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ऊर्जा की राह पर बढ़ते कदम

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- निशीथ शुक्ला

क्या भारत भी मध्य एशिया के राष्ट्रों की तरह निकट भविष्य में ऊर्जा के क्षेत्र में आत्मनिर्भर हो पाएगा? कुछ साल पहले यह प्रश्न, प्रश्नकर्ता को हास्य और तिरस्कार का पात्र बना सकता था, लेकिन जब रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड के प्रबंध निदेशक मुकेश अंबानी ने कुछ दिनों पहले यह घोषणा की कि आंध्रप्रदेश के कृष्णा-गोदावरी बेसिन के डी-6 ब्लॉक में अगले साल की प्रथम तिमाही तक 5,50,000 बैरल तेल का उत्पादन शुरू हो जाएगा, तो अब ऐसा लगने लगा है कि भारत भी घरेलू ऊर्जा उत्पादन के क्षेत्र में एक अग्रणी राष्ट्र बनकर शीघ्र ही उभर सकता है।

क्या यह हो सकता है कि अब कतर और ऑस्ट्रेलिया के सामने भारत को आसमान छूती
  जहाँ भारत आज विश्व का छठा सबसे बड़ा तेल आयातक और पाँचवाँ सबसे बड़ा गैस आयातक है,वहीं घरेलू ऊर्जा उत्पादन में वह विश्व में किसी विशेष स्थान पर नहीं है। देश में करीब 33 मिलियन टन प्रतिवर्ष का घरेलू उत्पादन यानी 660000 बैरल तेल का प्रतिदिन उत्पादन होता है      
एलएनजी (लिक्वीफाइड नेचुरल गैस) की कीमतों के लिए सिर न झुकाना पड़े? क्या यह भी संभव है कि आईपीआई (ईरान-पाकिस्तान-इंडिया) गैस पाइप लाइन से नाता तोड़ने की अमेरिकी चेतावनियों से भी छुटकारा मिल जाए? क्या तुर्की और इसराइल से होते हुए करोड़ों की गैस पाइप लाइन निर्माण और तुर्की, अफगानिस्तान, पाकिस्तान के दुर्गम रास्तों से होते हुए असंभव-सी पाइप लाइन की परिकल्पना भी न करना पड़े?

रिलायंस की डी-6 गैस खोज ने कई संभावनाएँ प्रस्तुत की हैं। इनका विश्लेषण कर हम पाते हैं कि इस गैस से न सिर्फ हमारे बंद पड़े गैस-चालित ताप विद्युत केंद्र पूरी क्षमता से कार्य करना शुरू कर देंगे, बल्कि हमारे मृतप्रायः उर्वरक निकाय भी दोबारा जी उठेंगे। साथ ही अन्य कितने ही छोटे-बड़े उद्योगों को लाभ पहुँचेगा। पेट्रोल और उर्वरक आयात करने तथा दोनों पर सबसिडी भुगतान देने पर भी राष्ट्र को हजारों करोड़ रुपए की बचत होगी।

जहाँ भारत आज विश्व का छठा सबसे बड़ा तेल आयातक और पाँचवाँ सबसे बड़ा गैस आयातक है, वहीं घरेलू ऊर्जा उत्पादन में वह विश्व में किसी विशेष स्थान पर नहीं है। देश में करीब 33 मिलियन टन प्रतिवर्ष का घरेलू उत्पादन यानी 6,60 000 बैरल तेल का प्रतिदिन उत्पादन होता है।

आज हम अपनी कुल आवश्यकता, 124 मिलियन टन प्रति वर्ष, यानी करीब 24,80,000 लाख बैरल प्रतिदिन का 78 प्रतिशत आयात करते हैं और जिस तरह से देश में आर्थिक विकास की दर पिछले कुछ वर्षों में बढ़ी है। वो दिन दूर नहीं, जब हम 90 प्रतिशत आवश्यकता तक का आयात कर रहे होंगे। देश में पेट्रोल उत्पादन की माँग 3 प्रतिशत प्रति वर्ष बढ़ने की संभावना है। देश के विदेशी मुद्रा भंडार को जहाँ यह 2008-09 में 2,40,000 करोड़ रुपए से रिक्त करेगा, वहीं पेट्रोल, डीजल, एलपीजी और कैरोसिन के आयात एवं उत्पाद मूल्य से कम में विक्रय करने से सरकार को 90,000 करोड़ ヒपए का सबसिडी भुगतान करने पर विवश करेगा।

यह सबसिडी भुगतान 2007-08 के 35,700 करोड़ रुपए और 2006-07 के 24, 121 करोड़ रुपए से क्रमशः 152 प्रतिशत और 273 प्रतिशत अधिक है। क्या तेल और गैस के आयात पर खर्च होने वाली विदेशी मुद्रा और सबसिडी भुगतान में लगने वाले करोड़ों रुपयों को यह रिलायंस डी-6 खोज कम कर पाएगी?

एक अनुमान के अनुसार डी-6 गैस देश के उपभोक्ताओं को 85,000 करोड़ रुपए की बचत
  एक बार डी-6 से उत्पादन शुरू हुआ तो ये प्लांट 100 प्रतिशत तक कार्य क्षमता दिखा सकेंगे। देश का सबसे बड़ा गैस चालित केन्द्र डाभोल पावर भी गैस की कमी और ऊँची कीमतों की मार झेल रहा है, जो डी-6 की गैस आपूर्ति के बाद नहीं रहेगी      
करवा सकती है, लेकिन किस तरह? अगर देश को 8 प्रतिशत की विकास दर बनाए रखना है तो औद्योगिकरण की दर को बनाए रखना होगा, जिसके लिए ऊर्जा की अभूतपूर्व आपूर्ति की आवश्यकता होगी। कुल मिलाकर तेल भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए एक ऐसा भँवर है, जिससे अब निकालना संभव नहीं है। अगर कोई रास्ता है तो वह है घरेलू उत्पादन में वृद्धि करना और डी-6 की खोज इस दिशा में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है।

यहाँ अगर हम इन आँकड़ों का विश्लेषण करे तो पाएँगे की इस गैस खोज से भारत घरेलू ऊर्जा क्षेत्र में आमूल-चूल परिवर्तन लाने की क्षमता रखता है। आज देश में कुल गैस की उपलब्धता 93 एमएमएससीएमडी है, जिसमें आयातित एलपीजी भी है। डी-6 गैस का उत्पादन शुरू होने के बाद माँग और आपूर्ति के बीच की दूरी भी कम होगी। अगर हम सबसे पहले ऊर्जा क्षेत्र पर ध्यान दें तो पाते हैं कि आज एनटीपीसी के करीब 5000 मेगावॉट के गैस चालित ताप विद्युत केन्द्र और देश के कम से कम कुल 10000 मेगावॉट के अन्य गैस चालित विद्युत केन्द्र गैस की आपूर्ति की कमी के कारण अपने कुल उत्पादन क्षमता से 50 प्रतिशत से भी नीचे काम करने पर विवश हैं।

एक बार डी-6 से उत्पादन शुरू हुआ तो ये प्लांट 100 प्रतिशत तक कार्य क्षमता दिखा सकेंगे। देश का सबसे बड़ा गैस चालित केन्द्र डाभोल पावर भी गैस की कमी और ऊँची कीमतों की मार झेल रहा है, जो डी-6 की गैस आपूर्ति के बाद नहीं रहेगी। यहाँ ध्यान देने वाली बात यह है कि आरआईएल गैस न ही केवल देश में उपलब्ध अन्य गैस स्रोतों से कम मूल्य पर उपलब्ध होगी, बल्कि अन्य वैकल्पिक तेल उत्पादन से भी कम मूल्य पर मिलेगी।

अब अगर देश की कृषि व्यवस्था से जुड़े उर्वरक उद्योग पर ध्यान दें तो कम कीमतों का सीधा असर सबसे पहले तो हमारे देश के उर्वरक उद्योग पर देखने को मिलेगा, जहाँ 2008-09 में सरकार को 40,000 करोड़ रुपए का सबसिडी भुगतान करना है। यहाँ गैस के प्रयोग से यह भुगतान आधा भी हो सकता है। 17,000 करोड़ रुपए के पैट्रोकेमिकल उत्पाद का निर्यात कर अब पैट्र्‌केमिकल भारत का सबसे बड़ा निर्यात बन गया है।

डी-6 की गैस इस महत्वपूर्ण विदेशी मुद्रा अर्जित करने वाले क्षेत्र के लिए भी वरदान बनकर आई है। डी-6 गैस ऊर्जा, उर्वरक, सिटी गैस, पैट्राकेमिकल उत्पादों से लेकर एलपीजी उत्पादन तक में इतनी संभावनाएँ लेकर आई है कि राष्ट्र की कई समस्याओं का निदान हो सकता है। डी-6 का यह कोष भविष्य में बहुमूल्य विदेशी मुद्रा भंडार के नियोजन और पैट्रोल एवं उर्वरक सबसिडी भुगतान में कमी लाकर राष्ट्र को ऊर्जा क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने में मील का पत्थर साबित होगा।
(लेखक ऊर्जा क्षेत्र के जानकार हैं)

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