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मानवाधिकार की 'अक्षरशः' जानकारी

इस बार ब्लॉग 'अक्षरशः' की चर्चा

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रवींद्र व्यास

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यह कितना दुर्भाग्यपू्‌र्ण है कि तमाम प्रादेशिक, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सरकारी और गैर मानवाधिकार संगठनों के बावजूद मानवाधिकारों का परिदृश्य तमाम तरह की विसंगतियों और विद्रूपताओं से भरा पड़ा है। एक थाने में किसी आरोपी से पुलिस का व्यवहार हो, जेल में जेल प्रशासन या फिर युद्धबंदियों के साथ सरकारों का व्यवहार, हालात खौफनाक है।

हाल ही में विश्व परिदृश्य पर ही नजर डाली जाए तो श्रीलंका में श्रीलंकाई सेना द्वारा तमिल नागरिकों को बड़े पैमाने पर मारा जाना क्या बताता है? और तो और नक्सल प्रभावित इलाकों में नक्सलियों के नाम पर निर्दोष आदिवासियों और ग्रामीणों पर सरकार के अत्याचार के बारे में क्या कहा जा सकता है?

ठीक इसी तरह से सूचना क्रांति और सूचना प्रौद्योगिकी के इस दौर में सूचना के अधिकार का बुरा हाल है। महानगरों से लेकर शहरों और कस्बों से लेकर ग्रामीण इलाकों में सूचना के अधिकार के प्रति एक तरफ उदासीनता है तो दूसरी तरफ नौकरशाहों द्वारा सूचना न दिए जाने की प्रवृत्ति, दोनों ही स्तरों पर हालात बदतर हैं।

इन दोनों विषयों के मद्देनजर एक ब्लॉग है अक्षरशः। इसके ब्लॉगर है हेमंत कुमार। हेमंत कुमार अपनी कुछ पोस्टों में यह समझाने और बताने की अच्छी कोशिश की है कि मानवाधिकार क्या होता है, इनके कितने प्रकार हैं और मानवाधिकार कानून कब लागू किए गए।

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इसी तरह से उन्होंने सूचना के अधिकार पर जागरूकता पैदा करने वाली पोस्टें लिखी हैं। अपनी एक पोस्ट में वे बताते हैं कि मानवाधिकारों को संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा किए गए कार्यों के आधार पर चार भागों में बाँटा जा सकता है। पहला नागरिक मानवाधिकार जिसमें प्राण, आजादी, सुरक्षा और विचार संबंधी स्वतंत्रता शामिल है।

दूसरा प्रकार है राजनीतिक मानवाधिकार जिसमें मत देने का अधिकार, निर्वाचित होने का अधिकार, सरकार में शामिल होने और शांतिपूर्वक सभा करने का अधिकार शामिल है। तीसर प्रकार है सामाजिक-आर्थिक मानवाधिकार। इसमें सामाजिक सुरक्षा से लेकर तमाम बुनियादी सुविधाओं के साथ जीवन-यापन करने का अधिकार शामिल है।

चौथे और अंतिम भाग में उन्होंने सांस्कृतिक मानवाधिकार को शामिल किया है जिसमें जाहिर है अपनी संस्कृतियों के संरक्षण, विकास और प्रचार-प्रसार का अधिकार शामिल है। इसके मद्देनजर यदि परिदृश्य पर नजर डाली जाए तो जाहिर होता है कि इन चारों तरह के मानवाधिकार का तेजी से और बड़े पैमाने पर हनन किया जा रहा है।

यदि इस ब्लॉग में इस बात पर भी रोशनी डाली जाती तो यह ज्यादा सार्थक और तथ्यात्मक और प्रामाणिक बनता है। आज जल, जंगल और जमीन से जिस तरह से आदिवासियों को खदेड़ा जा रहा है इसमें ये चारों मानवाधिकारों के हनन का मामला शामिल है। ऐसे अनगिन उदाहरण दिए जा सकते हैं।

ठीक इसी तरह सूचना के अधिकार का मामला है। आज सूचना क्रांति के दौर में ही एक लोकतांत्रिक व्यवस्था के तहत लोगों को सूचनाएँ नहीं दी जा रही हैं, इसमें कोताही और अक्षम्य लापरवाहियाँ की जा रही है और कुछ तथाकथित स्वार्थी अधिकारियों का इसमें सबसे बड़ी भूमिका है।

इस ब्लॉग में सूचना के अधिकार पर प्रकाश डालते हुए इसकी समस्याओं पर भी बात की गई है। यही नहीं, इस समस्याओं के मद्देनजर इनके समाधान के कुछ कारगर उपाय भी सुझाए गए हैं। कहा जाना चाहिए कि यह एक उपयोगी ब्लॉग है क्योंकि इससे कई जानकारियाँ हासिल की जा सकती हैं।

ये रहा इसका पता :
http://aksharsah.blogspot.com/

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