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समझौता करता 'शौर्य'

छठे वेतन आयोग की सिफारिशों से असंतोष

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संदीपसिंह सिसोदिया

पिछले दिनों छठे वेतन आयोग की सिफारिशें प्रस्तुत की गईं तो एक बारगी लगा कि केन्द्रीय कर्मचारियों और अधिकारियों की मनमाँगी मुराद पूरी हो गई है, लेकिन एक ही हफ्ते के भीतर इन सिफारिशों से निराश हो भारतीय सेना के विभिन्न रैंकों के 42 सैन्य अधिकारियों ने इस्तीफे दे दिए। अधिकार‍ियों की कमी से बाबस्ता रही सेना के लिए वास्तव में यह चिंतनीय विषय है।

भारतीय सशस्त्र सेनाओं द्वारा प्रस्तुत एक रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्तमान में थलसेना में लगभग 30%, वायुसेना में 13% तथा जलसेना में 16% अधिकारियों की कमी है। भारतीय सेना विश्व की तीसरी सबसे बड़ी सेना मानी जाती है तथा युद्धक्षेत्र में अगुआई करने वाले सैन्य अधिकारियों की कमी नि:सन्देह आने वाले समय में एक गम्भीर चुनौती बन सकती है।

गौर करने वाली बात है कि इस साल भारतीय सेना अकादमी में लगभग 35% सीटें भर ही नहीं पाईं। इन सीटों का खाली रहना इस बात का सूचक है कि पढ़े-लिखे नौजवानों में सेना के प्रति आकर्षण कम होता जा रहा है। कमोबेश यही स्थिति हर साल दोहराई जा रही है।

  सियाच‍िन के -56 डिग्री सेल्सियस से लेकर 55 डिग्री सेल्सियस में, राजस्थान के तपते रेगिस्तान, भारी बरसात के बीच असम के घने जंगलों या आतंकवाद प्रभावित क्षेत्रों में देश की रक्षा करते इन अधिकार‍ियों में देशप्रेम व कर्तव्य परायणता कूट-कूटकर भरी रहती है      
छठे वेतन आयोग की सिफारिशों में कहा गया है कि रक्षा सेवाओं के लिए भी नागरिक सेवाओं के वेतनमानों के समान ही ग्रेड मान्य होंगे, लेकिन सेनाओं में ब्रिगेडियर की रैंक तक सभी अधिकारियों को 6000 रुपए और नर्सिंग सेवाओं के अधिकारियों को 4200 रुपए तथा अधिकारियों से नीचे के सभी रैंक के कर्मियों को 1000 रुपए प्रतिमाह अलग से 'सैन्य सेवा वेतन' के रूप में दिए जाएँगे। आवास और महँगाई भत्ते जैसे दूसरे भत्तों की गणना में 'सैन्य सेवा वेतन' शामिल होगा, लेकिन सालाना वेतनवृद्धि में यह शामिल नहीं होगा।

सशस्त्र सेना चिकित्सा सेवा के महानिदेशक को सर्वोच्च वेतनमान 80 हजार रुपए (फिक्स) रखा गया है। रक्षा सेनाओं में अधिकारी से नीचे के रैंक के लिए केवल दो ट्रेड समूह रखे गए हैं। इससे पहले के वाई और जेड ट्रेड समूह को मिला दिया गया है। एक्स समूह में आने वाले ट्रेड समूह के कर्मचारियों को 1400 रुपए महीने का अतिरिक्त वेतन दिया जाएगा।

इन सिफारिशों के मुद्दे पर जानकारों का कहना है कि आने वाले समय में इन सिफारिशों से रुष्ठ होकर और भी कई सैन्य अधिकारी निजी क्षेत्रों की ओर रुख करेंगे। निजी क्षेत्र भी इन दक्ष व कुशल अधिकार‍ियों को मुहमाँगी तनख्वाह देने को तैयार हैं, क्योंकि यह अधिकारी आपदा प्रबंधन से लेकर मानव प्रबंधन में अत्यंत कुशल होते हैं। अनुशासन तो इनकी सबसे बड़ी पूँजी है ही।

कुशल व दक्ष सैन्य अधिकारियों का निजी क्षेत्र में जाना रक्षा सेवाओं के लिए एक बहुत बड़ा झटका है। एक अधिकारी को प्रशिक्षण देने में संसाधन, लम्बा समय व धन लगता है। जब तक सैन्य अधिकारी रणक्षेत्र की चुनौत‍ियों के लिए तैयार हो पाता है, उसे निजी क्षेत्र के लुभावने प्रस्ताव आने लगते हैं। अपेक्षाकृत कम वेतन, लालफीताशाही, संसाधनों की कमी से जूझते इन अधिकारियों को अपने परिवार के लिए एक सुरक्षित भविष्य का आश्वासन और कर्तव्य के बीच किसी एक को चुनने का समय आता है तो बहुत से अधिकारी निजी क्षेत्र को चुनते हैं।

अब प्रश्न उठता है कि एक देशभक्त और जाँबाज अधिकारी सेना छोड़कर निजी क्षेत्र में क्यों जाना चाहेगा? यह आज यक्षप्रश्न बन गया है, पर इस प्रश्न का उत्तर ढूँढने से पहले हमें इसे समझना होगा और इसकी जड़ों में बैठी समस्या को भी जानना होगा।

सेना में अधिकारी बनने के लिए सेवा चयन बोर्ड द्वारा अपनाई जाने वाली कठिन चयन प्रक्रिया में से गुजरने वाले अभ्यर्थियों को मानसिक तथा शारीरिक रूप से मजबूत होना पड़ता है। तार्किक, विश्लेषण और शैक्षणिक रूप से भी अभ्यर्थियों को कुशल होना पड़ता है। यह प्रक्रिया इतनी कठिन है कि इसके पहले चरण में ही बहुत से प्रतियोगी बाहर हो जाते हैं। इस प्रकार सेना में वही अभ्यर्थी अंतिम जगह बना पाते हैं जो सबसे काबिल होते हैं। सीधे व सरल शब्दों में कहा जा सकता है कि सबसे योग्य उम्मीदवारों को कठिन परीक्षा व उच्च मापदंडों वाली एक प्रक्रिया के तहत सेना अधिकारी के पद पर चुना जाता है।

इसके बाद शुरू होती है सोने को कुन्दन बनाने की प्रक्रिया। जैसे सोने को अपनी सही पहचान बनाने के लिए आग में तपना पड़ता है, वैसे ही इन युवाओं को सैन्य अधिकारी बनने के लिए कठिन प्रशिक्षण लेना पड़ता है। सुबह 4.00 बजे उठकर रोजाना 28 किमी की दौड़, शारीरिक प्रशिक्षण जैसे तैराकी, लम्बी कूद, जंगल में दुरूह सैन्य प्रशिक्षण, हथियार चलाना तथा युद्ध के दौरान जोखिमभरी स्थिति में भी शांत रहकर काम करना सिखाया जाता है।

इसके अलावा उच्च दर्जे की शिक्षा भी इन कैडेट्स को दी जाती है। एक कैडेट को अधिकारी रैंक पा लेने तक 8000 रुपए मासिक भत्ता दिया जाता है। अधिकारी बनने के बाद उनसे यह अपेक्षा रखी जाती है कि वे कठिनतम परिस्थितियों में भी अपने कर्त्तव्य का भली प्रकार से निर्वहन करें।

  अन्य करियर से इसकी तुलना करें तो वर्तमान में 3-5 वर्ष के अनुभव वाले आईटी पेशेवर को 8-10 लाख रुपए का पैकेज है, वहीं 8 वर्ष से अधिक वाले का पैकेज 10-15 लाख सालाना है, साथ ही कई अन्य सुविधाएँ भी अलग से मिलती हैं।      
सियाच‍िन के -56 डिग्री सेल्सियस से लेकर 55 डिग्री सेल्सियस में, राजस्थान के तपते रेगिस्तान, भारी बरसात के बीच असम के घने जंगलों या आतंकवाद प्रभावित क्षेत्रों में देश की रक्षा करते इन अधिकार‍ियों में देशप्रेम व कर्तव्य परायणता कूट-कूटकर भरी रहती है, मगर अपनी जान की बाजी लगाने वाले इन अधिकार‍ियों को निजी क्षेत्रों में कार्यरत समकक्ष पेशेवर जो कि इंजीनियर, आईटी या अन्य प्रबंधन के क्षेत्र से जुड़े हैं, के मुकाबले काफी कम वेतन व सुविधाएँ मिलती हैं।

सेना अधिकारियों को छठे वेतन आयोग की सिफारिशों के लागू होने से पहले मिलने वाले वेतन पर जरा नजर डालें -

लेफ्टिनेंट- 8250**-300-10050 रु. प्रतिमाह
कैप्टन- 9600**-300-11400 रु. प्रतिमाह
मेजर- 11600**-325-14850 रु. प्रतिमाह
ले. कर्नल- 13500**-400-17100 रु. प्रतिमाह
कर्नल- 15100**-450-17350 रु. प्रतिमाह
ब्रिगेडियर- 16700**-450-18050 रु. प्रतिमा

इसके अलावा रैंक के मुताबिक कैप्टन को 400 रु. प्रतिमाह, मेजर को 1200 रु. प्रतिमाह तथा ले. कर्नल को 1600 रु. प्रतिमाह का भत्ता अलग से दिया जाता है। आतंकवाद प्रभावित क्षेत्रों अथवा विशेष ड्यूटी पर जाने पर अलग से भत्ते मिलते हैं (* उपरोक्त आँकड़े भारतीय सेना की अधिकृत साइट से लिए गए ** बेसिक)

अगर हम अन्य करियर से इसकी तुलना करें तो वर्तमान में 3-5 वर्ष के अनुभव वाले आईटी पेशेवर को 8-10 लाख रुपए का पैकेज है, वहीं 8 वर्ष से अधिक वाले का पैकेज 10-15 लाख सालाना है, साथ ही कई अन्य सुविधाएँ भी अलग से मिलती हैं। इसी प्रकार प्रबन्धन, बैंकिंग या चिकित्सा क्षेत्र में भी सेना से अधिक वेतन और सुविधाएँ हैं, साथ ही यह जोखिमरहित करियर माने जाते हैं।

भौगोलिक और राजनैतिक रूप से भारत पश्चिम से लेकर पूर्व तक दूसरे देशों से जुड़ा है तथा पश्चिम-दक्षिण से लेकर दक्षिण-पूर्व तक हजारों मील लम्बे समुद्र तटों की रक्षा का दायित्व सीधे-सीधे रक्षा सेनाओं के कन्धों पर है। वेतन आयोग को कोई भी सिफारिश करने से पहले इन पहलुओं पर अध्ययन करना चाहिए और रक्षा सेनाओं में कार्यरत अधिकारियों व कर्मचारियों के वेतन व सुविधाओं को और भी आकर्षक बनाना चाहिए। यह समस्या केवल रक्षा सेनाओं ही नहीं, दूसरे क्षेत्रों पर भी लागू होती है। किसी भी संस्थान के लिए सबसे बड़ी सम्पत्ति उसके कर्मचारी होते हैं और असमान वेतन से उनके मनोबल पर असर पड़ता है।

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