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भड़क सकती हैं गुर्जर आन्दोलन की लपटें

मीणा-गुर्जर हो सकते हैं आमने-सामने

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आरक्षण की माँग को लेकर पिछले एक साल से सुलग रहे गुर्जर आन्दोलन ने अब एक बार फिर हिंसक रूप ले लिया है। कर्नल किरोड़ीसिंह बैंसला के नेतृत्व में गुर्जरों को राजस्थान में अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिलाने की माँग को लेकर भड़क रहे हिंसक आंदोलन से पूरे देश के माथे पर चिन्ता की लकीरें उभरने लगी है। पिछले कुछ दिनों में 38 लोग इस आन्दोलन की आग में अपनी जान गँवा चुके है।

अभी गुर्जर आन्दोलनकारियों की सीधी तकरार सरकार से है पर मीणा भी पूरे घटनाक्रम को सतर्क निगाहों से देख रहे हैं और कभी भी दोनों जातियाँ इस मुद्दे पर पिछले साल की तरह एक बार फिर आमने-सामने हो सकती हैं।

क्या है आन्दोलन की वजह : राजस्थान में अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिए जाने की माँग कर रहे गुर्जरों का इतिहास काफी पुराना है।
  अभी गुर्जर आन्दोलनकारियों की सीधी तकरार सरकार से है पर मीणा भी पूरे घटनाक्रम को सतर्क निगाहों से देख रहे हैं और कभी भी दोनों जातियाँ इस मुद्दे पर पिछले साल की तरह एक बार फिर आमने-सामने हो सकती हैं।      
राजस्थान में पिछले 50 वर्षों से गुर्जर जाति अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने की माँग करती आई है। इनका तर्क है कि हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर और उत्तरांचल में गुर्जर जाति को यह आरक्षण प्राप्त है फिर राजस्थान में उन्हें क्यों इस सुविधा से वंचित रखा जा रहा है और राजस्‍थान में मीणा जाति का राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक स्तर गुर्जर जाति से कहीं बेहतर है फिर भी उन्हें यह आरक्षण प्राप्त है, जबकि पिछले 50 वर्षों से गुर्जरों की इस जायज माँग की अनदेखी की जा रही है। वर्तमान में राजस्थान में गुर्जरों को अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) में रखा गया है लेकिन वे अनुसूचित जनजाति के तहत मिलने वाली आरक्षण सुविधा की माँग कर रहे हैं।

उल्लेखनीय है कि गुर्जर समुदाय द्वारा आरक्षण की माँग का आंदोलन मई-जून 2007 में हिंसक हो गया था और इसके बाद ही राजस्थान सरकार ने चोपड़ा समिति का गठन किया था। हिमाचल और जम्मू-कश्मीर में जहाँ गुर्जरों को अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिया गया है वहीं राजस्थान में ये लोग अन्य पिछड़ा वर्ग में आते हैं। कुछ वर्ष पहले राजस्थान में जाटों को ओबीसी में शामिल किए जाने के बाद से ही गुर्जरों में असंतोष है। नौकरियों में बेहतर अवसर की तलाश में गुर्जर अब ये माँग कर रहे हैं कि उन्हें राजस्थान में अनुसूचित जनजाति का दर्जा मिले। हालाँकि कुछ लोगों का मानना है कि राजस्थान के समाज में इनकी स्थिति जनजातियों से बहुत बेहतर है।

गुर्जर आन्दोलन समाधान के लिए उठाए गए कदम : राजस्थान सरकार ने गुर्जर आरक्षण मामले पर गठित चोपड़ा समिति की रिपोर्ट को बिना किसी बदलाव के सीधे केंद्र सरकार को भेजने का निर्णय लिया है। इस समिति का गठन गुर्जर समुदाय द्वारा अनुसूचित जनजाति में खुद को शामिल किए जाने की माँग पर किया गया था।

चोपड़ा समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि गुर्जर अनुसूचित जनजाति में शामिल किए जाने के चार मापदंडों पर खरे नहीं उतरते हैं। जो कसौटियाँ किसी समुदाय को अनुसूचित जनजाति में शामिल किए जाने के लिए निर्धारित की गई हैं वे हैं- भौगोलिक प्रसार, आर्थिक पिछड़ापन, जंगली रहन-सहन और प्राचीन सांस्कृतिक पहचान।

हालाँकि रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि इन कसौटियों पर भी फिर से विचार करने की आवश्यकता है। इस रिपोर्ट पर मीणा विधायकों के दबाव के चलते राजस्थान सरकार इस मसले पर कुछ भी फैसला करने से अभी तक बचती रही है। उल्लेखनीय है कि मीणाओं ने पहले भी गुर्जरों की इस माँग का विरोध किया था। चोपड़ा समिति की रिपोर्ट भी गुर्जरों को आरक्षण देने की सिफारिश नहीं करती है।

  चोपड़ा समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि गुर्जर अनुसूचित जनजाति में शामिल किए जाने के चार मापदंडों पर खरे नहीं उतरते हैं।      
जानकारों की मानें तो इस रिपोर्ट में गुर्जरों और मीणाओं दोनों के लिए कुछ न कुछ है। इस रिपोर्ट में गुर्जरों को मुख्यधारा में लाने की सिफारिश की गई है, क्योंकि राजस्थान सरकार में इस समय इस समुदाय के प्रतिनिधि काफी कम हैं। इस रिपोर्ट के बाद राजस्थान सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती गुर्जर और मीणा समुदाय के बीच तालमेल बैठाने की होगी और आज की स्थिति में यह होता नहीं दिखता।

आर्थिक पैकेज का विकल्प : राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे का कहना है कि चोपड़ा समिति की सिफरिशों के अनुसार गरीब से गरीब इलाके के लिए विशेष पैकेज बनाए जाएँ। हमने करीब 300 करोड़ रुपए का पैकेज, जो पचास सालों में नहीं हुआ, उसे बजट में शामिल किया। उसके क्रियान्वयन की तैयारी कर ली थी। इसके साथ जो गुर्जरों की दूसरी माँगें थीं, वो भी हमने मान ली थी।

आरक्षण की सिफारिश : राजस्थान सरकार ने गुर्जरों को घुमंतू श्रेणी में रखकर अतिरिक्त आरक्षण देने की सिफारिश की है। इसके लिए राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने प्रधानमंत्री मनमोहनसिंह को एक पत्र लिखा है। इस पत्र में उन्होंने गुर्जरों को घुमंतू श्रेणी में अतिरिक्त चार से छह प्रतिशत आरक्षण देने की सिफारिश की है। इसके अलावा आर्थिक रूप से पिछड़ी अन्य जातियों जैसे राजपूत, ब्राह्मणों और वैश्यों को भी को 10 से 20 प्रतिशत अतिरिक्त आरक्षण देने की सिफारिश भी इस पत्र में की गई है।

गुर्जरोका इतिहास : भारत के साथ-साथ पाकिस्तान में भी गुर्जर समुदाय के लोगों की काफी संख्या है लेकिन वहाँ पर वे हिंदू नहीं, मुसलमान हैं। भारत में गुर्जर जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश, दिल्ली और हरियाणा में भी हैं। प्राचीन काल में युद्धकौशल में पारंगत रहे गुर्जरों का मुख्य व्यवसाय खेती और पशुपालन है। राजपूतों की रियासतों में गुर्जरों को अच्छे योद्धाओं का दर्जा हासिल था और भारतीय सेना में अभी भी इनकी अच्छी खासी संख्या है। प्राचीन इतिहास के अनुसार गुर्जर मध्य एशिया के कॉकेशस क्षेत्र से आए थे, लेकिन इन्हें आर्यों से अलग माना गया है।

इनकी उत्पत्ति को लेकर भी इतिहासकारों में कुछ मतभेद हैं, कुछ इन्हें हूणों का वंशज भी मानते हैं तो कुछ हूणों और आर्यों की संतान। भारतीय उपमहाद्वीप में आने के बाद सैकड़ों सालों तक गुर्जर योद्धा रहे और छठी सदी के बाद धीरे-धीरे इन्होंने आस-पास के इलाकों पर अपनी सत्ता कायम की। 7वीं से 12वीं सदी में गुर्जर अपने चरम पर थे। गुजरात के भीमपाल और उसके वंशज भी गुर्जर ही थे, जिन्होंने अरब आक्रमणकारियों को लगभग 200 साल तक भारतीय सीमा से खदेड़ा।

12वीं सदी के बाद गुर्जरो का पतन होना शुरू हुआ और ये कई शाखाओं में बँट गए। गुर्जर समुदाय से अलग हुए कई जातियाँ बाद में बहुत प्रभावशाली हो गईं और राजपूतों के साथ जा मिलीं। बची हुई शाखाएँ गुर्जर कबीलों में बदल गईं और खेती और पशुपालन का काम करने लगीं।

ये गुर्जर राजस्थान, हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर जैसे राज्यों में फैले हुए हैं। एंथ्रोपॉलाजिस्ट की मानें तो विभिन्न इलाकों के गुर्जरों की शक्ल-सूरत में भी फर्क दिखता है। राजस्थान में इनका काफी सम्मान है और इनकी तुलना जाटों या मीणा समुदाय से एक हद तक की जा सकती है।

उत्तरप्रदेश, हिमाचल और जम्मू-कश्मीर में रहने वाले गुर्जरों की स्थिति थोड़ी अलग है, जहाँ हिंदू और मुसलमान दोनों ही गुर्जर देखे जा सकते हैं जबकि राजस्थान में सारे गुर्जर हिंदू हैं।

मध्यप्रदेश में भी लगभग अधिकांश इलाकों मे गुर्जर बसे है पर चंबल-मुरैना में इनकी बहुलता है। यहाँ के बीहड़ो में गुर्जर डाकुओं के गिरोह भी सामने आए हैं, यहाँ इन्हें गूजर के नाम से पुकारा जाता है। इसके अलावा निमाड़ और मालवा के कुछ हिस्सों में इनकी खासी तादाद हैं।

भारत और पाकिस्तान में गुर्जर समुदाय के कई लोग उच्च पदों पर भी पहुँचे हैं। इनमें पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति फजल इलाही चौधरी, जम्मू-काश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारूख अब्दुल्ला और कांग्रेस के दिवंगत नेता राजेश पायलट शामिल हैं।
-प्रस्तुति : संदीपसिंह सिसोदिया

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