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शर्मनाक ... यह कैसी संस्कृति, यह कैसा सत्कार ...

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स्मृति आदित्य

हमें अपनी संस्कृति पर गर्व है। होना भी चाहिए, हमारे यहां पौराणिक काल से ऐसे दर्शन चले आ रहे हैं-अतिथि देवो भव:, वसुधैव कुटुंबकम, यत्र नार्यस्तु पुज्यंते रमंते तत्र देवता, और भी बहुत कुछ... फिर ऐसा क्यों है कि इसी देश में सबसे ज्यादा अतिथियों के साथ दुर्व्यवहार होता है, आए दिन नारी पर हुए अत्याचार की घटनाएं सुर्खियों में रहती है और सारी धरा को कुटुंब मानने वाले हम थोड़ी सी जमीन के लिए भी मर-कट जाते हैं। फिलहाल बात करते हैं उस 27 वर्षीया ब्रिटिश महिला लुसी हैमिंग्स की जिसे अपनी भारत यात्रा के दौरान मुंबई में निहायत ही घिनौने अनुभव से गुजरना पड़ा।   

लुसी हैमिंग्स ने मुंबई में एक युवक को अपनी तरफ घूरते हुए पाया जब तक वह कुछ समझ पाती तब तक वह बस स्टॉप पर ही खुले आम हस्तमैथुन करने लगा। इस अजीब सी स्थिति को लुसी हैमिंग्स ने सोशल साइट्स पर शेयर किया तो भारतीय समाज के सभ्य वर्ग ने अपनी शर्मिंदगी जाहिर की कि उनके देश में ऐसे घटिया अनुभव से रूबरू होना पड़ा। कई भारतीय युवाओं ने युवक की इस शर्मनाक हरकत के लिए माफी तक मांगी है।
 
हेमिंग्स ने भारत में अपनी यात्रा के 3 महीने गुजारे और ब्रिटेन में लौटकर उन्होंने ब्लॉग के जरिए यह वाकया साझा किया- हेमिंग्स ने लिखा है कि जब मैं मुंबई के बस स्टॉप पर बैठी थी, तभी मैंने देखा कि एक युवक मेरे करीब आया और मेरी आंखों के सामने वह हस्तमैथुन करने लगा। युवक की इस अश्लील हरकत से मैं शर्म के मारे पानी-पानी हो गई। मैं कुछ भी समझ नहीं पा रही थी कि आखिर वह युवक ऐसी गंदी हरकत क्यों कर रहा है।    
 
हेमिंग्स के मुताबिक युवक को अपनी आंखों के सामने ऐसा करते देख मैं बहुत डर गई थी और खुद को असुरक्षित महसूस कर रही थी।
 
हेमिंग्स आगे लिखती हैं कि मैं भारतीय संस्कृति का बहुत सम्मान करती हूं, इसलिए मैं गरिमामयी पहनावे में थी। इस अशोभनीय घटना के बाद तीन दिन तक मैं इस सदमे से उबर नहीं पाई।    
 
मैं इस ब्लॉग के सहारे उन सभी महिलाओं को संदेश देना चाहती हूं कि विश्व के किसी भी कोने में हुए यौन उत्पीड़न को डर या शर्म के कारण छुपाएं नहीं बल्कि सबको बताएं।          
 
भारतीय लोगों ने इस संबंध में अफसोस जाहिर किया है। एक व्यक्ति ने लिखा, यह जानकर बड़ा बुरा लगा कि आपका हमारे देश में इतना गंदा अनुभव रहा...।  
 
एक और भारतीय शुभचिंतक ने लिखा, 'वे इस घटना पर शर्मिंदा महसूस करते हैं और इसके लिए माफी मांगते हैं।' एक व्यक्ति ने लिखा, ' मैं मानता हूं कि आप अपने देश लौट चुकी हैं, लेकिन इस माफी से शायद कुछ असर हो । इस घटना को जानकर मैं शर्मिंदगी महसूस कर रहा हूं। 
 
सवाल यह है कि मानसिक पतन की किस पराकाष्ठा को हम पार कर रहे हैं। गिरावट की कोई तो सीमा होगी, ना अतिथि के प्रति आदर ना स्त्री के प्रति सद्भाव। ना स्वयं के प्रति कोई जवाबदेही?

बात चाहे कड़वी लगे लेकिन यह सच है कि हमारे देश में एक ऐसा भी युवा वर्ग तेजी से पनप रहा है जो स्वयं के प्रति लापरवाह है। परिवार और समाज के प्रति अपने दायित्वों से विमुख है और जो संस्कृति और सभ्यता तो बहुत दूर की बात है विकृतियों और बेशर्म आचरण की तरफ बढ़ रहा है।

हम विकास के दावे कर रहे हैं लेकिन वास्तविकता में संस्कारों को भूलकर विकारों में रूचि ले रहे हैं जो निश्चित तौर पर विनाश का संकेत है।

पुराने मूल्य हमारे लिए हंसी का विषय हो सकते हैं। समय बदलता है तो समाज बदलता है। मूल्य भी बदलते हैं। किंतु क्या मूल्यों के बदलाव में, पुराने मूल्यों को पछाड़ने की होड़ में हम इस लायक भी नहीं बचे हैं कि नए मूल्य रच सकें, नए मूल्य गढ़ सकें। नई परिभाषा, नई परिपाटी, नई परंपरा के वाहक हो सकें... नहीं भारतीय संस्कृति इतनी दरिद्र कभी नहीं रही, इस सुसंस्कृति की समृद्धि की यह निशानी है कि कई भारतीय युवाओं ने हेमिंग्स के प्रति संवेदना प्रकट की। यही हमारी मजबूती है हमें इसी मजबूती को सहेजना है...   

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