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निवेश कुंभ : साकार या निराकार

हमें फॉलो करें निवेश कुंभ : साकार या निराकार

विष्णुदत्त नागर

घरेलू और विदेशी निवेश की यह प्रवृत्ति रही है कि जितनी धनराशि के निराकार प्रस्ताव स्वीकृत किए जाते हैं, उसके मुकाबले एक-चौथाई धनराशि ही साकार रूप ले पाती है। प्रदेश में 1 लाख करोड़ से अधिक के निवेश प्रस्तावों को सैद्धांतिक स्वीकृति मिल चुकी थी, लेकिन धरातल पर निवेश हुआ केवल 30 हजार करोड़ का।

इंदौर में 26-27 अक्टूबर को विश्व निवेशक कुंभ (ग्लोबल इन्वेस्टर मीट) का आयोजन हो रहा है, जिसमें घरेलू और विदेशी निवेशक प्रदेश की औद्योगिक राजधानी में नए निवेश की संभावनाएँ तलाशेंगे।

प्रदेश में विशेष आर्थिक क्षेत्र के तहत क्रिस्टल आईटी पार्क, रेडीमेड गारमेंट कॉम्प्लेक्स, जेम्स एवं ज्वेलरी पार्क, सॉफ्टवेयर टेक्नोलॉजी पार्क तथा टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज समेत कुछ महत्वपूर्ण उद्योगों की परियोजनाओं को मूर्तरूप दिया जा रहा है
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यद्यपि पिछले सात वर्षों में राज्य के सकल घरेलू उत्पाद में औद्योगिक क्षेत्र का योगदान बढ़कर करीब सात प्रतिशत हो गया है, लेकिन वृहद एवं मध्यम उद्योगों के विनियोजन में कमी हुई है।

सन्‌ 2005-2006 में वृहद और मध्यम उद्योगों में करीब 483 करोड़ रुपए और 2006-2007 में दिसंबर तक 235 करोड़ रुपए। पिछले तीन वर्षों में 1600 करोड़ और लघु उद्योगों में 5813 लाख रुपए का पूँजी निवेश हुआ।

प्रदेश में विशेष आर्थिक क्षेत्र के तहत क्रिस्टल आईटी पार्क, रेडीमेड गारमेंट कॉम्प्लेक्स, जेम्स एवं ज्वेलरी पार्क, सॉफ्टवेयर टेक्नोलॉजी पार्क तथा टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज समेत कुछ महत्वपूर्ण उद्योगों की परियोजनाओं को मूर्तरूप दिया जा रहा है।

लेकिन प्रदेश के कच्चे माल खाद्य प्रसंस्करण, कोयला, बॉक्साइट, ताम्र अयस्क, लौह अयस्क, डोलोमाइट और हीरा समेत बीस प्रकार के मुख्य खनिजों की उपलब्धि के संदर्भ में प्रदेश में नए उद्योगों में निवेश और खनिजों के दोहन के अन्वेषण में आधुनिक तकनीकी के उपयोग की संभावनाएँ हैं।

हीरा उत्पादन का प्रदेश को राष्ट्र में एकाधिकार प्राप्त होने के साथ-साथ डायस्पोर, पाइरोफिलाइट, ताम्र अयस्क तथा स्लेट के उत्पादन में राष्ट्र में प्रथम स्थान प्राप्त है। आवश्यकता इस बात की है कि नई औद्योगिक इकाइयाँ स्थापित हों, प्रदेश में वन औषधि और अन्य लघु वन उपजों के विकास से विभिन्न औषधि प्रजातियों जैसे- अश्वगंधा, घृतकुमारी, सफेद मूसली एवं गूग्गल आधारित औषधि उद्योगों की नई संभावनाएँ औद्योगिक क्षितिज पर उभर रही हैं।

आवश्यकता इस बात की भी है कि औद्योगिक क्षेत्र में निवेश से ऐसे प्रेरित प्रभाव उत्पन्ना हों, जो प्रदेश के औद्योगिक क्षेत्रों को ही नहीं, बल्कि कृषि और सेवा क्षेत्र को भी गति दे। देश का घरेलू निवेश प्रदेश की ओर मुड़ने की संभावनाएँ हैं। कोई भी निवेश राष्ट्र की बचत आधारित होता है।

वर्तमान में सकल घरेलू उत्पाद में राष्ट्रीय बचत करीब 33 प्रतिशत है और निवेश 36 प्रतिशत है। लेकिन 4:1 अनुपात के कारण देश की 10 प्रतिशत आर्थिक विकास दर कायम रखने के लिए सकल घरेलू उत्पाद का 40 प्रतिशत निवेश करना होगा
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वर्तमान में सकल घरेलू उत्पाद में राष्ट्रीय बचत करीब 33 प्रतिशत है और निवेश 36 प्रतिशत है। लेकिन 4:1 अनुपात के कारण देश की 10 प्रतिशत आर्थिक विकास दर कायम रखने के लिए सकल घरेलू उत्पाद का 40 प्रतिशत निवेश करना होगा, क्योंकि एक इकाई का उत्पादन करने के लिए वर्तमान में 14 रुपए लगते हैं अर्थात वर्तमान बचत और अपेक्षित निवेश में 7 प्रतिशत का अंतर है जिसे हम घरेलू बचत बढ़ाकर या अधिक विदेशी निवेश आकर्षित कर पूरा कर सकते हैं।

लेकिन प्रदेश की राजस्व व्यवस्था, सड़क, बिजली, पानी जैसे अधोसंरचना की आवश्यकता की पूर्ति के लिए यह उम्मीद नहीं की जा सकती कि बचत दर में मध्यप्रदेश का योगदान बढ़ेगा। प्रदेश की घरेलू बचत और निवेश दरों में अंतर को पाटने के लिए विदेशी निवेश भी आवश्यक होगा।

सन्‌ 2000 से 2007 के सात वर्षों में देश में 43.5 अरब डॉलर अर्थात 1 लाख 94 हजार 586 करोड़ रुपए का विदेशी निवेश हुआ। इसमें से रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के निम्न विवरण तालिका के अनुसार मध्यप्रदेश केवल 300 करोड़ रुपए ही आकर्षित कर सका।

घरेलू और विदेशी निवेश की यह प्रवृत्ति रही है कि जितनी धनराशि के निराकार प्रस्ताव स्वीकृत किए जाते हैं, उसके मुकाबले एक-चौथाई धनराशि ही साकार रूप ले पाती है। प्रदेश में 1 लाख करोड़ से अधिक के निवेश प्रस्तावों को सैद्धांतिक स्वीकृति मिल चुकी थी, लेकिन धरातल पर निवेश हुआ केवल 30 हजार करोड़ का।

जितनी धनराशि के निराकार प्रस्ताव स्वीकृत किए जाते हैं, उसके मुकाबले एक-चौथाई धनराशि ही साकार रूप ले पाती है। प्रदेश में 1 लाख करोड़ से अधिक के निवेश प्रस्तावों को सैद्धांतिक स्वीकृति मिल चुकी थी, लेकिन धरातल पर निवेश हुआ केवल 30 हजार करोड़ का
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राज्यों में अधिकाधिक विदेशी निवेश और स्वीकृत प्रस्ताव में से केवल एक-चौथाई ही धरातल पर आने के अनेक कारण हैं। उन कारणों में न जाते हुए यह विचार किया जाना चाहिए कि नए घरेलू और विदेशी निवेश कैसे हो और किस प्रकार के हो।

सर्वप्रथम चीन से सबक लेते हुए विदेशी निवेशकों को श्रम प्रधान उद्योगों की ओर आकर्षित किया जाए। वहाँ विदेशी निवेश शुरू में उन्हीं उद्योगों में आया, जो चीन के उत्पादन साधन के आधिक्य का उपयोग कर सके। दूसरे, ऐसे निवेश को आकर्षित किया जाना चाहिए जिसके सामाजिक लाभ की प्राप्तियाँ अधिकाधिक हों। तीसरे, विदेशी निवेशकों से यह अपेक्षा की जाती कि वे अकुशल श्रमिकों को तकनीकी ज्ञान देने के लिए सक्रिय कदम उठाएँ।

महत्वपूर्ण बात यह है कि विदेशी निवेश से केवल विशेष आर्थिक क्षेत्र या नगरों में ही रोजगार अवसर पैदा न हो, बल्कि उपनगरों, कस्बों और इकाइयों तक इनके प्रभाव परिलक्षित हों। विशेष आर्थिक क्षेत्र के बारे में चीन का अनुभव और नीति-सार यह है कि वे चाहे आर्थिक विकास के प्रेरक हों, लेकिन सामाजिक रूप से प्रतिगामी है।

चीन की सरकार के समक्ष प्रश्न इन विशेष आर्थिक क्षेत्रों के आयातों को शुल्क मुक्ति समाप्त करने का भी है। दिलचस्प बात यह है कि चीन उन निर्यातों के लिए विदेशी तकनीक पर निर्भर नहीं है जिसमें श्रमिकों का ज्यादा उपयोग होता है।

मध्यप्रदेश को देश का मध्य भाग होने के नाते अनेक लाभ प्राप्त हैं, लेकिन विदेशी निवेश को स्थायी रूप से आकर्षित करने के लिए यह भी आवश्यक है कि बिजली, पानी व सड़क उपलब्ध हो और विदेशी निवेशकों को नौकरशाही के प्रपंची जाल से बचाया जाए
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दरअसल, आवश्यकता इस बात की है कि घरेलू और विदेशी निवेश से राज्य में उपलब्ध श्रम, विकसित मानव संसाधन, कच्चे माल और उपलब्ध तकनीकी को ध्यान में रखते हुए नए उद्योगों की स्थापना हो। ज्ञातव्य है कि देश के विभिन्न राज्यों में विदेशी निवेश पिछले सात वर्षों में केवल 43.5 अरब डॉलर रहा है, जबकि चीन में यह बढ़कर 250 अरब डॉलर को छूने को बेताब है।

मध्यप्रदेश को देश का मध्य भाग होने के नाते अनेक लाभ प्राप्त हैं, लेकिन विदेशी निवेश को स्थायी रूप से आकर्षित करने के लिए यह भी आवश्यक है कि बिजली, पानी व सड़क उपलब्ध हो और विदेशी निवेशकों को नौकरशाही के प्रपंची जाल से बचाया जाए।

निवेश बढ़ाने के लिए बिहार, पश्चिमी बंगाल, पंजाब, हरियाणा जैसे राज्यों ने टेलीकॉम सेवाओं, दूध और शकर के क्षेत्र में सहकारी प्रयासों के लिए निजी क्षेत्रों का निवेश आमंत्रित किया है। इन राज्यों ने पब्लिक-पंचायत-निजी क्षेत्र के मॉडल पर ग्रामीण-हब, ग्रामीण कियोस्क और इंटरनेट के लिए आवश्यक संजाल की स्थापना दूर क्षेत्रों में की है।

आवश्यकता इस बात की है कि राज्य विभिन्न देशों और राज्यों के अनुभवों और उपलब्धियों से सबक लेकर स्थायी विकास के लिए निजी क्षेत्रों और विदेशी निवेश को आमंत्रित करे।

हाल में केंद्र सरकार ने राज्यों को औद्योगिक संकुल के लिए अधोसंरचना और मूल सुविधाएँ विकसित करने के लिए परियोजना की लागत का 40 प्रतिशत भाग अनुदान के रूप में देना स्वीकार किया है।

इस सुविधा का लाभ बिना देरी किए लेना चाहिए। केन्द्र सरकार की यह भी शिकायत रही है कि अधिकांश राज्य सरकारें पिछड़े क्षेत्रों के प्रत्येक जिले के लिए निर्धारित 10 करोड़ रुपए की राशि को भी नहीं उठातीं। आशा की जानी चाहिए कि मध्यप्रदेश उनमें से एक नहीं होगा।

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