Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

भावातीत ध्यान के योगी

हमें फॉलो करें भावातीत ध्यान के योगी
बात 1996 के जनवरी माह की है। खंडवा में भावातीत ध्यान का प्रचार-प्रसार करने के लिए अमेरिका से प्रो. ब्रुसमेन स्मिथ तथा प्रो. जॉनसन रेथनर आए थे। लोग यह देखकर हतप्रभ थे कि अमेरिका में महर्षि वैदिक विश्वविद्यालय में कार्यरत ये विद्वान उन्हें उन्हीं का ज्ञान सिखा रहे हैं।

इन दोनों अमेरीकियों ने महर्षि महेश योगी से ध्यान सीखा था। ऐसा क्या था, जो महर्षि महेश योगी की ओर सारी दुनिया खिंची चली गई। उनके ध्यान में ऐसी क्या खासियत थी कि दुनिया जिस बीटल्स की तरफ आकर्षित थी, वही म्यूजिक ग्रुप बीटल्स महर्षि महेश योगी के आगे समर्पण कर चुका था। ऐसा क्या था कि सारा पश्चिम उनका अनुसरण करने लगा।

यह था उनका अध्यात्म
वे कहते थे कि मानव जर्जरित होता जा रहा है। यदि कोई पेड़ खोखला हो जाए तो वह नहीं रह पाता, ठीक वैसे ही मनुष्य भी खोखला होने पर समाप्त हो जाएगा। पेड़ खोखला न हो, इसके लिए उसकी जड़ें रस से सींचती हैं। केवल पत्तों को पानी देने से वृक्ष हरा नहीं होता है, जड़ों को सींचना बेहद जरूरी है। तभी वृक्ष हरा होता है।

ठीक इसी तरह से मनुष्य में मन का काम शक्ति लेना है और शक्ति को अपने आचरण में शामिल करना है। मन में रस नहीं है तो शक्ति और सामर्थ्य नहीं होगा। उत्साह और तेज नहीं तो आचरण नीरस और शून्य हो जाएगा।

मन का रस : मन को रस कैसे मिले यह बड़ा सवाल है। मन हमेशा अथाह आनंद की शक्ति से जुड़ना चाहता है, लेकिन हम उसे रोक देते हैं। मन मधुमक्खी के समान है। मधुमक्खी उ़ड़ा करती है। हम समझते हैं कि उसका स्वभाव है उड़ना।

जहाँ उसे मधु की एक बूँद मिली वहीं वह चिपक जाती है, वहीं से वह हिलना नहीं चाहती है, यह आनंद की तलाश है। आनंद को लगातार ढूँढते रहने की प्रक्रिया ही ध्यान है। परंतु ध्यान कैसा हो?

ध्यान और तरीके : वे कहते थे प्रातः और सायं दो बार 15 से 20 मिनट का ध्यान किया जाना चाहिए। ध्यान के लिए वे मंत्र भी देते थे। वे कहते थे मंत्र के अर्थ की गूढ़ता में नहीं जाना है। मंत्र को वे बीज रूपी शक्ति बताते थे, जो मनुष्य को बाँधता है। मंत्र जाप में साधक की चार श्रेणियाँ आती हैं। पहली बैखरी, दूसरी मध्यमा, तीसरी पश्यंती और चौथी परा।

बैखरी- इसमें मंत्र का जाप वाणी में होता है, जिसमें उच्चारण किया जाता है। मध्यमा- इसमें जाप संकल्प के क्षेत्र में आ जाता है। इसमें होंठ नहीं हिलते, परंतु मन जप में लगा रहता है।

पश्यंती- इसमें मन में संकल्प भी नहीं रहता, वाणी भी नहीं होती, केवल अंतरात्मा में मंत्र समा जाता है। यह स्थूल से सूक्ष्म की ओर जाना है।
परा- इसमें अनुभूति नहीं रहती, पर आनंद और उत्साह की शक्ति रहती है। यह शब्द शक्ति से परे की अवस्था है, जो समाधि कहलाती है।

अभ्यास कैसा हो : अभ्यास का अर्थ यह नहीं कि दिन-रात मंत्र जाप किया जाए। महर्षि महेश योगी कहते थे, जो ऐसा कहते हैं, उन्होंने लोगों को निकम्मा बना दिया। ऐसे में न यह लोक सिद्ध होता है और न वह।

आश्रम में बसा छोटा भारत
सपने अधूरे छोड़ गए महर्षि
'मैं नहीं होकर और भी ज्यादा प्रगाढ़ हो जाऊँगा'
ध्यान-योग की महान आत्मा का अवसान
महर्षि महेश योगी- ‘अत्तयुत्‍म चेतना’ के गुरु
महर्षि महेश योगी का निधन

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi