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खुलासों के इस 'हमाम' में सब नंगे हैं...

प्रस्तुति - संदीप सिसोदिया

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, शुक्रवार, 26 अक्टूबर 2012 (13:39 IST)
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भारत में सनसनीखेज खबरों का आलम अपने शबाब पर है। भ्रष्टाचार और घोटालों की ब्रेकिंग न्यूज से टीवी चैनलों के स्लॉट भरे पड़े हैं। तहलका से सुर्ख़ियों में आए स्टिंग ऑपरेशन का दौर अब अपने चरम पर है। रोज़ाना हो रहे नए ुलासों और मीडिया में उस पर होने वाली अंतहीन बहस जारी है।

पेड न्यूज की आंच अभी कम भी नहीं हुई थी कि कॉर्पोरेट जगत की नामी जिंदल स्टील ने एक पुराने और 'प्रतिष्टित' समाचार टीवी चैनल जी न्यूज के दो संपादकों पर ब्लैकमेलिंग और वसूली के गंभीर आरोप लगाए।

लोकतंत्र के चारों स्तंभो में से कोई भी शुद्ध ख़रा नहीं। न्यायपालिका, विधायिका, कार्यपालिका सहित मीडिया भी अक्सर कटघरे में खड़ी दिखाई देती रही है।
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जिंदल के इस खुलासे या आरोप पर लंबी बहस चलना तय है, लेकिन यह द्योतक है इस बात का कि अब लोकतंत्र के चौथे स्तंभ पर भी सवाल उठेंगे। सूचनातंत्र के सभी हथियार हमेशा दोधारी होते हैं। कब पलटवार में खुद की गर्दन नप जाए कहा नहीं जा सकता। सनसनीखेज, मसालेदार खबरों के लोभियों को अब बचाव की तरकीबें भी सोचनी होंगी।

समाचार चैनल के लिए कॉर्पोरेट जगत हमेशा से ही आमदनी का एक बड़ा जरिया रहा है। विज्ञापन, पेड रिव्यू और खबरें प्रसारित करने या न करने के लिए पैकेज डील की बातें अक्सर सामने आती रही हैं, लेकिन किसी कॉर्पोरेट कंपनी द्वारा समाचार चैनल पर इस प्रकार के आरोप लगाना दर्शाता है कि बात कहीं ज्यादा गंभीर है।

हालांकि कॉर्पोरेट खुद भी आम आदमी का खून चूसने के लिए बदनाम रहा है, लेकिन मैंगो मैन की 'मदद' को कटिबद्ध खबरिया चैनल भी कम खुदा नहीं निकले।

भ्रष्टाचार के इस 'हमाम में सब नंगे है।' दुख की बात है कि आम आदमी के मन में धारणा बन रही है कि लोकतंत्र के चारों स्तंभो में से कोई भी शुद्ध ख़रा नहीं। न्यायपालिका, विधायिका, कार्यपालिका सहित मीडिया भी अक्सर कटघरे में खड़ी दिखाई देती रही ै।

राजनेताओं, नौकरशाहों के दामन तो पहले से ही भ्रष्टाचार के कीचड़ से दागदार हो चुके हैं लेकिन अब तो कोई पाक-साफ़ नहीं दिखता। मौजूदा परिस्थितियों में दुष्यंत की यह पंक्तियां सटीक बैठती है कि सब शरीके ज़ुर्म है, इस छोर से उस छोर तक; आदमी या तो ज़मानत पर रिहा है या फ़रार... (साभार - भुवन गुप्ता)

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