यक्रमों का संकट अलग है। इनमें एकरूपता लाने के प्रयासों में राज्यों और केंद्र के अपने तर्क हैं। किंतु 10वीं बोर्ड को वैकल्पिक बनाने से एक सुधारवादी रास्ता तो खुला ही है जिसके चलते छात्र नाहक तनाव से बच सकेंगें और परीक्षा के तनाव, उसमें मिली विफलता के चलते होने वाली दुर्घटनाओं को भी रोका जा सकेगा।

शायद परीक्षा के परिणामों के बाद जैसी बुरी खबरें मिलती थीं जिसमें आत्महत्या के तमाम किस्से होते थे उनमें कमी आएगी। बोर्ड परीक्षा के नाम होने वाले तनाव से मुक्ति भी इसका एक सुखद पक्ष है। देखना है कि इस फैसले को शिक्षा क्षेत्र में किस तरह से लिया जाता है।

यह भी देखना रोचक होगा कि ग्रेडिंग सिस्टम और वैकल्पिक बोर्ड की व्यवस्थाओं को राज्य के शिक्षा मंत्रालय किस नजर से देखते हैं। इस व्यवस्था के तहत अब जिन स्कूलों में बारहवीं तक की पढ़ाई होती है वहाँ 10वीं बोर्ड खत्म हो जाएगा। सरकार मानती है जब सारे स्कूल बारहवीं तक हो जाएँगें तो दसवीं बोर्ड की व्यवस्था अपने आप खत्म हो जाएगी।

माना जा रहा है धीरे-धीरे राज्य भी इस व्यवस्था को स्वीकार कर लेंगें और छात्रों पर सिर्फ बारहवीं बोर्ड का दबाव बचेगा। सरकार इस दिशा में अधिकतम सहमति बनाने के प्रयासों में लगी है। इस बारे में श्री सिब्बल कहना है कि हमारे विभिन्न राज्यों में 41 शिक्षा बोर्ड हैं। अभी हम सीबीएसई के स्कूलों के लिए यह विचार-विमर्श कर रहे हैं। अगले चरण में हम राज्यों के बोर्ड को भी विश्वास में लेने का प्रयास करेंगे। उधर सीबीएसई के सचिव विनीत जोशी ने कहा कि जिन स्कूलों में केवल दसवीं तक पढ़ाई होती है, वहाँ दसवीं का बोर्ड तो रहेगा, पर जिन स्कूलों में 12वीं तक पढ़ाई होती है, वहाँ दसवीं के बोर्ड को खत्म करने का प्रस्ताव है।

शिक्षा में सुधार के लिए कोशिशें तो अपनी जगह ठीक हैं पर हमें यह मान लेना पड़ेगा कि हमने इन सालों में अपने सरकारी स्कूलों का लगभग सर्वनाश ही किया है। पूरी व्यवस्था निजी स्कूलों को प्रोत्साहित करने वाली है जिसमें आम आदमी भी आज अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में भेजने के लिए तैयार नहीं है।

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यह एक ऐसी चुनौती है जिसका सामना हमें आज नहीं तो कल बड़े सवाल के रूप में करना होगा। यह समस्या कल एक बड़े सामाजिक संघर्ष का कारण बन सकती है। दिल्ली और राज्यों की राजधानियों में बैठकर नीतियाँ बनाने वाले भी इस बात से अनजान नहीं है पर क्या कारण है कि सरकार खुद अपने स्कूलों को ध्वस्त करने में लगी है।

यह सवाल गहरा है पर इसके उत्तर नदारद हैं। सरकारें कुछ भी दावा करें, भले नित नए प्रयोग करें पर इतना तय है कि प्राथमिक शिक्षा के ढाँचे को हम इतना खोखला बना चुके हैं कि अब उम्मीद की किरणें भी नहीं दिखतीं। ऐसे में ये प्रयोग क्या आशा जगा पाएँगें कहा नहीं जा सकता। बदलती दुनिया के मद्देनजर हमें जिस तरह के मानव संसाधन और नए विचारों की जरूरत है उसमें हमारी शिक्षा कितनी उपयोगी है इस पर भी सोचना होगा।

एक लोककल्याणकारी राज्य भी यदि शिक्षा को बाजार की चीज बनने दे रहा है तो उससे बहुत उम्मीदें लगाना एक धोखे के सिवा क्या हो सकता है। सच तो यह है कि समान शिक्षा प्रणाली के बिना इस देश के सवाल हल नहीं किए जा सकते और गैरबराबरी बढ़ती चली जाएगी। हमने इस मुद्दे पर सोचना शुरू न किया तो कल बहुत देर हो जाएगी।

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