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दिल्ल‍ी गैंग रेप पर अरुंधति की समस्या क्या है?

हमें फॉलो करें दिल्ल‍ी गैंग रेप पर अरुंधति की समस्या क्या है?

स्मृति आदित्य

ऐसा पहली बार ही हुआ है कि देश में महिला के विरूद्ध अनाचार हुआ और इतने बड़े पैमाने पर आवाज उठी हो। ना सिर्फ आवाज उठी बल्कि संवेदना के स्तर पर एक धरातल तैयार हुआ है। एक ऐसा धरातल, जहां खड़े होकर नारी ने आत्मविश्वास से सांस लेने का मतलब जाना है।

अब जबकि आम महिलाएं पूरी ताकत के साथ उठ खड़ी हो रही है ऐसे में जरूरी है कि उनका संबल बना जाए ना कि उन्हें पल-प्रति-पल निराश किया जाए। देश की प्रबुद्ध महिलाओं विशेषकर लेखिकाओं और नारी विमर्श पर निरंतर लिखने वाले लेखकों से उम्मीद की जाती है कि अपने लेखकीय दायित्व से विमुख ना हो और जो माहौल बना है उसे बनाए रखने में अपनी ऊर्जा लगाए।

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लेकिन अरुंधति राय से हम यह उम्मीद नहीं लगा सकते क्योंकि वे लेखिका से पहले 'विवादिका' हैं। यही वजह है कि वे पुराने रेप केस का हवाला देते हुए फेसबुक पर चर्चा में है कि इस केस पर इतना हल्ला क्यों? पहले हुए रेप के लिए इतना हल्ला क्यों नहीं मचा? क्या दिल्ली में होने से इस रेप पर इतनी चर्चा है और गांवों में होने वाले रेप पर कोई आवाज नहीं उठती?

इस समय अहम यह है कि आवाज तो उठी चाहे दामिनी के लिए उठी हो असल में जाग्रत तो संपूर्ण नारी जाति हुई है। आज जबकि सबसे ज्यादा सही आवाज को बुलंद करने की जरूरत है अरुंधति अपना राग अलग अलाप रही है। आखिर अरुंधति ऐसी क्यों है? ना उन्हें राष्ट्र हित का ख्याल रहता है जब वे काश्मीर की बात कहती है और ना उन्हें नारी जाति का दर्द सालता है जब वे महिलाओं को वर्गीकृत करती है।

उनकी सोच अवाम से अलग क्यों चलती है यह तो वे ही जानें। वे यह दर्शाना चाहतीं है कि नारी हितों पर सोचने और बोलने का हक सिर्फ उन्हें हासिल है तो यहां इस आंदोलन से उन्हें संतोष मिलना चाहिए पर नहीं। वे आदतन वही कह रही है जिनकी उन्हें जानने वाले उनसे उम्मीद कर रहे थे। आप पढ़ें उनका लेख :

क्या है फेसबुक पर अरुंधति का आलेख पढ़ेअगलपे

चर्चित लेखिका और सामाजिक कार्यकर्ता अरुंधति राय ने दिल्ली रेप कांड को लेकर मचे बवाल पर सवाल उठाया है-

'' ये रेप तो वर्षों से चला आ रहा है। ये मानसिकता में समाया हुआ है। गुजरात में मुसलमानों के साथ हुआ, कश्मीर में सुरक्षा बल करते हैं बलात्कार, मणिपुर में भी ऐसा होता है लेकिन तब तो कोई आवाज़ नहीं उठाता है। खैरलांजी में दलित महिला और उसकी बेटी का रेप कर के उन्हें जला दिया गया था। तब तो ऐसी आवाज़ नहीं उठी थी।

एक सामंती मानसिकता है लोगों की जो तभी आवाज़ उठाती है जब बड़ी जाति के, प्रभुत्व वाले लोगों के साथ दिल्ली में कुछ होता है। आवाज़ उठनी चाहिए। जो हुआ है दिल्ली में उसके लिए हल्ला तो मचना चाहिए लेकिन ये हल्ला सिर्फ मिडिल क्लास लोगों को बचाने के लिए नहीं होना चाहिए।

छत्तीसगढ़ में आदिवासी महिला सोनी सोरी के साथ भी कुछ हुआ था आपको याद होगा तो. उनके जननांगो में पत्थर डाले गए थे। पुलिस ने ऐसा किया लेकिन तब तो किसी ने आवाज़ नहीं उठाई थी। कश्मीर में जब सुरक्षा बल गरीब कश्मीरियों का रेप करते हैं तब सुरक्षा बलों के खिलाफ़ कोई फांसी की मांग नहीं करता। जब कोई ऊंची जाति का आदमी दलित का रेप करता है तब तो कोई ऐसी मांग नहीं करता।

एक सामंती मानसिकता है हम लोगों के अंदर। बलात्कार एक भयंकर अपराध है लेकिन लोग क्या करते हैं। जिस लड़की का रेप होता है उसे कोई स्वीकार क्यों नहीं करता। कैसे समाज में रहते हैं हम। कई मामलों में जिसका बलात्कार होता है उसी को परिवार के लोग घर से निकाल देते हैं।

विरोध होना चाहिए लेकिन चुन-चुन के विरोध नहीं होना चाहिए। हर औरत के रेप का विरोध होना चाहिए। ये दोहरी मानसिकता है कि आप दिल्ली के रेप के लिए आवाज़ उठाएंगे लेकिन मणिपुर की औरतों के लिए, कश्मीर की औरतों के लिए और खैरलांजी की दलितों के लिए आप आवाज़ क्यों नहीं उठाते हैं।

रेप का विरोध कीजिए इस आधार पर नहीं कि वो दिल्ली में हुआ है या मणिपुर में या किसी और जगह मैं बस यही कह सकती हूं...।

पढ़ें अगले पेज पर, अरुंधति गलत नहीं है लेकिन.....

अरुंधति ने गलत कुछ नहीं कहा है लेकिन...

अरुंधति ने गलत कुछ नहीं कहा है बस गलत वक्त पर गलत अंदाज में बात कही है। अरुंधति जैसी प्रबुद्ध महिला इतनी संकीर्ण सोच की कैसे हो सकती है? बार-बार यह कहने से कि हर बलात्कार का विरोध होना चाहिए, उनकी बात के मायने नहीं बदल जाते हैं।

खैरलांजी का केस भी दिल दलहाने वाला है लेकिन उसका हवाला देकर वे इस केस को कमजोर क्यों करना चाहती है? अरुंधति को बताया जाए कि दामिनी किसी बड़े वर्ग से ताल्लुक नहीं रखती और उसके साथ हुई विभत्सता की तुलना किसी दूसरे बलात्कार से कर वे समूची नारी जाति को अपमानित कर रही है।

अरुंधति कभी अन्ना आंदोलन के खिलाफ हो जाती है तो कभी उन्हें तिरंगा ही सांप्रदायिक लगने लगता है। कभी काश्मीर तो कभी .... यह सूची अंतहीन है। अरुंधति ऐसा कब तक चलेगा... (समाप्त)

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