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राजनीति के रंग,ब्लॉग-दुनिया के संग

राजनीतिक टिप्पणियाँ करते चुनिंदा ब्लॉगों पर चर्चा

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रवींद्र व्यास

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तो चुनाव परिणामों से इस बार नेता से लेकर टीवी चैनल्स तक सब सकते में हैं। जिस कांग्रेस को सबसे ज्यादा सीटें हासिल हुई हैं वह खुश तो है लेकिन उसे भी यकीन नहीं था कि वह इतनी सीटें जीत लेंगी। उप्र में मायावती के हाथी की हवा निकल गई है लेकिन मुलायम सिंह की साइकल ठीक-ठाक ढंग से चलने लगी है।

भाजपा के लालकृष्ण आडवाणी का अखबारों में गमगीन फोटो छपा देखकर कहा जा सकता है कि यह पार्टी भी सकते हैं। और बंगाल में तो कामरेड मुँह छिपाते फिर रहे हैं। उनका सुर्ख रंग बदरंग हो चुका है। चुनाव परिणामों, सत्ता की लालसा, विश्लेषण को लेकर ब्लॉग दुनिया ने अपनी प्रतिक्रिया दी है।

राज्य से लेकर राष्ट्रीय राजनीति के कुछ बिंदुओं पर बात की गई है। कहीं गुस्सा है, कहीं खुशी है, कहीं विश्लेषण है तो कहीं व्यंग्य भी है और कहीं-कहीं काव्यमय प्रतिक्रिया भी दी गई हैं। आइए,एक नजर कुछ चुनिंदा ब्लॉग प्रतिक्रियाओं पर डाली जाए।

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बेबाक टिप्पणी ब्लॉग पर बिना सत्ता कैसे रहेंगे रामविलास पासवान पोस्ट में रविकांत लिखते हैं कि पिछले चुनाव में लोजपा को बिहार में चार सीटें मिली थीं। पासवान ने कांग्रेस को समर्थन दिया था, बदले में इन्हें केन्द्रीय मंत्री की कुर्सी मिली थी। इस चुनाव में उनका सूपड़ा साफ हो चुका है। वे शून्य पर आउट हो चुके हैं। अब ये कैसे मंत्री बनेंगे? यह एक ज्वलंत सवाल है।

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राजनीति के जानकारों का कहना है कि फिलहाल ये राज्यसभा सांसद बनकर कोई न कोई मंत्री पद जरूर पा लेंगे। हालाँकि कांग्रेस किसी भी कीमत पर इन्हें घास डालने को तैयार नहीं है। पासवान कई दूसरी पार्टियों से भी संपर्क में हैं, जो सत्ता सुख पाने में इनकी मदद करे। यदि सारी 'जुगाड़ व्यवस्था' फेल हो जाती है तब पासवान क्या करेंगे?

जाहिर है यह रामविलास पासवान की सत्ता लालसा पर तीखा व्यंग्य है। लेकिन रुतबा ब्लॉग पर आदिनाथ झा चुनाव परिणामों पर टिप्पणी करते हुए कहते हैं कि सत्ता में रहकर सरकार चलाना सिर्फ कांग्रेस को ही आता है।

वे कहते हैं जय हो-भय हो के झंझट को आखिरकार जनता ने समझ ही लिया। चुनाव के पहले चरण से लेकर परिणाम के आखिरी वक्त तक कोई भी राजनीतिक पंडित या अनुभवी राजनेता पंद्रहवीं लोकसभा में ऐसे परिणाम के अंदाजा नही लगाए थे की किसी भी एक गठबंधन को पूर्ण बहुमत मिल पाएगा। यह सही है कि वो जमाना गया जब किसी एक दल को पूर्ण बहुमत आ जाएगा और सरकार उनकी होगी, फिर भी यह बात स्पष्ट हो ही गई की कांग्रेस ही वो पार्टी थी जो अकेले सत्ता में पूर्ण बहुमत के साथ रह चुकी है और आगे भी रहेगी।

भाजपा वाले या वामपंथी एक कुशल विपक्ष की भूमिका में भले ही रह ले लेकिन सत्ता का भी कुशल संचालन कर लेंगे यह कतई संभव नही है। जबकि द ग्रेट इंडियन पोलिटिकल सर्कस में टिप्पणी करते हुए जयश्री वर्मा का मानना है कि मायावती और मुलायम सिंह दोनों राजनीति के लिए खतरनाक है यह कहना जरूरी नहीं है। ये दोनों ही जातिवाद के जरिये लोगों को बाँटने की कोशिश करते रहे हैं और सत्ता की लालसा में किसी भी हद तक जा सकते हैं।

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मीडिया युग ब्लॉग पर राजनीति की नब्ज पर हाथ रखते हुए टीवी चैनल्स पर तीखा कटाक्ष करते हुए आम भारतीय मतदाता पर अच्छी टिप्पणी की गई है। इसमें कहा गया है कि टीवी चैनलों के स्वयंभू संपादकों को लगता है कि जमाना उनके हिसाब से चलता है। उन्हें इसका आभास नहीं कि टीवी चैनल से दफ्तर के बाहर बैठा चायवाला ज्यादा राजनैतिक बहस करता है। उसे समाज, राजनीति और अर्थ की समझ वास्तविकता से आती है, लाखों की तनख्वाह पाकर सारी सुख सुविधाओं में रहकर आप लोकतंत्र की परिभाषा को आम आदमी को समझाएँ, तो ये हजम नहीं होता।

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ये देश विकल्पों पर नहीं, सामने मौजूद चुनौतियों पर फैसला लेना जानता है। और आप माने या न मानें इसने एक फैसला तो ले लिया है, खबरिया टीवी चैनलों को गंभीरता से न लेने का।

अंदर की बात ब्लॉग पर कपिल अपनी पोस्ट में लिखते हैं कि छत्तीसगढ़ के नए बीजेपी सांसद बलिराम कश्‍यप ने आडवाणी के सर हार का ठीकरा फोड़ते हुए कहा कि 'लोग सिन्धियों पर विश्‍वास नहीं करते'। एक समुदाय के लोगों के बारे में किसी नेता की ऐसी टिप्‍पणी कर देना तो शायद इतना हैरानी पैदा नहीं करता लेकिन इस टिप्‍पणी पर कोई नोटिस न लेना इस अनुशासित पार्टी के बारे में और भी हैरानगी पैदा करता है। इसलिए भी चूँकि मामला सिर्फ किसी पार्टी के नेता पर अपमानजनक टिप्‍पणी से ज्‍यादा एक पूरे समुदाय को अपमानित करने का है।

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जाहिर है, यह तीखी टिप्पणी बताती है कि हार के बाद किसी पार्टी का एक नेता बौखलाकर कितनी खराब प्रतिक्रिया देते हैं। निश्चित ही यह एक जाति-विशेष के खिलाफ जहर उगलने जैसा मामला है। बैठक विचारों की ब्लॉग है तो निखिलगिरी आनंद का लेकिन इसमें उन्होंने राजकिशोर का एक अच्छा लेख लगा रखा है।

इसमें राजकिशोर लिखते हैं कि क्या यह चिंता की बात नहीं है कि इतने बड़े देश में कोई राजनीतिक विकल्प न हो जो जरूरत पड़ने पर वर्तमान सत्तारूढ़ दल का स्थान ग्रहण कर सके? कांग्रेस सफल होती है तो और नहीं सफल होती है तो भी, अच्छा लोकतंत्र वही होता है जिसमें वर्तमान का विकल्प हमेशा मौजूद रहे।

लेकिन कुछ ब्लॉगरों ने काव्यमय प्रतिक्रिया दी है। इसमें दिव्यदृष्टि ने लिखा है कि :

ममता मैडम ने किया इच्छा का इजहार
उनको मंत्रालय मिलें मधुर मलाईदार
मधुर मलाईदार, रसायन, रेल, उर्वरक
दीजे लोहा हेल्थ रहे तृणमूल चकाचक
दिव्यदृष्टि 'करुणा' भी करते सौदेबाजी
माँग देखकर सन्न हुए मनमोहन पाजी

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इसके साथ ही कार्टून के जरिये भी अपनी बात कही गई है। बामुलाहिजा कार्टून ब्लॉग पर कीर्तीके राजनीति के वर्तमान हालातों पर बनाए गए तीन कार्टून बेहद चुटीले हैं। ये मारक भी हैं और मोहक भी। इन ब्लॉग पर जाकर आप इन दिलचस्प टिप्पणियों को पढ़ सकते हैं-

http://journalism-ravikant.blogspot.com
http://adhinath.blogspot.com/
http://thegreatindianpoliticalcircus.blogspot.com/
http://teekhinazar.blogspot.com
http://mediayug.blogspot.com/
http://andarkeebaat.blogspot.com/
http://baithak.hindyugm.com/
http://bamulahija.blogspot.com

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