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ज्ञान का पवित्र मंदिर या डिग्री बेचने का बड़ा व्यवसाय!

हमें फॉलो करें ज्ञान का पवित्र मंदिर या डिग्री बेचने का बड़ा व्यवसाय!
(एमएच बाबू)
 
शिक्षा उस ऊर्जा का नाम है, जो मानव शरीर में दूर-दूर से एवं दूर-दूर तक स्पष्ट रूप से दिखाई देती है। शिक्षा जब मानव के शरीर में उतर जाती है तो उस शिक्षा का नाम बदल जाता है और उसे ज्ञान कहते हैं। मानव शिक्षा प्राप्ति के बाद ज्ञानी हो जाता है, जो कि वास्तव में दूर-दूर से दिखाई देता है, जैसे कि फूलों से सुगंध दूर-दूर तक फैल जाती है। 
 
ज्ञान वह प्रकाश है, जो घोर अंधेरे को भी उजाले में परिवर्तित करने की संपूर्ण रूप से क्षमता रखता है जिसको समझने अथवा उदाहरण देने की आवश्यकता नहीं है। घर की एक छोटी-सी अंधेरी कोठरी में जलते हुए दीपक से लेकर आकाश में विराजमान सूर्य यह किसी भी उदाहरण के मोहताज नहीं हैं। यह अपनी पहचान के लिए किसी पर भी आश्रित नहीं है।
 
शिक्षा भी एक प्रकाश एवं उजाला है, जो कि ठीक इसी तरह है, जब मानव शिक्षित हो जाता है तो उसके शब्दों में मिठास एवं गंभीरता आ जाती है। शिक्षित मानव की पहचान स्वयं उसके आचरण से होती है। उसे किसी भी साक्ष्य की आवश्यकता नहीं होती। शिक्षा सदैव कुशल एवं बुद्धिजीवी बनाती है।
 
शिक्षा ही एकमात्र ऐसी माता है, जो विनम्रता, दयालुता एवं विवेक को जन्म देती है। शिक्षा सदैव अहिंसा के मार्ग पर चलने लिए प्रेरित करती है। शिक्षा ही एक ऐसा मापक यंत्र है जिसके माध्यम से आने वाले कल का सही आकलन हो पाता है।
 
शिक्षा को अपने अंदर समाहित करने बाद एक साधारण परिवार में जन्मा हुआ बालक एक महान ज्ञानी बन जाता है, जो कि अपने ज्ञान के माध्यम से अपने भविष्य के साथ-साथ अन्य दूसरे व्यक्तियों का भी भविष्य बदल देता है।
 
ज्ञानी व्यक्ति समय के अनुसार चलते हुए आगे बढ़ता रहता है, जो कि अपने क्षेत्र से निकलकर प्रदेश एवं देश तथा विश्वस्तर पर एक दिन पहुंच जाता है और फिर प्रदेश एवं देश तथा विश्वस्तर की नीतियों एवं रूपरेखा तथा कार्यशैली में एक बड़ा परिवर्तन कर देता है जिसे फिर क्रांति, आंदोलन एवं परिवर्तन के नाम से जाना जाता है। ऐसे अनेक उदाहरण मस्तिष्क के अमिट पन्नों पर अंकित हैं, जो कि सूर्य की भांति जगमगा रहे हैं। उदाहरण के लिए जैसे भारत के मिसाइलमैन डॉ. एपीजे कलाम, जिनका कि जन्म गरीबी में हुआ, परंतु शिक्षा एवं ज्ञान के आधार पर उन्होंने देश एवं विश्व-जगत में वह ख्याति प्राप्त की जिस पर आज देश को गर्व है। शिक्षा ही एकमात्र ऐसा धन है, जो जीवन के अंतिम समय तक भी समाप्त नहीं होता।
 
परंतु बड़े दु:ख की बात है कि आज उसी शिक्षा के पवित्र मंदिर को कुछ व्यक्तियों द्वारा दूषित एवं परिवर्तित करते हुए देखा जा रहा है, जो कि मात्र 'डिग्री बेचने की दुकान' का रूप धारण कर रहा है। यह अत्यधिक चिंता का विषय है। वास्तव में ये लोग शायद शिक्षा का मूल उद्देश्य नहीं समझ पाए कि शिक्षा विद्यार्थियों के हृदय के अंदर ज्ञान के रूप में स्थापित होनी चाहिए अथवा एक कागज के पन्ने पर, कुछ अंकों के साथ एक डिग्री के रूप में होनी चाहिए?
 
यह अत्यंत चिंता का विषय है। सोचिए, समझिए और इसका आकलन कीजिए कि आज इन विद्यार्थियों को किस ओर ले जाया जा रहा है? यह सामान्य घटना नहीं है, अपितु भविष्य की जड़ों पर एक जोरदार प्रहार है। इसको बड़ी गंभीरता से सोचना पड़ेगा। क्या बालकों को अंधेरी कोठरी से निकालकर ज्ञान के प्रकाश की ओर ले जाया जा रहा है अथवा नहीं? क्या ये विद्यार्थी ऐसी शिक्षा के माध्यम से अपना एवं अपने देश का भविष्य संवार पाएंगे अथवा नहीं?
 
दूसरा प्रश्न और भी अत्यधिक जटिल है, क्योंकि यह बड़ी विडंबना है। यह घोर अन्याय है कि एक तरफ एक गरीब एवं दुर्लभ परिवार का छात्र पूरी रात मिट्टी के तेल वाले दीपक के सहारे अपने विषयों का गहराई से अध्ययन करता है और परीक्षा की तैयारी करता है, क्योंकि वह पढ़ना चाहता है और अपना भविष्य संवारना चाहता है एवं दूसरी तरफ एक ऐसा भी विद्यार्थी है जिसको पुस्तकों के अध्याय तक याद नहीं हैं। कुछ तो ऐसे भी 'महारथी' विद्यार्थी हैं जिन्हें अपने विषयों की पुस्तकों का नाम भी भली-भांति याद नहीं है, परंतु परीक्षा के पश्चात जब अंकपत्र आते हैं तो दोनों विद्यार्थियों के अंकपत्रों में अंकों के आधार पर काफी समानता होती है जबकि ज्ञान के आधार पर दोनों विद्यार्थियों में धरती एवं गगन के मध्य से भी अधिक दूरी होती है, परंतु ये तो 'धन' है, जो अंकों में समानता करने में सक्षम देखा जाता है, जो कि साफ एवं स्पष्ट रूप से दिखाई देता है।
 
क्या अब कागज पर अंकित अंकों से भविष्य बनेगा? क्या वास्तविक जीवन में अब ज्ञान की कोई आवश्यकता नहीं? प्रश्न अत्यधिक चिंताजनक एवं गंभीर है जिस पर अंकुश लगाने की अतिशीघ्र आवश्यकता है।
 

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